केजीएफ और केजीएफ चैप्टर 2 के बाद इन दिनों होम्बले प्रोडक्शन हाउस की एक और कन्नड़ फ़िल्म कन्तारा भी खूब सुर्खियों में हैं. कम बजट में बनी इस फ़िल्म का कन्नड़ वर्जन इतना कामयाब हुआ कि फिल्म के हिंदी, मलयालम,तमिल और तेलुगु सहित दूसरी भाषाओं में रिलीज होने की मांग शुरू हो गयी. जिसके बाद फिल्म को दूसरी भाषाओं में डब कर रिलीज करनी पड़ी. इस फिल्म के अभिनेता और निर्देशक ऋषभ शेट्टी से उनकी इस फिल्म और उससे जुड़ी कामयाबी के बारे में बातचीत के प्रमुख अंश.
आपकी फिल्म को जबरदस्त कामयाबी मिल रही है,कैसे इस कामयाबी को सेलिब्रेट कर रहे हैं?
हमें सेलिब्रेशन का मौका नहीं मिल रहा है. कन्नड़ में फिल्म रिलीज हुई. हम आसपास के थिएटर के टूर्स पर निकले थे. आधा टूर हुआ कि मालूम पड़ा कि हिंदी में डब करना है. हिंदी भाषा का काम खत्म नहीं हुआ कि फिर तमिल, तेलुगु और मलयालम का शुरू हो गया. फिर प्रोमोशन में बिजी हो गया हूं.
आपको क्या लगता है कि इस फिल्म की यूएसपी क्या है,जो यह सभी को पसंद आ रही हैं?
मेरा हमेशा से ये मानना रहा है कि जितना ज्यादा आप रीजनल रहेंगे उतना ज्यादा यूनिवर्सल होंगे. मेरे राज्य कर्नाटक का कल्चर हमने फिल्म में दिखाया है. वैसे पूरे भारत में है. हां अलग -अलग तरीकों के कल्चर हैं, लेकिन उसका जो कोर है वो एक ही है. पूरे भारत का सेंटिमेंट्स एक जैसा है. कर्नाटक का एक त्यौहार होता है कोला. जो प्रकृति के अंदर पॉजिटिव स्पिरिट होती है. जो आदमी के अंदर जाकर अपनी बात को रखती है. प्रकृति और मनुष्य के बीच का संघर्ष हर जगह है. उसी को मैंने अपनी फिल्म में बताया है. इसके साथ ही मैं चाहता हूं कि हमारे जो लोक कथाएं,संस्कृति,जमीन से जुड़ी देशी कहानियां है. वो आज की जेनेरेशन को भी मालूम पड़े. मैं तो निजी जिंदगी में एक छोटे से गांव से हूं तो मैं इन्ही सबके बीच पला बढ़ा हूं.
आप फिल्म के एक्टर होने के साथ-साथ डायरेक्टर भी हैं यह कितना चुनौतीपूर्ण होता है?
मुझसे पहले भी कई एक्टर और डायरेक्टर रहे हैं. यह आसान तो नहीं होता है. आप किसी सीन को निर्देशित कर रहे हैं फिर अगले ही पल आपको उसमें एक्ट करना होता है. यह चुनौतीपूर्ण होता है,लेकिन मैं किसी को मालूम पड़ने नहीं देता हूं.
कन्तारा की मेकिंग के वक़्त आपके जेहन में कभी आया था कि इस फिल्मको पैन इंडिया में बनना चाहिए
मुझे पैन इंडिया फिल्म का टैग नहीं चाहिए था. मैं चाहता था कि कन्नड़ के दर्शकों तक यह फ़िल्म पहुंचे. कन्नड़ में ही रिलीज हो. फ़िल्म रिलीज होने के बाद वर्ड ऑफ माउथ से इतनी पब्लिसिटी हुई कि सभी की तरफ से डिमांड आने लगा. अनिल थडानी जी इसका हिंदी का डिस्ट्रीब्यूट कर रहे हैं. 2000 से ज़्यादा स्क्रीन्स पर फिल्म रिलीज हुई है.
हिंदी दर्शकों को ध्यान में रखते हुए क्या कोई बदलाव हुए हैं?
कुछ बदलाव की ज़रूरत नहीं थी ,क्योंकि कर्नाटक का जो कल्चर है. वैसा पूरे भारत में है.
क्या कन्तारा के बाद पैन इंडिया फिल्में आपका फोकस रहेंगी?
मेरा फोकस हमेशा कन्नडा फ़िल्म करना है. होम्बले फ़िल्म प्रोडक्शन जैसा कुछ है. जो पूरी दुनिया में मेरी फिल्म को पहुंचा देगा. जैसा अभी हुआ इसका मुझे विश्वास है.
हिंदी फिल्में इन दिनों बॉक्स आफिस पर अच्छा नहीं कर रही हैं,क्या हिंदी फिल्में अपनी कहानियों को नहीं दिखा रहे इसलिए उनसे कामयाबी दूर हो रही है?
इंडियन फ़िल्म इंडस्ट्री को हिंदी फिल्म इंडस्ट्री का बहुत बड़ा योगदान है. उसको नकारा नहीं जा सकता है. अभी लोगों को भी यही सवाल आ रहा है कि हिंदी फिल्मों से हमारी अपनी कहानियां गायब हो रही हैं. पहले हिंदी सिनेमा में भी बहुत रूटेड कहानियां आती थी. मैंने हाल ही में एक विदेशी सीरीज देखी थी वाइकिंग उस सीरीज में व्लाहाला एक टेंपल दिखाया गया है. उसका जो रीति रिवाज है. वो बहुत हद तक हमारी तरह ही है. हिंदी फिल्म इंडस्ट्री को वर्ल्ड सिनेमा के लिए नहीं पहले अपने लोगों के लिए फ़िल्म बनानी चाहिए. अभी सबसे ज़्यादा अपडेटेड ऑडियंस है. अभी रील्स का ज़माना है. दर्शकों के पास सब्र नहीं है. अच्छी कहानी नहीं होगी तो. वो आगे बढ़ जाएंगे.
आप हिंदी फिल्मों के दर्शक रहे हैं क्या?
हां, बच्चन साहब मेरे आल टाइम फेवरेट है. सलमान भाई भी पसंद हैं.
आपकी आनेवाली फिल्में?
मेरी एक फ़िल्म आ रही बेल बॉटम नाम की. फ़िल्म यह पार्ट 2 होगी. पार्ट वन 2019 में रिलीज हुई थी. (हंसते हुए)अक्षय कुमार से पहले हमारी फ़िल्म आयी थी. इसके अलावा एक फ़िल्म और है.