Kanwar Yatra 2022 Date: सावन (Sawan) के महीने में भगवान शिव (Lord Shiv) के भक्त एक वार्षिक कांवड़ यात्रा (Kanwar Yatra) में शामिल होते हैं, जो कोविड -19 महामारी के कारण एक अंतराल के बाद इस साल फिर से शुरू होने जा रही है. प्रतिभागियों को कांवरिया या कांवड़िया (Kanwariya) कहा जाता है. कांवड़ यात्रा सावन (श्रावण) के पहले दिन शुरू होता है. यह चतुर्दशी तिथि (चंद्र चक्र के घटते चरण के दौरान चौदहवें दिन) पर समाप्त होता है. कांवड़ यात्रा 2022 (kanwar yatra 2022) से संबंधित पूरी डिटेल आगे पढ़ें.
पूर्णिमांत कैलेंडर के अनुसार इस साल 14 जुलाई से श्रावण मास (Shravan Maas) शुरू हो रहा है. इसलिए कांवड़ यात्रा 14 जुलाई से शुरू होकर 26 जुलाई को श्रावण शिवरात्रि पर समाप्त होगी.
कांवड़ एक बांस का खंभा होता है जिसके दोनों ओर रस्सी से लटके दो घड़े होते हैं. कांवरिया कांवड़ को अपने कंधे पर ले जाते हैं और गंगा के पवित्र जल को इकट्ठा करने के लिए यात्रा शुरू करते हैं. कांवड़िया इस बर्तन को भरने के लिए हरिद्वार, ऋषिकेश, गौमुख, गंगोत्री, काशी, सुल्तानगंज आदि स्थानों की यात्रा शुरू करते हैं. देवघर के बाबाधाम में सावन के पूरे एक महीने श्रावणी मेला लगता है.
दिलचस्प बात यह है कि कंवड़ों को चार प्रकारों में वर्गीकृत किया जा सकता है. और वे इस प्रकार हैं:
बैठी – बैठी कांवड़ यात्रा के दौरान कांवड़िया कांवड़ को जमीन पर रख सकता है.
डाक – डाक कांवड़िया को कांवड़ के साथ दौड़ना पड़ता है वे रूक नहीं सकते.
खड़ी – खाड़ी कांवड़िया न तो कांवड को लटका सकते हैं और न ही उसे फर्श पर रख सकते हैं. जब वह आराम कर रहे हों तो उसे किसी और को इसे पकड़ने के लिए कहना पड़ता है.
झूला – झूला कांवड़िया अपने कांवड़ को लटका सकते हैं लेकिन उसे जमीन पर नहीं रख सकते.
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कांवड़िया कांवड़ को धारण करते हुए व्रत रखते हैं और नंगे पैर चलते हैं.
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जब तक भोले बाबा को गंगा जल न अर्पित कर दें अनाज, पानी और नमक का सेवन सख्त वर्जित रहता है.
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कांवड़िया एक दूसरे का नाम भोले रखते हैं और अपने महादेव का नाम जपते रहते हैं, जिन्हें प्यार से भोलेनाथ कहा जाता है.
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कांवड़ यात्रा में पूरे रास्ते बम बम भोले जपते जाते हैं.