Karma Puja 2022: झारखंड के इस जिले में अनोखे ढंग से मनाए जाते हैं करमा पर्व, आप भी जानें

हजारीबाग के बड़कागांव में अनोखे ढंग से करमा पर्व मनाया जाता है. यहां भूत भरनी से करमा पूजा की शुरुआत होती है. सात दिनों तक करम के डाला को सुबह-शाम जगाया जाता है. इस पर्व को लेकर कुंवारी युवतियां एवं विवाहित महिलाएं बेसब्री से इंतजार करती है.

By Prabhat Khabar Digital Desk | September 5, 2022 8:14 PM

Karma Puja 2022: हजारीबाग जिले के बड़कागांव प्रखंड में करमा का पर्व अनोखे अंदाज से मनाया जाता है. यहां तीज का डाला विसर्जन करने के पहले गवांट एवं भक्ताइन द्वारा भूत भरनी की जाती है. तब करमा का डाला स्थापित होता है. सात दिनों तक करम के डाला को सुबह-शाम जगाया जाता है. करमा पूजा के एक दिन पहले संजोत के दिन गांव का पाहन देवल भुइयां रात्रि दो बजे देवी मंडप से भूत भरते हुए महोदी पहाड़ के गुफा जाते हैं. वहां से सेग कदम के फूल लाते हैं. देवी मंदिर एवं गांव के सभी मंदिरों में फूल चढ़ाते हैं. तब सभी करमा के अखाड़ों में फूल को पहुंचाया जाता है. बड़कागांव के कई गांव एवं मोहल्लों में देवास लगाने वाले भक्तों द्वारा भूत भरनी की जाती है. तब होती है कर्मा पूजा. पाहन देवल भुइयां के अनुसार, भूत भरने के पीछे मान्यता है कि गांव का देवता गवांट एवं कुलदेवता अखाड़ों में आते हैं और सभी को सुख-समृद्धि की आशीर्वाद देकर चले जाते हैं.

कुंवारी युवतियां एवं विवाहित महिलाएं बेसब्री से करती है इंतजार

करमा पर्व भाई-बहन के आपसी सद्भाव, स्नेह और प्रेम का प्रतीक है. यह पर्व भाद्रपद शुक्ल पक्ष एकादशी तिथि को मनाया जाता है. इस पर्व का इंतजार कुंवारी युवतियां एवं विवाहित महिलाएं बेसब्री से करती हैं. हजारीबाग जिले के हर प्रखंडों में इस पर्व को धूमधाम से मनाया जाता है. बहनें सात दिनों तक करमा गीत के साथ लोक नृत्य करती है. छठा दिन संयत करती हैं. दूसरे दिन निर्जल उपवास किया जाता है. इसी दिन मुख्य पूजा आयोजित होती है. शाम को आंगन में करम पौधे की डाली लगाकर फल, फूल आदि से पूजा की जाती है. इस दौरान महिलाएं करमडाली के चारों ओर घूम-घूमकर गीत गाती हैं.

शादीशुदा महिलाएं अपने मायके में मनाती है पर्व

भाई खीरा लेकर बहनों से सवाल करते हैं कि करमा पर्व किसके लिए करती हो, तो बहनें जबाव देती हैं भाईयों के मंगलकामना के लिए. बाद में भाई खीरे से मारता है, जिसके बाद महिलाएं एवं युवतियां फलाहार करती हैं. अगले दिन सुबह में करम की डाल को पोखर में विसर्जित कर दिया जाता है. इस पर्व की सबसे बड़ी खासियत यह है कि शादीशुदा महिलाएं अपने मायके में पर्व मनाती हैं.

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करमा पर्व से जुड़ी कई कहानियां

इस पर्व को मनाने की पीछे पौराणिक कथा करमा और धरमा नामक दो भाइयों से जुड़ी है. कहा जाता है कि दोनों भाईयों ने अपनी बहन की रक्षा के लिए अपनी जान को दांव पर लगा दिया था. दोनों भाई काफी गरीब थे. उनकी बहन बचपन से ही भगवान से उनकी सुख-समृद्धि की कामना करती थी. बहन द्वारा किए गए तप के कारण ही दोनों भाइयों के घर में सुख-समृद्धि आयी थी. इस अहसान का बदला चुकाने के लिए दोनों भाइयों ने दुश्मनों से अपनी बहन की रक्षा करने के लिए जान तक गंवा दी थी. इस पर्व की परंपरा यहीं से मनाने की शुरुआत हुई. इस त्योहार से जुड़ी दोनों भाइयों के संबंध में एक और कहानी है.

कई कहानियां भी है प्रचलित

हालांकि, करमा-धरमा से जुड़ी कई और कहानियां भी प्रचलित हैं. कहीं-कहीं पौराणिक कथा इस तरह है कि करमा जब भगवान कर्मा की पूजा करता है, तो उसकी पत्नी गर्म दूध से करमा के पौधों को स्नान कराती है, जिससे उसका कर्म जल जाता है. वह गरीब हो जाता है. वहीं, उसका भाई धरमा अमीर हो जाता है क्योंकि वह तरीके से पूजा-पाठ करता है. तब वहां जाकर करम के डाल की पुन: पूजा-अर्चना करते हैं. तब उनका करमा जाग जाता है. रास्ते में कई स्थानों में करमा को सोना, चांदी व पैसे मिल जाते हैं. जिससे वह अमीर हो जाता है.

रिपोर्ट : संजय सागर, बड़कागांव, हजारीबाग.

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