Karma Puja 2020 date, karma puja kab hai: करमा पर्व आज 29 अगस्त दिन शनिवार को है. करमा पर्व झारखंड के प्रमुख त्यौहारों में से एक है और काफी लोकप्रिय है. यह पर्व भादो महीने के शुक्ल पक्ष एकादशी के दिन पूरे हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है. यह पर्व सिर्फ झारखंड में ही नहीं मनाया जाता बल्कि बंगाल, असम, ओड़िशा, तथा छत्तीसगढ़ में भी पूरे हर्षोल्लास एवं धूमधाम से मनाया जाता है. इस पर्व को मनाये जाने का मुख्य उद्देश्य है बहनों द्वारा भाईयों के सुख-समृद्धि और दीर्घायु की कामना की जाती है. झारखंड के लोगों की परंपरा रही है कि धान की रोपाई हो जाने के बाद यह पर्व मनाया जाता रहा है.
धरती अपनी हरियाली की चादर फैला रही होती है तब करम पर्व खुशियों से मनाने का आनंद और अधिक बढ़ जाता है. आज देश के वैज्ञानिकों ने भी माना है कि पहाड़-पर्वत, जंगल-झाड़, नदी-नाले, पेड़-पौधे आदि हमारे जीवन का अटूट हिस्सा बन गयी है. पेड़-पौधे पर्यावरण को संतुलित रखते हैं. जिससे समय पर वर्षा होती है. इसके बिना हमारा जीवन असंभव है. क्योंकि प्रकृति के इन गुणों को पहचान कर इनकी रक्षा करनी होगी.
झारखंड में पेड़-पौधे की पूजा का प्रथा सदियों चली आ रही है प्रकृति के प्रति मानव समाज की यह परम्परा बहुत पुरानी है आदिमानवों ने जब प्रकृति के उपकार को समझा तब वह इसके प्रति श्रद्धावन हो उठा. यह आज भी इसकी प्रासंगिकता है. इसमें प्रकृति का संदेश निहित है. जैसे करम में करम डाली, सरहुल में सखुआ फूल, जितिया में कतारी आदि का पूजा करते आ रहे हैं. पौराणिक ग्रंथों में भी यह कहा गया है – वनस्पत्यै नम: वनस्पतियों को नमन.
करम पर्व को प्रारंभ करने के लिए बेजोड़ दिनों का चुनाव करना होता है. जैसे-तीन, पांच, सात, नौ या ग्यारह दिनों का. इससे पहले युवतियां पर्व प्रारंभ करती है. बालू उठाने के लिए नदी, तालाब या नाला में जाने से पहले अखड़ा में नृत्य कर लेती हैं, फिर बालू उठाने के लिए निकलती है. युवतियां नहा-धोकर एक जगह जमा होती है और नृत्य करते हुए नदी चाहे तालाब से स्वच्छ महीन बालू उठाकर नयी डाली में भरकर लाती है. उसमें सात प्रकार के अनाज बोती है, जौ, गेहूं, मकई, धान, उरद, चना, कुलथी आदि और किसी स्वच्छ स्थान पर रखती हैं. दूसरे दिन से रोज धूप, धूवन द्वारा पूजा-अर्चना कर हल्दी पानी से सींचती है. चारों और युवतियां गोलाकार होकर एक-दूसरे का हाथ पकड़कर जावा जगाने का गीत गाती हैं और नृत्य करती हैं
जावा उठाने के बाद लड़कियां जावा-डाली को बड़े ही आदर एवं श्रद्धा भाव से स्वच्छ एवं ऊंचे स्थान पर रख देती हैं. इसके बाद प्रतिदिन सुबह-शाम नृत्य गीत करके जावा को जगाती है, जिसे जावा जगाना कहते हैं. जावा जगाते-जगाते छह दिन बीत जाने के बाद भादो शुक्ल का एकादशी दिन आता है. उस दिन सुबह घर-आंगन गोबर से लीप कर स्वच्छ एवं शुद्ध किया जाता है. युवतियां नाना प्रकार के फूल इकट्ठा करती हैं. संध्या सभी बहनें नदी या तालाब स्नान करने जाती है वहां से लोटा में स्वच्छ जल लेकर आती हैं.
घर में बहनें अपने पैरों में आलता रंग लगाती हैं. नयी साड़ी और पूर्ण आभूषणों से अपने को सजाती हैं. चना, खीरा, अटरी, पटरी, गुड़, दूध, जल, फल, फूल, धूप-धूवन, अरवा चावल सिंदूर तथा कुछ पैसे से थाली या डाली को सजाकर तैयार रखती है. गांव के कोई दो-तीन भाई, बुजुर्ग या कोई सज्जन व्यक्ति नये वस्त्र धारण कर गांव के युवक-युवतियों संग मांदर बजाते नाचते डेगते करम डाली काटने को चले जाते हैं. वहां पहुंचकर करम पेड़ का पूरे श्रद्धा से पूजा-अर्चना करके पेड़ चढ़कर तीन डालियां काटता है और साथ लेकर पेड़ से उतरता है इसमें यह भी ध्यान रखना होता है कि करम डाली जमीन पर गिरे नहीं. उसके बाद करम डाली लेकर सभी कोई घर की ओर प्रस्थान करता है.
घर के आंगन में जहां साफ-सफाई किया गया है वहां विधिपूर्वक करम डाली को गाड़ा जाता है. उसके बाद उस स्थान को गोबर में लीपकर शुद्ध किया जाता है. बहनें सजा हुआ टोकरी या थाली लेकर पूजा करने हेतु आंगन या अखड़ा में चारों तरफ करम राजा की पूजा करने बैठ जाती हैं. करम राजा से प्रार्थना करती है कि हे करम राजा! मेरे भाई को सुख समृद्धि देना. उसको कभी भी गलत रास्ते में नहीं जाने देना. यहां पर बहन निर्मल विचार और त्याग की भावना को उजागर करती है. यहां भाई-बहन का असीम प्यार दिखाई देता है. यह पूजा गांव का बुजुर्ग कराता है.
पूजा समाप्ति के बाद करम कथा कही जाती है. कहानी में करमा और धरमा की कथा सुनायी जाती है. कथा का मुख्य उद्देश्य यह रहता है कि अच्छे कर्म करना. इस संदर्भ में डॉ गिरिधारी राम गौंझू कहते हैं कि क, ख, ग, घ, ङ तबे रहबे चंगा. अर्थात क से कर्म करो, ख से खाओ, ग से गाओ फिर घूमो तब तुम चंगा रहोगे. काम कर अंग लागाय कन आर डहर चले संग लागाय कन. कहने का तात्पर्य है कि कोई भी काम करो तो पूरे मन से करो और रास्ता पर चलो तो मित्र के साथ चलो. कथा समाप्त होने के बाद सभी युवतियां करम डाली को गले लगाती हैं. उसके बाद रात भर नृत्य गीत चलता है.
सुबह सभी व्रती बहनें करम राजा से भेंट करती हैं. इसके बाद सभी बहनें एकजूट होकर विसर्जन के लिए जावा डाली को सजाती हैं वे कच्चे धागे से पिरोकर उड़हल फूल गेंदा फूल की मालाओं से सजाती हैं. उसके बाद विसर्जन के लिए निकल पड़ती हैं. उस समय करम राजा का बिछ़ुड़न का भी दु:ख होता है. और इस तरह प्रकृति के प्रति अगाध प्रेम को छोड़ता हुआ करम राजा को नदी या तालाब में जावा डाली के साथ विसर्जित कर दिया जाता है. कहीं-कहीं विसर्जन के बाद कुछ पौधों को उठाकर घर लाया जाता है. ऐसा माना जाता है कि इनसे उपज में वृद्धि होती है, घर धन-धान्य से परिपूर्ण रहता है. तुलसी पीड़ा के ऊपर घर के छप्पर में तथा पिछवाड़े में सब्जी-बागान में उन पौधों को डालकर घर को धन-धान्य से परिपूर्ण होने की मंगल-कामना की जाती है.
News Posted by: Radheshyam kushwaha