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karma puja 2020: आज है भाई-बहन के पवित्र प्रेम और समर्पण का पर्व करमा, जानिए इस दिन करम-डाली की कैसे की जाती है पूजा

karma puja 2020 date: करमा पर्व में करम-डाली की पूजा की जाती है. यह त्योहार भादो एकादशी के दिन यानी कल 29 अगस्त को मनाया जाएगा है. इसे हम ‘राजीकरम’ के नाम से जानते हैं. कुछ क्षेत्र में अलग-अलग दिनों में मनाया जाता है. जैसे: इंदकरम, जितियाकरम, दसईकरम, कातिककरम, परंतु मनाने का उद्देश्य एक ही है और पूजापाठ भी एक होता है, सिर्फ सुर्रागीत के राग में दसईकरम के बाद परिवर्तन होता है. इस करम त्योहार में खासकर लड़कियां उपवास करती हैं. यह पर्व भाई-बहन के बीच गहरे रिश्ते को भी दर्शाता है.

karma puja 2020 date: करमा पर्व में करम-डाली की पूजा की जाती है. यह त्योहार भादो एकादशी के दिन यानी आज 29 अगस्त को मनाया जाएगा है. इसे हम ‘राजीकरम’ के नाम से जानते हैं. कुछ क्षेत्र में अलग-अलग दिनों में मनाया जाता है. जैसे: इंदकरम, जितियाकरम, दसईकरम, कातिककरम, परंतु मनाने का उद्देश्य एक ही है और पूजापाठ भी एक होता है, सिर्फ सुर्रागीत के राग में दसईकरम के बाद परिवर्तन होता है. इस करम त्योहार में खासकर लड़कियां उपवास करती हैं. यह पर्व भाई-बहन के बीच गहरे रिश्ते को भी दर्शाता है. करम के दिन ही शाम में यदि किसी लड़की के विवाह की बात चली है, तो उनके यहां करमडौड़ा (डलिया) लाते हैं. इस संबंध में शिवनंदन उरांव ने एक गीत के माध्यम से बताने का प्रयास किया है आइए जानते है महाविद्यालय गुमला के सहायक प्राध्यापक कार्तिक उरांव के अनुसार…

करमा गीत

“डौड़ाबर’ओ ब’अदीनयो,

किचरीबर’ओ ब’अदीए

जौन खद्दिसनेकबेसे र’अस’’

नेकबेसे र’ओस,नेकबेसेमलारे

भइयाबहिनबेसे र’अदस

जिस किसी घर में करम-डौड़ा आना रहता है, उस घर में गांव के सभी लड़के-लड़कियां एवं रिश्ते में लड़की की नानी या दादी लगनेवाली महिलाएं जमा रहती हैं. लड़की के ससुराल से आनेवाले डौड़ा का इंतजार करने लगते हैं. इतने में किन्हीं- किन्हीं के मन में यह भ्रम पैदा होता है कि हमलोग की बहन या नाती के जैसा लड़का का जोड़ी लगेगा या नहीं. तब इस भ्रम को वे लोग लड़की के मां-बाप से साझा करते हैं. लड़की के मां बाप द्वारा उन लोगों को अपनी बातों से संतुष्ट किया जाता है कि लड़का-लड़की का जोड़ी ठीक भाई बहन के समान लगेगी. आदिवासी समाज में यह प्रचलन है कि किसी भी घटना-परिघटना को या प्रश्न-उत्तर को, गीत के माध्यम से प्रस्तुत किया जाता है. जब करम-कपड़ा लाते हैं, इसे भी देखकर लोगों ने गीत गाया है.

इदनाताकरमकिचरी

मकेराजलीबेसे र’ई

ससराईर ती करमकिचरीबरचा

मलकूरोनददामला ब’अकेचि’के

इस गीत में कहा गया है कि “इस वर्ष करम-कपड़ा मकड़ी जाल जैसा है. ससुराल से करम-कपड़ा आया, नहीं पहनूंगी दादा, नहीं बोल देना.’’ अर्थात इस गीत से पता चलता है कि करम-डलिया का प्रचलन बहुत ही पहले से है. गोहरा उरांव के अनुसार नयी लड़की देखने की शुरुआत भी करम के बाद ही शुरू होती थी और पसंद हो जाने के बाद कई बार आना-जाना होता था. जब तक विवाह नहीं हो जाता, तब तक करमडलिया, प्रत्येक वर्ष लड़की के यहां लेना होता था, जिसमें करम-डौड़ा के साथ करम-पूजा का सारा सामान जैसे खीरा, चिवड़ा, साड़ी एवं अन्य वस्त्र आदि रहता है. जिनके यहां करम-डौड़ा लाये हैं, उनके यहां करम काटकर सभी लड़के और लड़कियां आयेंगे और करम-कपड़ा लाये हैं, उसे ही लड़का-लड़की पहन कर करम खेलने चले जाते हैं.

इस तरह से उस वर्ष, जिनके भी घर में करम-डौड़ा लाये हैं, उन सभी के घर जाते हैं और उस कपड़ा को पहनकर अखड़ा जाते हैं. लड़का लोग उस साड़ी को धोती की तरह पहनते हैं या सिर में पगड़ी की तरह बांधते हैं और नाचते हैं. इसे देखकर गांव के बूढ़े माता-पिता पूछते भी हैं कि किनका करम-डौड़ा लाये हैं. तो बताते हैं कि फलनी-फलनी का करम-डौड़ा लाये हैं. इससे गांव के सभी लोगों को किनका-किनका करम-डलिया आया है, पता चल जाता था.

लड़की होने वाले सुसराल का ही करम-डौड़ा और पूजा का सामान लेकर करम-पूजा करने जाती है. प्रत्येक वर्ष उनके नाम से थोड़ा-सा कंड़सा धान भी रखते थे. परंतु आज करम-डौड़ा का प्रचलन कम होता दिख रहा है. और कहीं-कहीं लेते भी हैं तो पहले की तरह सार्वजनिक नहीं होता है. पहले और आज के जमाने में बहुत ही फर्क है. आज ‘चट मंगनी पट विवाह’ का प्रचलन बढ़ता जा रहा है. बहुत ही कम लोग मिलेंगे, जिनका विवाह की बात बहुत पहले से चल रही हो.

News Posted by: Radheshyam Kushwaha

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