Karma Puja 2020 : बड़कागांव (संजय सागर) : करमा पर्व भाई-बहन के सद्भाव, स्नेह और प्रेम का प्रतीक है. भाद्रपद शुक्ल पक्ष एकादशी तिथि को मनाये जाने वाले इस पर्व का इंतजार कुंवारी एवं विवाहित बहनें बेसब्री से करती हैं. विवाहित बहनों को भी करमा पर्व का इंतजार रहता है, क्योंकि विवाहित बहनें करमा की पूजा करने के लिए ससुराल से 1 सप्ताह पहले ही मायके पहुंचती है और करमा पूजा की तैयारी में मशगूल हो जाती है. करमा के लोकगीतों में भाई- बहनों का स्नेह, प्यार, खुशी, दर्द एवं पीड़ा झलकती है. इन गीतों में भाई- बहनों का गहरा रिश्ता जुड़ा हुआ है.
करमा पर्व झारखंड के अलावा छत्तीसगढ़, ओड़िशा, बंगाल, असम और बिहार के कुछ हिस्सों में भी मनाया जाता है. एक सप्ताह तक चलने वाले इस पर्व की शुरुआत तीज पर्व के संपन्न होने के बाद शुरू हो जाती है. तीज का डाला अहले सुबह नदियों एवं तालाबों में विसर्जन की जाती है. वहीं, शाम को कुंवारी बहनों के द्वारा करमा के डाल स्थापित की जाती है. कुंवारी बहनें अपने- अपने घरों से गीत- गाते हुए बांस के डाला लेकर नदी एवं तालाब पहुंचती हैं. यहां वे स्नान कर नदियों एवं तालाबों से डाला में बालू लाकर अखड़ों में रखती है. इस दौरान डाला में विभिन्न तरह के बीजों को जौ के साथ बुनती है.
करम के जाड़ तक बुनली जावा रे
ओरे सखी सब जावा देलथिन खिंदाय रे.
घोड़वा चढ़िएले एलथिन भइया राजीव रे…
मत कांदो मत खींजो बहिन फुल कुमारी रे
ओरे सखी फिर जावा होतउ हदबुद रे…
इस गीत में भाई- बहन के बीच पौधों को लेकर दर्द एवं पीड़ा झलकती है. अपने भाइयों की सुरक्षा प्रदान करने के लिए बहनें विभिन्न तरह की बीज बोती हैं. जानवर द्वारा पौधों को नुकसान पहुंचाने पर बहनों के दिल में दर्द और पीड़ा उत्पन्न हो जाता है, जिसे देखकर भाई भी अपनी बहन को सांत्वना देते हैं और बहनों की खुशियां लौटाने का संकल्प लेता है. भाई- बहनों को सांत्वना देते हुए कहते हैं कि मत रो बहना तेरी हर खुशी के लिए फसल उगाएंगे. फिर से लहरा उठेंगे तेरे फसल.
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करम के लिए डाले में स्थापित किये गये बीजों को जावा कहा जाता है. इस दौरान 7 दिनों तक सुबह- शाम बहनें जावा जोगाती है अर्थात जावा की पूजा- अर्चना कर लोकगीत के साथ गाती और झूमती है.
जावा को जगाने वाले गीत :
गोड़ा- तोरा लागो हियो, भुवां धरती मइया हों
हमर जावा है माइयेन रखिया हो…
इस गाने का अर्थ : जावा को सुरक्षित करने के लिए धरती माता के लिए गीत गाये जाते हैं. धरती माता खुश होकर फसल को हरा- भरा कर देती है. इस गाने से यह संदेश मिलता है कि धरती माता का पूजा करने से हर वर्ष फसलों का उत्पादन अधिक होता है. धरती माता को पूजा करने से क्षेत्र में अनाज, फल एवं सब्जियों का अधिक से अधिक उत्पादन होता है, जिससे भाई- बहनों के बीच गरीबी खत्म हो जाये.
करम के डाला को जगाने के लिए भाई- बहनों से संबंधित दर्जनों गीत है. उन गीतों में से कुछ गीत इस प्रकार है…
गइया के घंटिएं बाजे रे रुनुझुनूं बांसिईये बजावे रे भैया…
मच्छीये बैठेलय तोहें भाई रे संजईया भइया.
इस गीत में बहनें भाइयों लिए कामना करती है कि हमारे भाइयों पर मक्खी कभी न बैठे. जिस तरह से गायों के गले में घंटी बजने से खुशियां झलकती है, उसी तरह हमारे भाई भी बंसी बजाकर खुशी से रहे. इस तरह के गीत और नृत्य 7 दिनों तक चलती रहती है.
महिलाएं एवं खुशी के कुंवारी युवतियां सप्ताह के पांचवें दिन संयत करती हैं. इस दौरान बहने नदियों में जाकर स्नान करती हैं. नदी जाने के दौरान ये गीत गाती हैं…
बहल आवे नदी नाला, बहल आवे कांटा कुशा,
बहल आवा हो देव, हमारी बहनियां…
देबउ हो गंगा मइया दुध के ढकनियां में
ऊपर करा हमरो बहिनिया के
छान दिया हो गंगा मइया हमर बहिनियां के
उपरोक्त गीत में बहन के प्रति भाई का प्यार झलकता है. विवाहित बहनें ससुराल से नहीं आ पाती है. उस दौरान भाई नदी के किनारे गंगा मैया से कहता है कि नदी में हर तरह का कांटा और कुश बह कर आ रहा है, लेकिन मेरी प्यारी बहन नहीं आ रही है. अगर नदी के सहारे मेरी बहन आती होगी, तो हे गंगा मां मेरी बहन को छानकर मुझ से मिलवा दो…
सप्ताह के छठे दिन बहनें निर्जला उपवास करती हैं. उस दिन जावा को रात भर जगाया जाता है.
लाले लाले धेजा हो परलन ओहार रे करम चईली आईले, करम चली आईले
बड़का भइया आईले लेनिहारे
करम चली आईले
झगड़ू- झगड़ू सासु देहे बिदाई
करम चली आईले, करम चली आईले.
शाम के समय बहनें विभिन्न तरह की फूल तोड़ने जाती है, जिसे फूल लोरहे कहा जाता है. इस दौरान इस गीत को गाती है :
अलना डालावा के, डालावा मरेआवल श्री राम
पार्वती फुला लोरहे गइले श्री राम
फुलवाहि लोरहे के घूमो नही परल श्री राम
झूम गेलथिन ससुर लेनिहार श्री राम
ससुर के संग हम नहीं जाइब श्री राम.
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विभिन्न तरह के फूल लाने के बाद बहनें शाम में स्नान करती है. इसके बाद शाम को आंगनों या अखरों में करम पौधे की डाली लायी जाती है. उस समय बहनों द्वारा इस लोकगीत को गाया जाता है.
शिवांगी बहिन पूज आई रे
पौधा के डारी आई, पौधा के डारी आई रे
भईया बजावे बांसुरिया
भाई संजइया भाईया…
रे बजावे बांसुरिया भइया राजीव भइया…
इन गीतों से स्पष्ट होता है कि बहनें अपने भाईयों की खुशी एवं सुरक्षा के लिए ही करम करती है. भाई भी अपनी बहनों की खुशी के लिए करम करते हैं, जिसे एकादशी पर्व कहा जाता है.
इसके बाद करम लगाकर फल, फूल आदि से पूजा की जाती है. इस दौरान महिलाएं करम डाली के चारों ओर घूम-घूम कर गीत गाती हैं. भाई खीरा लेकर बहनों से सवाल करते हैं कि करमा पर्व किसके लिए करती हो? तो बहनें जबाव देती हैं भाईयों के मंगलकामना के लिए. बाद में भाई खीरे से मारता है, जिसके बाद महिलाएं एवं युवतियां फलाहार करती हैं. पूजा के बाद रात भर लोक नृत्य करती है बहनें.
अगले दिन अहले सुबह में करम की डाल को अंकुरि- बांकुरी के साथ करम के पौधा को खिलाती है. इस दौरान बहने एवं महिलाएं खीरा, चना, अरवा चावल और मटर को पत्ते में लिपट कर बांध देती हैं एवं काशी घास का कंगना चढ़ाती हैं.
इस दौरान के गीत : अकुरी बकरी खीरा खोईचा में एकादशी कर्म में यह खेल खेले में नेहरा में एकादशी करम में…
करमा पर्व की पूजा संपन्न होने के बाद सप्ताह के सातवें दिन अहले सुबह गांव के गोड़ाइत या गवांट भगत या वीरभगत जंगलों से विभिन्न तरह के फूल लाकर गांव के अखरों में पहुंचाते हैं. तब कर्म के डाल को विसर्जित किया जाता है. इस दौरान बहनें व महिलाएं कदम की डाल के नीचे खूब नृत्य करती है. इसके बाद करम के डाल के साथ गीत गाते हुए नदी एवं तालाब में पहुंचती है, जहां करम की डाल को विसर्जित कर दिया जाता है.
(शोध का स्रोत- मेरी बहन शिवांगी, मां सोमरी, गांव के गोड़ाइत एवं वीर भगत).
Posted By : Samir Ranjan.