Kashi Vishwanath Corridor: 12 ज्योतिर्लिंगों में से एक है काशी विश्वनाथ, भगवान शिव यहां स्वयं हैं स्थापित

हिन्दू धर्म में मान्यता है कि प्रलयकाल में भी इस शहर का कुछ नहीं बिगड़ने वाला. उस समय भगवान शंकर इसे अपने त्रिशूल पर धारण कर लेते हैं और सृष्टि काल आने पर इसे नीचे उतार देते हैं.

By Prabhat Khabar News Desk | December 13, 2021 7:22 AM
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Kashi Vishwanath Corridor: जिस शहर के घाट-घाट की दुनिया अभिलाषी है, उस शहर का नाम काशी है. भगवान शिव की नगरी वाराणसी में उनका धाम काशी विश्वनाथ के नाम से बना है. आज उसी का लोकार्पण है. मगर क्या आप जानते हैं कि बाबा विश्वनाथ की शिवलिंग का क्या पौराणिक इतिहास है?

दरअसल, काशी विश्वनाथ मंदिर बारह ज्योतिर्लिंगों में से एक है. काशी में स्थपित इस ज्योतिर्लिंग की बहुत मान्यता है. मान्यता है कि यह मंदिर पिछले कई हजार वर्षों से वाराणसी में स्थित है. ऐसा माना जाता है कि एक बार इस मंदिर के दर्शन करने और पवित्र गंगा में स्‍नान कर लेने से मोक्ष की प्राप्ति होती है. हिन्दू धर्म में मान्यता है कि प्रलयकाल में भी इस शहर का कुछ नहीं बिगड़ने वाला. उस समय भगवान शंकर इसे अपने त्रिशूल पर धारण कर लेते हैं और सृष्टि काल आने पर इसे नीचे उतार देते हैं.

ऐसा कहा जाता है कि एक ब्रह्मा जी और विष्णु भगवान में अहम की लड़ाई हो गई. वे दोनों स्वयं को श्रेष्ठ साबित करने पर आमादा हो गए. इसके बाद दोनों देव अपने-अपने वाहनों पर सवार होकर एक स्तंभ का छोर तलाशने लगे. विष्णुजी नीचे की ओर और ब्रह्माजी ऊपर की ओर रवाना हो गए. काफी समय बीतने के बाद भी वे दोनों उस स्तंभ छोर नहीं तलाश सके. इसके बाद उस स्तंभ से प्रकाश निकला. कुछ ही क्षण के बाद वह स्तंभ भगवान शिव के रूप में परिवर्तित हो गया. दोनों ही देव अपनी गलती का भान कर गए. इसके बाद बाबा स्वयं वहीं स्थापित हो गए. उसी ज्योतिर्लिंग को काशी विश्वनाथ धाम के नाम से जाना जाता है.

इस पूज्यस्थल को लेकर और भी कई पौराणिक कथाओं का वर्णन मिलता है. मान्यता है कि सृष्टि स्थली भी यही भूमि बतलायी जाती है. इसी स्थान पर भगवान विष्णु ने सृष्टि उत्पन्न करने की कामना से तपस्या करके भगवान आशुतोष को प्रसन्न किया था. इसके बाद उनके शयन करने पर उनके नाभि-कमल से ब्रह्मा उत्पन्न हुए जिन्होंने सारे संसार की रचना की. बनारस में मरने वाले को मोक्ष की प्राप्ति होती है. इस कहावत की वजह से भी कई लोग अपने जीवन की अंतिम शाम को इसी पूजय स्थान पर व्यतीत करने के लिए आते हैं.

भगवान शिव और माता पार्वती के आदि स्थान के नाम से विख्यात काशी विश्वनाथ धाम का जीर्णोद्धार 11वीं सदी में राजा हरीशचंद्र ने करवाया था और वर्ष 1194 में मुहम्मद गौरी ने ही इसे तुड़वा दिया था. इसे एक बार फिर बनाया गया लेकिन वर्ष 1447 में इसे जौनपुर के सुल्तान महमूद शाह ने तुड़वा दिया था.

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