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खरसावां गोलीकांड: पूर्व सीएम रघुवर दास की तरह क्या सीएम हेमंत सोरेन शहीदों के आश्रितों को करेंगे सम्मानित

Jharkhand News: वर्ष 2016 में मुख्यमंत्री रघुवर दास ने खरसावां गोलीकांड के दो शहीदों के आश्रितों को एक-एक लाख रुपये देकर सम्मानित किया था. इसके बाद शहीद के आश्रितों की न तो पहचान हो सकी है और न ही सरकारी स्तर पर सम्मान राशि दी जा सकी है.

By Prabhat Khabar Digital Desk | December 31, 2021 6:41 PM

Jharkhand News: झारखंड के सरायकेला खरसावां जिले के खरसावां में आज से करीब 74 वर्ष पूर्व एक जनवरी 1948 को हुए खरसावां गोलीकांड में बड़ी संख्या में आदिवासी शहीद हुए थे. इसकी याद में यहां हर वर्ष झारखंड के विभिन्न हिस्सों से लोग पहुंच कर शहीदों को श्रद्धांजलि अर्पित करते हैं. एक जनवरी को खरसावां के शहीदों की बरसी पर सुबह से लेकर देर शाम तक श्रद्धांजलि देने वालों का तांता लगा रहेगा. सबसे पहले बेहरासाही के दिउरी विजय सिंह बोदरा द्वारा विधिवत रूप से पूजा-अर्चना कर श्रद्धांजलि दी जायेगी. वर्ष 2016 में मुख्यमंत्री रघुवर दास ने खरसावां गोलीकांड के दो शहीदों के आश्रितों को एक-एक लाख रुपये देकर सम्मानित किया था. इसके बाद शहीद के आश्रितों की न तो पहचान हो सकी है और न ही सरकारी स्तर पर सम्मान राशि दी जा सकी है. खरसावां के शहीदों के आश्रितों को सम्मानित करने की मांग लंबे समय ये उठती रही है.

1947 में आजादी के बाद पूरा देश राज्यों के पुनर्गठन के दौर से गुजर रहा था. तभी अनौपचारिक तौर पर 14-15 दिसंबर को ही खरसावां व सरायकेला रियासतों का विलय ओडिशा में कर दिया गया था. औपचारिक तौर पर एक जनवरी को कार्यभार हस्तांतरण करने की तिथि मुकर्रर हुई थी. इस दौरान एक जनवरी 1948 को आदिवासी नेता जयपाल सिंह ने खरसावां व सरायकेला को ओडिशा में विलय करने के विरोध में खरसावां हाट मैदान में एक विशाल जनसभा का आह्वान किया था. कोल्हान के विक्षिन्न क्षेत्रों से जनसभा में हजारों की संख्या में लोग पहुंचे थे, परंतु किसी कारणवश जनसभा में जयपाल सिंह नहीं पहुंच सके थे. रैली के मद्देनजर पर्याप्त संख्या में पुलिस बल की तैनाती की गयी थी. इसी दौरान पुलिस व जनसभा में पहुंचे लोगों में किसी बात को लेकर संघर्ष हो गया. तभी पुलिस की गोलियों से कई लोगों की मौत हो गयी थी. मृतकों की संख्या कितनी थी ? आज तक इसका पता नहीं चल सका है.

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खरसावां गोलीकांड में शहीद हुए लोगों की संख्या को लेकर कोई सरकारी दस्तावेज उपलब्ध नहीं है. प्रभात खबर (झारखंड) के वरिष्ठ संपादक अनुज कुमार सिन्हा की किताब ‘झारखंड आंदोलन के दस्तावेज : शोषण, संघर्ष और शहादत’ में इस गोलीकांड पर एक अलग से अध्याय है. इस अध्याय में वो लिखते हैं कि मारे गए लोगों की संख्या के बारे में बहुत कम दस्तावेज उपलब्ध हैं. उस समय के कलकत्ता से प्रकाशित अंग्रेजी अखबार ‘द स्टेट्समैन’ ने घटना के तीसरे दिन अपने तीन जनवरी के अंक में इस घटना से संबंधित एक खबर छापी थी, जिसका शीर्षक था ‘35 आदिवासी किल्ड इन खरसावां’. पूर्व सांसद और महाराजा पीके देव की किताब ‘मेमोयर ऑफ ए बायगॉन एरा’ के शीर्षक ‘दॉ पीपुल मूवमेंट एगेंस्ट दॉ मर्जर ऑफ स्टेट्स’ में इस घटना में दो हजार लोगों के मारे जाने की बात कही गयी है.

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एक जनवरी को खरसावां के शहीदों की बरसी पर सुबह से लेकर देर शाम तक श्रद्धांजलि देने वालों का तांता लगा रहेगा. सबसे पहले बेहरासाही के दिउरी विजय सिंह बोदरा द्वारा विधिवत रूप से पूजा-अर्चना कर श्रद्धांजलि दी जायेगी. इसके बाद आम से लेकर खास लोग श्रद्धांजलि देने के लिए पहुंचेंगे. साथ ही विभिन्न सामाजिक व राजनीतिक संगठनों की ओर से खरसावां के शहीदों को श्रद्धांजलि दी जायेगी. श्रद्धांजलि देने के लिये दिनभर श्रद्धालुओं का तांता लगा रहेगा. कोविड-19 को लेकर इस वर्ष लगातार दूसरे साल यहां किसी तरह के सभा का आयोजन नहीं होगा.

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वर्ष 2016 में मुख्यमंत्री रघुवर दास ने खरसावां गोलीकांड के दो शहीद महादेवबुटा (खरसावां) के सिंगराय बोदरा व बाईडीह (कुचाई) के डोलो मानकी सोय के आश्रितों को एक-एक लाख रुपये देकर सम्मानित किया था. इन दो शहीदों के अलावा सरकारी स्तर पर किसी भी अन्य शहीद के आश्रितों की न तो पहचान हो सकी है और न ही सरकारी स्तर पर सम्मान राशि दी जा सकी है. खरसावां के शहीदों के आश्रितों को सम्मानित करने की मांग लंबे समय ये उठती रही है.

रिपोर्ट: शचिंद्र कुमार दाश

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