Achinta Sheuli: 11 की उम्र में पिता का निधन, सिलाई कर मां ने बनाया वेटलिफ्टर, ऐसा रहा गोल्ड तक का सफर
Commonwealth Games 2022: अचिंता शेउली ने भले ही कॉमनवेल्थ गेम्स में भारत के लिए गोल्ड मेडल जीत लिया है, लेकिन उनके इस सफर और उपलब्धि में उनकी मां की संघर्ष छीपी है. परिवार के रोज के खर्चों के लिये उनकी मां ने कपड़ों की सिलाई शुरू की और अचिंता को खेल जारी रखने की सलाह दी.
बर्मिंघम में जारी कॉमनवेल्थ गेम्स (Commonwealth Games 2022) के तीसरे दिन भारत को एक और गोल्ड मेडल मिला. भारत के लिए अचिंता शेउली ने वेटलिफ्टिंग में तीसरा गोल्ड जीता. अचिंता ने पुरुषों के 73 किलो वर्ग में नये रिकॉर्ड के साथ जीत हासील की. पश्चिम बंगाल के अचिंता शेउली ने स्नैच में 143 किलो वजन उठाकर राष्ट्रमंडल खेलों का नया रिकॉर्ड बनाया है. उन्होंने क्लीन एवं जर्क में 170 किलो समेत कुल 313 किलो वजन उठाकर राष्ट्रमंडल खेलों का रिकॉर्ड इतिहास रच दिया. बता दें कि कॉमनवेल्थ गेम्स में भारत को अब तक कुल 6 पदक मिल चुके हैं और खास बात यह है कि ये सभी मेडल वेटलिफ्टिंग में ही आये हैं.
सिर्फ 10 साल की उम्र से कर रहें हैं वेटलिफ्टिंग
अचिंता शेउली ने वेटलिफ्टिंग को करियर बनाने के लिए महज 10 साल की उम्र से ही तैयारी शुरू कर दी थी. अचिंता ने अपने भाई के साथ जिम में वक्त बिताने के साथ इसकी शुरुआत की. जहां पर वो सिर्फ बैठक (दंड-बैठक) और डॉन (खास तरह का पुशअप) किया करते थे.
11 की उम्र में पिता का निधन
अचिंता के गोल्डमेडल तक के सफर में उनके बड़े भाई आलोक की बड़ी भूमिका और त्याग रहा है. आलोक भी वेटलिफ्टर बनना चाहते थे, लेकिन साल 2013 में पिता का निधन के बाद उन्हें वेटलिफ्टिंग छोड़ना पड़ा. जब पिता का निधन हुआ था, उस समय अचिंता केवल 11 साल के थे. ऐसे में भाई आलोक को परिवार की आर्थिक मदद करने के लिये अपने सपने को त्यागना पड़ा.
अचिंता को वेटलिफ्टर बनाने के लिए मां को करना पड़ा सिलाई
अचिंता शेउली ने भले ही कॉमनवेल्थ गेम्स में भारत के लिए गोल्ड मेडल जीत लिया है, लेकिन उनके इस सफर और उपलब्धि में उनकी मां की संघर्ष छीपी है. परिवार के रोज के खर्चों के लिये उनकी मां ने कपड़ों की सिलाई शुरू की और अचिंता को खेल जारी रखने की सलाह दी.
जीत पर भाई अलोक ने दिया बयान
2020 में जब राज्य सरकार ने अचिंता को पुरस्कार दिया, तब कोई नहीं जानता था कि हमारे गांव के एक लड़के ने राष्ट्रमंडल खेलों में भाग लिया है. राज्य के खेल मंत्री भी अनजान लगते हैं, हमें सरकारी समर्थन की जरूरत है. अभी हमें यह देखना बाकी है कि वे इसके लिए कितना पैसा देते हैं.