कोलकाता : ममता बनर्जी के मुस्लिम वोट बैंक में पीएम मोदी ने सेंध लगा दी है. एग्जिट पोल के रिजल्ट यह बता रहे हैं. पोलस्ट्रैट के सर्वे में कहा गया है कि बंगाल चुनाव 2021 में 13.10 फीसदी मुसलमानों ने भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के लिए वोट किया है. 20 फीसदी मुसलमानों ने इस बार कांग्रेस-वाम मोर्चा-इंडियन सेक्युलर फ्रंट के गठबंधन संयुक्त मोर्चा के लिए मतदान किया.
लगातार दो चुनावों में ममता बनर्जी की पार्टी तृणमूल कांग्रेस के पक्ष में एकमुश्त मतदान करने वाले मुसलमानों में 1.90 फीसदी ने अन्य दलों के लिए वोट किया. तृणमूल कांग्रेस को 65.10 फीसदी मुसलमानों का वोट इस चुनाव में मिला है, ऐसा पोलस्ट्रैट का मानना है. पोलस्ट्रैट के आंकड़े अगर सही हैं, तो यह तय है कि इस बार मुस्लिम वोटों का बिखराव हुआ है और उसका सबसे ज्यादा फायदा भाजपा को हुआ है.
ममता बनर्जी को इस बात का एहसास था कि अगर मुस्लिम वोट बंट गया, तो उनकी परेशानी चुनाव के बाद बढ़ जायेगी. यही वजह है कि वह अपनी हर जनसभा में यह अपील करती थीं कि अपना वोट बंटने मत देना. इसके लिए उन्होंने मुसलमानों को एनआरसी और सीएए का डर भी दिखाया. कहा कि अगर भाजपा की सरकार बंगाल में बन गयी, तो आपलोगों को ही सबसे ज्यादा परेशानी होगी.
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ममता बनर्जी ने कई जनसभाओं में कहा कि अगर आपने तृणमूल को 200 से ज्यादा सीटें नहीं दीं, तो बंगाल में भाजपा की सरकार बन जायेगी और आपलोगों को डिटेंशन सेंटर में भेज दिया जायेगा. उस वक्त मैं कुछ नहीं कर पाऊंगी आपलोगों के लिए. बावजूद इसके, मुस्लिम वोटों का बंटवारा हुआ, ऐसा दिख रहा है. बंगाल में 30 फीसदी मुस्लिम वोट हैं और वे अब तक निर्णायक साबित होते रहे हैं.
मुर्शिदाबाद, मालदा, उत्तर दिनाजपुर, बीरभूम, दक्षिण 24 परगना और कूचबिहार ऐसे जिले हैं, जहां मुस्लिमों की बड़ी आबादी है. वर्ष 2011 की जनगणना के मुताबिक, मुर्शिदाबाद में तो 66.2 फीसदी आबादी मुसलमानों की है, जबकि मालदा में यह 51.3 फीसदी है. उत्तर दिनाजपुर में भी 50 फीसदी मुस्लिम आबादी है. बीरभूम में 37 फीसदी, दक्षिण 24 परगना में 35.6 फीसदी और कूचबिहार में 25.54 फीसदी आबादी मुस्लिमों की है.
बंगाल की करीब 125 विधानसभा सीट पर मुस्लिम वोटर निर्णायक भूमिका निभाते रहते हैं. चुनावी पंडितों का कहना है कि जिस दल की तरफ मुस्लिम वोटरों का रुझान होता है, बंगाल में सरकार उसी पार्टी की बनती है. अब तक के रिकॉर्ड ऐसे रहे हैं कि मुस्लिमों ने किसी एक पार्टी के पक्ष में ही मतदान किया है. लेकिन इस बार ऐसा नहीं हुआ. मुस्लिम वोट तीन हिस्से में बंट गये और इसका सबसे बड़ा नुकसान सत्ताधारी दल तृणमूल कांग्रेस को हुआ है.
वर्ष 2016 के चुनाव के रिकॉर्ड पर नजर डालेंगे, तो पायेंगे कि मुस्लिमों ने ममता बनर्जी की पार्टी के पक्ष में एकमुश्त वोट किया था. तृणमूल कांग्रेस ने 125 मुस्लिम बहुल विधानसभा सीटों में से 90 पर जीत दर्ज की थी. यही वजह रही कि तृणमूल कांग्रेस 200 से अधिक सीटें जीतने में कामयाब रही. तीन तलाक के मामले में केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार के स्टैंड ने मुस्लिम महिलाओं को भाजपा की ओर आकर्षित किया और लोकसभा चुनावों में मुस्लिमों के वोट भगवा दल को मिले.
बांग्लादेश की सीमा से सटे मुस्लिम बहुल जिलों में वर्ष 2019 के लोकसभा चुनावों में भारतीय जनता पार्टी को भारी बढ़त मिली. बंगाल में उसे 5 फीसदी मुसलमानों का वोट मिला था. कई लोकसभा सीटों पर भगवा दल को 15 से 20 फीसदी मुस्लिम वोट मिले. यही वजह रही कि भाजपा ने 42 में से 18 लोकसभा सीटें जीत लीं. जबकि तृणमूल कांग्रेस, जिसने वर्ष 2014 में 34 लोकसभा सीटें जीतीं थीं, वर्ष 2019 में मात्र 22 सीटें ही जीत पायी.
उत्तर बंगाल में भारतीय जनता पार्टी ने ममता बनर्जी की पार्टी तृणमूल कांग्रेस का सूपड़ा ही साफ कर दिया था. पार्टी ने रायगंज, कूचबिहार, दार्जीलिंग, जलपाईगुड़ी, बालूरघाट और मालदा उत्तर लोकसभा सीटों पर जीत दर्ज की थी, जहां मुस्लिमों की बड़ी आबादी रहती है. ये सभी इलाके बांग्लादेश की सीमा से सटे हैं. इन सभी लोकसभा सीटों पर भाजपा के उम्मीदवार बड़े अंतर से जीते थे और इसी से उत्साहित होकर भाजपा ने इस बार बंगाल में पूरी ताकत झोंक दी थी.
Posted By : Mithilesh Jha