झारखंड : बारिश के अभाव में सूख रहे कोल्हान के खेत, सुखाड़ घोषित करने की उठने लगी मांग
झारखंड के कोल्हान प्रमंडल में अच्छी बारिश नहीं होने से किसान परेशान हैं. खेत सूखने लगे हैं. पानी के अभाव में बिचड़े खराब होने लगे हैं. अब तो लोग सरकार से सूखाग्रस्त क्षेत्र घोषित करने की मांग करने लगे हैं. क्षेत्र के किसानों का कहना है पिछले तीन साल से नुकसान उठा रहे हैं.
Jharkhand News: कोल्हान प्रमंडल के जिलों में अच्छी बारिश नहीं होने से किसान परेशान हैं. खेत सूखने लगे हैं. वहीं, खेतों में डाले बिचड़े खराब होने लगे हैं. इन क्षेत्रों में सूखाड़ की स्थिति उत्पन्न होने लगी है. अब तो क्षेत्र के किसान सूखाड़ घोषित करने की मांग करने लगे हैं.
पश्चिमी सिंहभूम के जैंतगढ़ के खेतों में पड़ने लगी दरार
पश्चिमी सिंहभूम के जैंतगढ़ और उसके आसपास के क्षेत्रों में बारिश के अभाव में कोहराम मचा है. खेत सुने पड़े हैं. मजदूरों के हाथ में काम नहीं है. किसानों की हालत खस्ता है. बाजार पस्त हो चुका है. क्षेत्र में आषाढ़ पूरी तरह सूखे में तब्दील हो गया. किसानों को सावन से बड़ी आस थी. सावन का महीना भर होने को है, पर इंद्र देव की कृपा अभी तक नहीं हुई है. खेतों में दरार पड़ने लगी है. रोपनी के लिए लगाए गए बिचड़े खेतों में ही बर्बाद हो रहे हैं. अधिकांश किसानों ने बारिश की हालत देख अभी तक खेती का काम शुरू भी नहीं किया है.
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खेतों में पानी नहीं और मजदूरों के हाथ खाली
इस संबंध मामू संघ के केंद्रीय उपाध्यक्ष जमादार लागुरी का कहना है कि खेती क्षेत्र की अर्थव्यवस्था की रीढ़ है. बारिश के अभाव में पिछले तीन साल से खेती में नुकसान हो रहा है. इस साल तो अकाल की स्थिति है. 30% भी खेती होने की संभावना नहीं है. क्षेत्र को सूखाग्रस्त घोषित कर राहत योजना चलायी जाए. वहीं, जगन्नाथपुर प्रखंड के बीजेपी प्रखंड अध्यक्ष राई भूमिज का कहना है कि खेतों में पानी नहीं है. मजदूरों के हाथ में काम नहीं है. व्यापारियों के हाथ खाली हैं और राज्य की हेमंत सरकार हाथ पर हाथ धरे बैठी है. किसान मजदूर पलायन को बाध्य हो रहे हैं. सरकार जल्द राहत योजना चला कर अर्थव्यवस्था को पटरी में लाए और पलायन रोकने के लिए प्रभावी कदम उठाए.
क्षेत्र को सूखाग्रस्त घोषित करने की मांग
जेएमएम प्रखंड अध्यक्ष संदेश सरदार ने कहा कि बारिश नहीं होने के कारण क्षेत्र सूखाड़ की ओर अग्रसर है. खेती लगभग बर्बाद होने की कगार पर है. मुख्यमंत्री और कृषि मंत्री से मिलकर क्षेत्र को सूखाग्रस्त घोषित करने की मांग रखी जायेगी. वहीं, 20 सूत्री सदस्य किसान बड़ी मेहनत करते हैं. बारिश नहीं होने के कारण मेहनत के साथ उनकी पूंजी भी गोल हो जा रही है. अब खेती काफी पिछड़ गयी है. क्षेत्र को सूखाग्रस्त घोषित कर राहत योजना चलायी जाए.
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नदी का पानी लिफ्ट कर खेतों तक पहुंचाने की मांग
इधर, बारिश के अभाव में सारंडा के किसानों के खेतों में लगी धान की फसल बर्बाद होने की कगार पर है. सारंडा स्थित तितलीघाट, जोजोगुटू, जामकुंडिया, छोटानागरा, बहदा, राजाबेड़ा, लेम्ब्रे, सोनापी आदि दर्जनों गांवों के किसान अपनी सैकड़ों एकड़ कृषि भूमि पर गोड़ा धान लगाये हैं. इसके लिये खेतों की जुताई से लेकर धान की बोआई पर काफी मेहनत व पैसे खर्च किये. लेकिन वर्षा की बेरुखी ने इनकी खेती को घाटे का सौदा बना दिया है. सारंडा पीढ़ के मानकी लागुड़ा देवगम, छोटानागरा के मुंडा बिनोद बारीक, जोजोगुटू मुंडा कानुराम देवगम, मान सिंह चाम्पिया आदि ग्रामीणों ने बताया कि इस बार वर्षा नहीं होने से धान व अन्य फसल बर्बाद हो रही हैं. हमारे गांव व खेतों के बगल से नदी गुजरती है. नदी में सालों भर पानी रहता है. उसके बावजूद खेत पानी विहीन रहे, तो इससे दुर्भाग्य की बात क्या हो सकती है. ग्रामीणों ने झारखंड सरकार के सिंचाई विभाग व सांसद विधायक से मांग किया है कि वे नदी के पानी को लिफ्ट कर हमारे खेतों में पहुंचाने की सुविधा उपलब्ध कराएं.
सुवर्णरेखा परियोजना : एक तरफ नहर सूखी, तो दूसरी तरफ लबालब
दूसरी ओर, सुवर्णरेखा परियोजना की दो तस्वीरें उसके दोहरेपन को बयां कर रही हैं. एक तरफ नहर सूखी है, तो दूसरी तरफ लबालब. दोनों नहर गालूडीह बराज से निकली है. एक बायीं नहर है, तो दूसरी दायीं नहर है. बायीं नहर गालूडीह से बहरागोड़ा तक करीब 69 किमी है, जो सूखी है. इससे झारखंड की भूमि सिंचित होती है. नहर में पानी नहीं छोड़ने से झारखंड के खेत सूखे पड़े हैं. इस नहर से साढ़े आठ हजार हेक्टेयर में सिंचाई हो सकती है, पर नहर में पानी नहीं छोड़ा गया. तर्क दिया जा रहा कि गालूडीह डैम में 94 मीटर आरएल पानी स्टोर होगा, तब बायीं नहर में पानी जा सकता है.
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झारखंड की जमीन को नहीं मिलता पानी
94 मीटर आरएल स्टोर करने पर पश्चिम दिशा के खेत और गांव डूबने लगते हैं. इसके लिए पहले गार्डवाल बनेगा, फिर पानी छोड़ा जायेगा. वहीं, बायीं नहर तीन-चार किमी अपूर्ण है, इसलिए पानी नहीं छोड़ा जाता है. दूसरी ओर दायीं नहर गालूडीह शून्य किमी से गुड़ाबांदा होते हुए ओडिशा तक 56 किमी बनी है, इस नहर से सीधे ओडिशा को पानी जाता है. इससे 56 किमी झारखंड की जमीन को पानी नहीं मिलता. इस पर परियोजना का तर्क है दायीं नहर और गालूडीह बराज डैम निर्माण में खर्च की कुल राशि में 96 प्रतिशत ओडिशा ने खर्च किया है इसलिए पानी पर उसका पहला हक है. नतीजतन जिस नहर से झारखंड के खेत सिंचित होंगे वह सूखी है. इससे यहां खेती ठप है. वहीं दूसरी ओर दायीं नहर से ओडिशा पानी जा रहा. वहां खेती कार्य जारी है.