एक जोड़ी जूता के मालिकाना हक की लड़ाई अब अदालत तक पहुंच गयी है. एक कवि का दावा है कि जूता उनका है, जबकि एक नेता का कहना है कि उनका है. अब अदालत फैसला करेगी कि जूता किसका है. 325 रुपये के जूते के लिए दोनों पक्ष अब तक हजारों रुपये खर्च कर चुके हैं. क्योंकि यह मुद्दा अब उनके मान-सम्मान से जुड़ गया है. दोनों गत सात वर्षों से जूते के लिए केस लड़ रहे हैं.
23 अगस्त 2015 को बर्दवान जिले के कालना स्थित गोपालबाड़ी में एक कवि सम्मेलन का आयोजन हुआ था. मौके पर उप प्रधान सिद्धेश्वर आचार्य और कवि मनोरंजन साहा भी मौजूद थे. सम्मेलन संपन्न होने के बाद मनोरंजन ने देखा कि उनके जूते गायब हैं. उन्हें नंगे पैर घर जाना पड़ा. रास्ते भर जूता चोरी होने पर अफसोस करते गये, क्योंकि हाल ही में उन्होंने नदिया की एक दुकान से 325 रुपये में जूते खरीदे थे. इस घटना के दो दिनों बाद कालना पुराना बस स्टैंड पर सिद्धेश्वर को वैसा ही जूता पहने देख वह खुद पर काबू नहीं रख पाये. जूते को लेकर दोनों में तीखी नोकझोंक भी हुई. स्थानीय लोगों ने बीच-बचाव कर मामला शांत कराया.
मनोरंजन का कहना था कि सिद्धेश्वर ने जो जूते पहन रखे है, वे उनके हैं. लेकिन सिद्धेश्वर यह मानने को तैयार नहीं थे. बाद में कवि ने सोशल मीडिया पर एक कविता पोस्ट की, लिखा- “ कवि के चोरी हो गये जूते / चोर दे रहे हजारों जूते / सड़क चौराहे पर चर्चा जोर, नेता बन गया जूता चोर.” उनकी यह कविता काफी वायरल हुई. इससे नाराज नेताजी (सिद्धेश्वर) ने कवि के खिलाफ कालना थाने में शिकायत दर्ज करायी. वहीं, कवि महोदय भी अपने जूते वापस दिलाने की मांग को लेकर थाने पहुंच गये. पुलिस ने दोनों को बुलाकर मामला सुलझाने की कोशिश की, लेकिन दोनों समझौता करने को तैयार ही नहीं थे. अपनी जिद पर अड़े रहे. कोई उपाय न देख पुलिस ने दोनों को कोर्ट जाने की सलाह दे दी. इसके बाद दोनों कोर्ट पहुंचे और एक-दूसरे के खिलाफ मामला दायर किया. सात वर्ष हो गये, जूते को लेकर दायरा मामला अब तक कोर्ट में विचाराधीन है.
नेताजी के वकील गौतम मलिक ने कहा कि मामला तो शुरू में जूते को लेकर था. लेकिन अब यह मानहानि का केस बन गया. इस मामले में दोषी को जुर्माना या कारावास या दोनों हो सकता है. वहीं, कवि के वकील पिनाकी रॉय ने कहा, ” मैंने कई केस लड़े हैं. लेकिन जूतों वाला केस अनूठा है. केस जीतने पर मेरे मुवक्किल मुआवजे के लिए फिर मुकदमा कर सकता है.
उप प्रधान सिद्धेश्वर ने कहा, “ मेरे दामाद की जूतों की बड़ी दुकान है. मैं किसी का जूता भला क्यूं चुराने जाऊंगा. मुझे कई तरह से प्रताड़ित किया गया है. पुलिस के पास जाने के अलावा मेरे पास कोई चारा नहीं बचा था.” वहीं, कवि ने कहा, “ मुकदमा लड़ने में मेरे कई हजार रुपये खर्च हो चुके हैं. लेकिन मैं अदालत में साबित कर दूंगा कि उस दिन मेरे ही जूते नेता के पैरों में थे.”