सफल फ़िल्म लुका छिपी के बाद लेखक रोहन शंकर अपनी हालिया रिलीज कृति सैनन और पंकज त्रिपाठी स्टारर फ़िल्म मिमी को लेकर वाहवाही बटोर रहे हैं. फ़िल्म के लेखक रोहन शंकर ने फ़िल्म की कहानी ,स्क्रीनप्ले के साथ साथ फ़िल्म के संवाद भी लिखें हैं. फ़िल्म मिमी से जुड़ी उनकी जर्नी पर उर्मिला कोरी की हुई बातचीत…
मिमी फ़िल्म की राइटिंग का पूरा प्रोसेस क्या था?
लुका छिपी मेरी फिल्म 2019 में रिलीज हुई थी. उसके बाद क्या होगा, ये सोच रहे थे. उसी वक़्त मेडॉक ने मराठी फिल्म मला आई व्हायच के राइट्स लिए थे. जो असल घटना पर आधारित थी. मेडॉक ने लक्ष्मण सर को कहा कि आप ये फ़िल्म बनाइए. सरोगेसी का विषय लीजिए लेकिन ज़्यादा से ज़्यादा दर्शकों को कनेक्ट कर सके. वो कहानी और स्क्रीनप्ले चाहिए. जिसके बाद हमने लिखना शुरू किया पहले तय हुआ कि महाराष्ट्र में कहानी को स्थापित करेंगे फिर लगा एमपी आखिरकार राजस्थान क्योंकि हम लड़कीं को डांसर दिखाना चाहते थे. राजस्थान में विदेशी टूरिस्ट भी आते हैं तो हमें लगा कि यही कहानी बेस्ड करना सबसे सही होगा. बीते साल फरवरी में हमने जयपुर के आगे मंडावा में शूटिंग पूरी कर ली थी सिर्फ परम सुंदरी गाना तीन महीने पहले शूट हुआ था. बाकी फ़िल्म कोविड से पहले शूट हो गयी थी.
आपकी फ़िल्म कमर्शियल सरोगेसी पर है. अभी कमर्शियल सरोगेसी भारत में प्रतिबंधित है आपकी इस पर क्या सोच है?
अभी सरकार ने कड़े नियम बना दिए हैं. एक वक्त था जब यूपी,एमपी,राजस्थान जैसे जगह सरोगेसी के लिए हब थे. बहुत सारी लड़कियां पैसों के लिए सरोगेट मां बनती थी।पति अपनी पत्नियों को जबरदस्ती सरोगेट बनवाते थे ताकि पैसे कमा सकें. अभी कानून आने से ये खत्म हो गया है।जो बहुत अच्छी बात है. अभी अफ्रीका में ये चल रहा है.
लेखक के तौर पर सबसे चुनौतीपूर्ण दृश्य आपके लिए फ़िल्म का कौन सा था?
क्लाइमेक्स सबसे मुश्किल था. मराठी फिल्म में एक अलग क्लाइमेक्स था. जो असल में हुआ था उन्होंने वही रखा था. हम किसी भी किरदार को फ़िल्म में नेगेटिव नहीं दिखाना चाहते थे. हम बताना चाहते थे कि हालात ऐसे होते हैं कि आदमी गलत फैसले कर जाता है. हम चाहते थे कि दर्शक थिएटर से हैप्पी महसूस करते हुए जाए. मैंने जब क्लाइमेक्स सोचा और बताया तो लक्ष्मण सर को बहुत अच्छा लगा फिर हमने उसे लिखा. फ़िल्म की शूटिंग के वक़्त सभी एक्टर्स ने क्लाइमेक्स की तारीफ की.
फ़िल्म की कहानी में समाज के नज़रिए को अनदेखी करने की कोई खास वजह रही?
दो घंटे में हमें जितनी कहानी कहनी थी जो मुद्दे अहम थे उनको हमने छुआ. समाज कुछ भी बोल ले. मिमी और उसके परिवार का दर्द ज़्यादा बड़ा है तो उस पर ही फोकस करें. समाज कुछ भी कहे फर्क नहीं पड़ता है.
फ़िल्म इमोशनल है तो क्या शूटिंग के दौरान एक्टर्स इमोशनल ब्रेक डाउन से भी गुज़रे?
हां कई बार हुआ है. रिहाई गाने में कृति पाउडर लगा रही है और उसके बाद जो पोस्टर्स को फाड़कर रो रही है. वो सीन कट होने के बाद भी वो रोती रही थी. इतना वो ज़्यादा इमोशनल हो गयी थी. फ़िल्म में अमेरिकन एक्ट्रेस एबलिन एडवर्ड हैं. जो समर के किरदार में हैं. वो वहां की मेथड एक्टर हैं. वो सीन जब उसे मालूम पड़ता है कि बच्चा डाउन सिंड्रोम की बीमारी से ग्रसित है. उस सीन की शूटिंग के दौरान वो पूरे दिन रोती रही थी. लक्ष्मण सर उसको बोल रहे थे कि सीन खत्म हो गया है लेकिन उसने कहा कि पता नहीं क्यों मेरे आंसू रुक ही नहीं पा रहे हैं. वैसे इमोशनल सीन के दौरान पूरे सेट पर एकदम शान्ति छा जाती थी. सीन होने के बाद सब एक दूसरे से बात कर माहौल को नॉर्मल करने की कोशिश करते थे.
कोई ऐसा सीन जिसको शूट करते हुए पूरा सेट हंसकर लोट पोट हुआ हो?
पंकज जी जो सई के घर गए हैं. मौलवी साहब के साथ वाला सीन. वो सीन जब शूट हो रहा था बाप रे बाप बहुत हंसी सबको छूट रही थी. पंकज जी जादूगर हैं. वो कमाल के एक्टर हैं. वो डायलॉग और सीन को अपना बना लेते हैं. जिस वजह से वो रियल लगता है और इतना कनेक्ट होता है कि शूटिंग के दौरान ही हमसे हंसी नहीं रुक रही थी.
लुका छिपी लिव इन पर थी मिमी सरोगेसी दोनों ही फिल्में विवादित और बोल्ड विषय पर रहे हैं लेकिन ये दोनों ही फिल्में पारिवारिक रही हैं ओटीटी के बोल्ड कंटेंट वाली फिल्मों और वेब सीरीज पर आपकी क्या सोच है?
जो गाली गलौज और सेक्स सीन वाले कंटेंट हैं वो कुछ लेखकों का सिनेमा है. वे अपनी कहानी को उस तरह से कहना चाहते हैं लेकिन मेरा वो सिनेमा नहीं है. मुझे उससे कोई दिक्कत भी नहीं है. वो भी एक तरह का सिनेमा है लेकिन मैं कोशिश करूंगा.जहां तक हो सके उससे दूर रहने की क्योंकि उस मामले में मेरी सोच थोड़ी पुरानी है.
लुका छिपी से आप इंडस्ट्री का परिचित नाम बन चुके हैं उससे पहले क्या आपकी जर्नी थी और कैसे लेखन में आना हुआ?
मैं लोअर मिडिल क्लास परिवार से हूं. मैं कल्याण में रहता हूं. 2007 में ग्रेजुएशन करने के बाद मैंने तय किया कि कुछ क्रिएटिव करना है तो मैं एक रेडियो जॉकी के वर्कशॉप में जाकर सीखता था. रेडियो जॉकी बनना था लेकिन किसी ने काम ही नहीं दिया. 2007 की बात कर रहा हूं. उस वक़्त एफएम रेडियो मुम्बई में बड़ी चीज होती थी. उसी दौरान किसी ने एफटीआईआई जाने को कहा गया सीट नहीं थी।. एक दूसरे इंस्टीट्यूट गया. उस वक़्त राइटिंग का कुछ पता नहीं था. बस पता था कि फिल्मों में कुछ करना है तो दो चीज़ें आम आदमी को पता होती है एक्टिंग और डायरेक्शन. मैंने पूछा एक्टिंग की फीस क्या है उन्होंने कहा डेढ़ लाख. मैंने पूछा डायरेक्शन की वो भी डेढ़ लाख. मैंने बोला आप अपनी फीस का चार्ट दिखाइए. उसमें 25 हज़ार एक कोर्स के आगे लिखा था तो मैंने सोचा यही कर लेता हूं. मेरे बजट में है. वो कोर्स राइटिंग का था. उस वक़्त मुझे पहली बार मालूम हुआ कि राइटर भी कोई होता है. रिश्ते में हम तुम्हारे बाप होते हैं बोला अमिताभ बच्चन ने है लेकिन लिखा कादर खान ने था. आज खुश तो बहुत होगे सलीम जावेद ने लिखा है और बच्चन ने बोला है. बोला है क्योंकि किसी ने लिखा है. उसके बाद मैंने लिखना शुरू किया. घर भी चलाना था तो प्रोडक्शन अस्सिटेंट ,डायरेक्शन सहित बहुत सारे छोटे मोटे काम भी किए लेकिन लिखना जारी रखा. मैं तय कर चुका था कि मुझे राइटर ही बनना है. राइटर के तौर पर ब्रेक एक मराठी फिल्म में लक्ष्मण सर ने ही दिया था. मैंने उसके बाद 2015 में लुका छिपी का फर्स्ट ड्राफ्ट लिखा. कुछ महीनों में फ़िल्म की स्क्रिप्ट पूरी हो गयी. हमने कई प्रोडक्शन हाउस से बात की लेकिन फ़िल्म के विषय की वजह से कोई उस पर फ़िल्म बनाने का जोखिम नहीं लेना चाहता था. 2018 में मेडॉक को कहानी पसंद आयी. जब मैने शुरुआत की थी 2009 में उससे अभी हालात काफी बदले हैं. लेखकों की इज़्ज़त बढ़ी है. अलग अलग कहानियां लोग करना चाहते हैं. यही वजह है कि लुकाछिपी और मिमी जैसी अलग कहानियां बन पा रही हैं. दस साल पहले लोग इन कहानियों पर पैसा नहीं लगाते थे.
आपकी अगली फिल्म कौन सी है?
अगली फिल्म हेलमेट कंडोम पर है।वो भी रिलीज के लिए तैयार है.