कुड़मालि कविता : धान सेंइति पाड़ेइने

अघन आर कारतिक मास, धान काटा काटि। आबगास नेखत चासा भाइ, अना मास मटा मटि।। कुड़मालि कहतुके आहेइक, अघनेकर आठे। बाइद बइहार पाकि गेलेइक, जंदे तंदे काटें।।

By Mithilesh Jha | December 15, 2023 1:13 PM

अघन आर कारतिक मास, धान काटा काटि।

आबगास नेखत चासा भाइ, अना मास मटा मटि।।

कुड़मालि कहतुके आहेइक, अघनेकर आठे।

बाइद बइहार पाकि गेलेइक, जंदे तंदे काटें।।

झानेझापाने लागा, गटाइ हेलेइक छिंड़ा।

खेते खेते डिंगाइ देहाक, बांधिकुहुन बिंड़ा।।

आपन आपन हंसुआ खजि, आनत पाजाइ के।

बिंड़ा राखत धान काटि, गंछा लागाइ के।।

बांधिकुहुन डिंगाउअत, खेतेक माझे–धारे।

खजे गेले कामिइआ नि, पाउआहात कनअ घारे।।

खेरेइए घड़ना घड़ें, खजिकुहुन कांटा।

बाढ़े लाइ किनि आने, बाढ़िन किमबा झांटा।।

बिंड़ा आनत चांड़े–चांड़े, केउ भार करि।

केउ आने मुड़े उभि, केउ गरु गाड़ि।।

टाटरा ठाठेइन जलइ ठंकि, केउ पिटे धान।

सांइझ बेरा धुंका-धुंकि, राखि कांइड़ेक मान।।

बर मेटे आउड़ पाचाइ, बांइध बांधेक तेंहें।

सिकल दड़ि आरअ पाकाइ, इटा मिछा नहे।।

धान सेंइति किंकरे, पाड़ेइने डिमनि।

राखि देलेइक धान भरि, लेसे अकर घिरनी।।

किंकर महतो ‘बिरबानुआर’, कोंचो, सिल्ली, रांची

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