Kullu Dusshera 2023: इसलिए खास है कुल्लू का अंतरराष्ट्रीय दशहरा, लोकोत्सवों का सरताज है ये पर्व

Kullu Dusshera 2023: कुल्लू घाटी में आयोजित होने वाले लोकोत्सवों का सरताज है कुल्लू दशहरा. यह विशाल लोकदेव समागम देशभर में दशहरा संपन्न होने के बाद आरंभ होता है. सत्रहवीं सदी में राजा मान सिंह ने इस उत्सव को व्यापारिक रंग दिया.

By Prabhat Khabar News Desk | October 24, 2023 6:40 AM

लोक संस्कृति

संतोष उत्सुक, टिप्पणीकार

  • कुल्लू घाटी में आयोजित होने वाले लोकोत्सवों का सरताज है कुल्लू दशहरा.

  • यह विशाल लोकदेव समागम देशभर में दशहरा संपन्न होने के बाद आरंभ होता है.

हिमाचल प्रदेश में व्यास नदी के किनारे बसे शहर कुल्लू में ढोल, शहनाई, रणसिंघे बज रहे हैं. पर्वत शिखरों, घाटियों व पगडंडियों से रंग-बिरंगी पालकियों व रथों में विराजे देवता, ऋषि, सिद्ध व नाग पधार रहे हैं. इस देव यात्रा में पीतल, तांबे, चांदी के वाद्य, रंग-बिरंगे झंडे, चंवर व छत्र, विशेष चिह्न, अनुभवी पुजारी, पुरोहित, गूर व कारदार सब शामिल हैं. यहां दशहरा मनाया जा रहा है. हिमालय की गोद में जब-जब लोक उत्सव आयोजित होते हैं, तब-तब आम जनता अपने देवी-देवताओं से भी मिलती है.

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रूस, समरकंद, यारकंद, तिब्ब्त और चीन से भी व्यापारी आते थे

कुल्लू घाटी में आयोजित होने वाले लोकोत्सवों का सरताज है कुल्लू दशहरा. यह विशाल लोकदेव समागम देशभर में दशहरा संपन्न होने के बाद आरंभ होता है. सत्रहवीं सदी में राजा मान सिंह ने इस उत्सव को व्यापारिक रंग दिया. आर्थिक कारणों से यह उत्सव तब शुरू होता था जब देश के निचले भागों में दशहरा संपन्न हो चुका हो, ताकि अधिक व्यापारी शामिल हो सकें. तब यहां रूस, समरकंद, यारकंद, तिब्ब्त और चीन से भी व्यापारी आते थे.

सुल्तानपुर, अखाड़ा बाजार व ढालपुर मैदान में मेले की खूब रौनक होती है

उत्सव में बिकने आये घोड़ों की दौड़ से लेकर शाही कैंपों में अपने-अपने ढंग का नाच-गान खानपान होता रहता था. समय के साथ बदलाव आते रहे, कुछ लोकतंत्र व शासकतंत्र ने भी प्रयास किये. शहर के तीन मुख्य हिस्से रहे सुल्तानपुर, अखाड़ा बाजार व ढालपुर मैदान में मेले की खूब रौनक होती है.

रघुनाथ जी की पावन सवारी को रस्सों से खींचकर दशहरा की शुरुआत होती है

ढालपुर मैदान में लकड़ी से बने कलात्मक व आकर्षक सजे रथ में, फूलों के बीच आसन पर विराजे रघुनाथ जी की पावन सवारी को रस्सों से खींचकर दशहरा की शुरुआत होती है. इससे पहले देवी-देवता सुल्तानपुर स्थित रघुनाथ जी के मंदिर में माथा टेक, राजमहल में जाते हैं. सुल्तानपुर में रघुनाथ जी को पालकी में सुसज्जित कर देव समुदाय को गाजे-बाजे के साथ ढालपुर लाया जाता है.

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देवी-देवता शोभायमान रहते हैं

रथ में बिठाकर विधिपूर्वक पूजा-अर्चना की जाती है. राज परिवार के सदस्य राजसी वेशभूषा में छड़ी लेकर उपस्थित रहते हैं. आसपास अनेक देवी-देवता शोभायमान रहते हैं. हर श्रद्धालु चाहता है रथ खींचे, मगर ऐसा कहां होता है.

इस आयोजन में रावण, मेघनाद व कुंभकरण के पुतले नहीं जलाये जाते

यह उत्सव आज भी क्षेत्रवासियों के लिए अपने देवताओं से मिलने का विशेष अवसर है. आयोजन में देव नृत्य होता है तो श्रद्धालु भी देर रात तक उनके साथ नृत्य में मगन रहते हैं. देव गूर के माध्यम से भविष्यवाणी करते हैं. भक्त मनौतियां करते हैं. दिलचस्प है कि इस आयोजन में रावण, मेघनाद व कुंभकरण के पुतले नहीं जलाये जाते. दशहरा के अंतिम दिन लंका दहन अवश्य होता है.

देवता व्यास नदी लांघे बिना इस देव समारोह का हिस्सा बनते हैं

निश्चित समय पर रघुनाथ जी मैदान के निचले हिस्से में नदी किनारे ग्रामीणों द्वारा बनायी लकड़ी की सांकेतिक लंका को जलाने जाते हैं. शाही परिवार की कुलदेवी होने के नाते देवी हिडिंबा भी यहां विराजमान रहती हैं. परंपराएं ऐसी हैं कि कई देवता व्यास नदी लांघे बिना इस देव समारोह का हिस्सा बनते हैं. कभी इस समागम में देव शिरोमणि श्री रघुनाथ जी के पास हाजिरी देने पूरे 365 देवी-देवता पधारते थे, अब यह संख्या कम रह गयी है.

देवी-देवताओं को सरकार नजराना पेश करेगी

इस वर्ष अंतरराष्ट्रीय कुल्लू दशहरा पर्व 24 से 30 अक्तूबर तक आयोजित होगा. कुल्लू घाटी व देशभर से आने वाले लोक कलाकार अपना सांस्कृतिक रंग बिखेरेंगे. हर बरस की मानिंद आमंत्रित देवी-देवताओं को सरकार नजराना पेश करेगी.

इस बार एक और दशहरा कुल्लू में मनाइए, आइए

दशहरा के साथ-साथ श्रद्धालु कुल्लू के रघुनाथ मंदिर के अलावा कुल्लू-मनाली रोड पर वैष्णो देवी गुफा मंदिर, पहाड़ी चित्रकला व भेखली के भुवनेश्वरी मंदिर, दियार में विष्णु मंदिर, बजौरा के विश्वेश्वर मंदिर की यात्रा कर सकते हैं. मनाली, रोहतांग और लाहौल स्पीति घूम सकते है. इस बार एक और दशहरा कुल्लू में मनाइए, आइए.

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