Kumartoli of Kolkata is Hub of making Durga Puja Idols: जैसे जैसे दुर्गा पूजा का दिन नजदीक आ रहा है, इस त्योहार को लेकर लोगों में उत्साह बढ़ते देखा जा रहा है. इस पर्व को पश्चिम बंगाल में भव्य तरीके से मनाया जाता है. इसके अलावा बिहार, झारखंड में पश्चिम बंगाल की तरह की दुर्गा मां की मूर्तियों को पंडाल में नवरात्रि के मौके पर रखकर पूजा की जाती है. आपको बता दें कोलकाता में कुम्हारटोली इलाके में दुर्गा जी की मूर्ति बनाई जाती है. उत्तरी कोलकाता का यह अनोखा इलाका वह स्थान है जहाँ कुशल कारीगर और मूर्तिकार देवी दुर्गा की भव्य मूर्तियों में जान डाल देते हैं. यह स्थान इसे रचनात्मकता और शिल्प कौशल का केंद्र बनाता है जो हर साल शहर के दिल और आत्मा को लुभाता है.
#Kumartuli is the traditional potters quarter which is over 300 years old.
In the lead up to DurgaPuja,thousands of artisans toil diligently to create some of the most stunning creations#experiencebengal #travelbengal #tourismbengal #bengalbeckons #stayinbengal #beautifulbengal pic.twitter.com/6RxcwLY0he— West Bengal Tourism (@TourismBengal) May 30, 2019
दुर्गा पूजा की तैयारी यहां आमतौर पर कई महीने पहले ही शुरू हो जाती हैं
कुम्हारटोली, जिसका बंगाली में अनुवाद कुम्हार का क्वार्टर होता है, एक ऐतिहासिक क्षेत्र है जहां कारीगरों की पीढ़ियां सदियों से अपनी कला का अभ्यास कर रही हैं. हालांकि, यह दुर्गा पूजा के दौरान है कि कुम्हारटोली वास्तव में एक आकर्षक कलाकारों के स्वर्ग में बदल जाती है. इस भव्य उत्सव की तैयारियां आमतौर पर कई महीने पहले ही शुरू हो जाती हैं और यह स्थान इस विस्तृत प्रक्रिया में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है.
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दुर्गा पूजा के दौरान कुम्हारटोली को जो चीज अलग करती है, वह सिर्फ मूर्ति बनाने की प्रक्रिया नहीं है, बल्कि इसके चारों ओर का पूरा माहौल है. इस पड़ोस की संकरी गलियाँ कार्यशालाओं से सुसज्जित हैं, जहाँ कलाकारों को मूर्तियाँ बनाते, पेंटिंग करते और सजाते देखा जा सकता है. इस रचनात्मक उन्माद को करीब से देखने के लिए आगंतुकों का स्वागत है. हवा अगरबत्तियों की भीनी-भीनी खुशबू से भर जाती है. और काम पर कारीगरों की लयबद्ध ध्वनियाँ शिल्प कौशल की एक मंत्रमुग्ध कर देने वाली सिम्फनी पैदा करती हैं.
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— Dipa Rudra Ghose (@DipaRudraGhose) October 7, 2015
कलात्मकता और शिल्प कौशल से परे, दुर्गा पूजा के दौरान कुम्हारटोली के परिवर्तन का एक महत्वपूर्ण आर्थिक प्रभाव भी है. यह त्यौहार पूरे भारत और विदेशों से पर्यटकों और भक्तों की भारी आमद को आकर्षित करता है. आगंतुकों में यह वृद्धि स्थानीय अर्थव्यवस्था को बढ़ावा देती है.
मूर्तियों को तैयार करने की यात्रा कच्चे माल के चयन से शुरू होती है
इन दिव्य मूर्तियों को तैयार करने की यात्रा कच्चे माल के चयन से शुरू होती है. कुम्हारटोली के कलाकारों ने देवी और उनके दल को आकार देने के लिए अन्य सामग्रियों के अलावा मिट्टी, पुआल और बांस को सावधानीपूर्वक चुना. मूर्ति बनाने की प्रक्रिया जटिल है, जहां हर विवरण मायने रखता है. कारीगर गहरी भक्ति और कौशल के साथ हाथ से मूर्तियाँ बनाते हैं. यह परंपरा अक्सर पीढ़ियों से चली आ रही है, कारीगरों के परिवार सदियों से इस विरासत को जारी रखे हुए हैं.
कलात्मक उत्साह, जीवंत वातावरण कुम्हारटोली को देखने योग्य स्थान बनाते हैं
अक्सर प्रभावशाली ऊंचाइयों तक पहुंचने वाली दुर्गा की मूर्तियां हर साल अद्वितीय और रचनात्मक रूप धारण कर लेती हैं. प्रत्येक कलाकार देवी के लिए अपनी व्याख्या और शैली लाता है, जिसके परिणामस्वरूप डिजाइनों की एक विविध श्रृंखला तैयार होती है जो परंपरा और नवीनता दोनों को दर्शाती है. कलाकार अपनी रचनाओं में अपना दिल और आत्मा डालते हैं, और मूर्तियाँ जीवंत रंगों, जटिल आभूषणों और अभिव्यंजक चेहरों के साथ जीवंत हो उठती हैं जो दिव्यता और अनुग्रह को दर्शाते हैं. कलात्मक उत्साह, विचारों का आदान-प्रदान और जीवंत वातावरण कुम्हारटोली को इस भव्य उत्सव के दौरान एक अवश्य देखने योग्य स्थान बनाते हैं.
दूसरे देश में भी जाती है प्रतिमाएं
दुर्गा पूजा के दौरान मूर्तिकारों की व्यस्तता काफी बढ़ जाती है. शहर या आसपास के इलाकों में स्थित पंडालों में जाने वाली प्रतिमाओं का काम तो महालय तक चलता है, लेकिन दूसरे शहर के लिए महालय से काफी पहले और दूसरे देश में जाने वाली प्रतिमाओं को पितृ पक्ष के मध्य तक रवाना कर दिया जाता है.
मिट्टी के अलावा फाइबर, थर्मोकोल और सोला से बनती है यहां मूर्तियां
मिट्टी के अलावा फाइबर, थर्मोकोल और सोला से बनी यहां की प्रतिमाओं की ख्याति व मूर्तिकारों के हुनर का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि यहां बनी मूर्तियां हर साल दुनिया के कई देशों (अमेरिका, जापान, चीन, बांग्लादेश, नेपाल, नाइजीरिया, अफ्रीका, ऑस्ट्रेलिया, श्रीलंका, युगांडा, स्विट्जरलैंड भेजी जाती रही हैं.
दुर्गा प्रतिमा हर साल नेपाल और बांग्लादेश जा रही हैं
चायना पाल एक महिला मूर्तिकार का नाम है, जिसे एक चाल (एक साथ दुर्गा, लक्ष्मी, सरस्वती, गणेश व कार्तिक) की मूर्ति बनाने में महारत हासिल है. चायना की बनाई दुर्गा प्रतिमा हर साल नेपाल और बांग्लादेश जा रही हैं.