बिहार का एक ऐसा गांव, जहां ग्रामीणों के हाथों में है जूते बनाने का परंपरागत हुनर, पलायन बनी बड़ी समस्या
बिहार के बांका की जिसक महिला ललिता देवी से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बात की. उस पसिया गांव के ग्रामीणों के हाथों में जूते बनाने का परंपरागत हुनर है. लेकिन अब वो भी इससे मुक्ति चाहते हैं और गांव में उद्योग चाहते हैं.
चंदन कुमार, बांका: बेलहर प्रखंड क्षेत्र के डुमरिया पंचायत अंतर्गत वार्ड नंबर 10 पसिया गांव वहां की महिला लाभुक ललिता देवी की वजह से आज सुर्खियों में है. इस गांव 130 परिवार दलित समाज से आते हैं. 20-25 परिवार अन्य जाति से आते हैं. गांव में शिक्षा का प्रसार बीते दशक से बढ़ा है. खास बात यह है कि यहां के लोगों में कौशल है, यानी परंपरागत जूते बनाने का हुनर है. गांव में 20-25 स्नातक हैं. आधा दर्जन लोग सरकारी नौकरी में हैं. इसमें शिक्षक, बिहार पुलिस, पीआरएस, रेलवे सहित अन्य क्षेत्र में हैं.
सरकारी योजनाओं का हाल
गांव में सड़क, बिजली, पानी की भी व्यवस्था है. हालांकि, गांव में नल-जल योजना, गली-नाली योजना, सड़क निर्माण अभी होना बाकी है. जलस्तर नीचे जाने से पेयजल समस्या अधिक परेशानी होती है. बिजली जाने के बाद स्थिति ओर विकट हो जाती है. गांव में पीएइडी के चार चापाकल है. सामुदायिक भवन, पानी टंकी, नाला निर्माण अभी अधूरा है.
पलायन बनी समस्या, महानगरों में जूता-चप्पल बनाने का काम
पसिया गांव में सबसे बड़ी समस्या पलायन से है. यहां के लोग पश्चिम बंगाल के कोलकता, मुंबई, बंगलौर जैसे बड़े शहरों में जूता-चप्पल बनाने का काम करते हैं. लेकिन, अगर गांव या जिला में जूता-चप्पल की फैक्टरी हो तो निश्चित रूप से पलायन कम होगा और आर्थिक बचत भी होगी. वहीं गांव में साफ-सफाई के आभाव देखा गया. प्रभात खबर आपके द्वार के माध्यम से यहां के लोगों से बातचीत की गयी.
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पलायन पर लगे रोक
युवा ग्रामीण शिवरंजन कुमार दास ने कहा कि पलायन को रोकने के लिए स्वरोजगार की बेहद जरुरत है. गांव के अधिकतर लोग जूता-चप्पल के कारोबार में कुशल हैं. लेकिन, रोजगार की तलाश में लगभग सभी कामगार लोग कोलकाता, मुंबई, बंगलौर में जाकर चप्पल बनाने की फैक्टरी में काम करते हैं.
कामगार को मिले स्वरोजगार
ग्रामीण बाली दास ने कहा कि गांव के करीबन 200 से अधिक कुशल कामगार लोग रोजगार के लिए बाहर प्रदेश में पलायन कर जाते हैं. मुख्यमंत्री उद्यमी योजना से प्रशिक्षण देकर रोजगार से जोड़ा जाय तो पलायन रुक जायेगा. मुख्यत: यहां कामगार को अपना स्वरोजगार चाहिए. गरीब लोग अपने परिवार से अलग रहते हैं और उन्हें आर्थिक क्षति भी होती है.
स्वास्थ्य उपकेंद्र की आवश्कता
पूर्व वार्ड पार्षद गिरिश दास ने कहा कि गांव में स्वास्थ्य सुविधा के नाम पर कुछ नहीं है. यहां से बेलहर मुख्यालय 10 किलोमीटर दूर ईलाज के लिए जाना पड़ता है. छोटी-छोटी बीमारी के लिए भी लोगों को इतनी लंबी दूरी तय करनी होती है. कांवरिया मेला के समय परेशानी और बढ़ जाती है. इसीलिए गांव में एक स्वास्थ्य केंद्र की बेहद आवश्यकता है.
जीविका समूह से जुड़ें महिलाएं
सरस्वती जीविका समूह की अध्यक्ष जुली देवी ने कहा कि गांव के समुचित विकास के लिए महिलाओं के हाथ को मजबूती देना बेहद जरुरी है. महिलाओं को जीविका संगठन से जोड़कर प्रशिक्षित किया जाये. महिलाएं घर बैठे ही पापड़,सिलाई,बुनाई जैसे स्वरोजगार से अच्छी आय अर्जित कर सकती हैं.
गांव में हो उच्च विद्यालय
ग्रामीण राहुल रंजन ने कहा कि गांव में उच्च विद्यालय नहीं है. इस वजह से आठ किलोमीटर दूर उत्क्रमित उच्च विद्यालय जाना होता है. जिसमें काफी कठिनाई होती है. साथ ही प्रखंड में एक भी डिग्री कॉलेज नहीं होने की वजह से उच्च शिक्षा से छात्र वंचित रह जाते हैं और छात्राएं पढ़ाई छोड़ देती हैं.
मुखिया बोलीं
पंचायत व यहां के सभी वार्ड के विकास के लिए योजनाएं संचालित की जा रही है. पसिया गांव में 100 फीसदी लोग को शौचालय का लाभ दिया गया है. 90 फीसदी महादलित परिवार को आवास योजना का लाभ दिया जा चुका है. शेष को भी इसका लाभ मिलेगा. अन्य सरकारी योजनाएं भी यहां उताकर क्षेत्र का चहुमुंखी विकास किया जायेगा.
-सोनी देवी, मुखिया, डुमरिया पंचायत
Published By: Thakur Shaktilochan