Varanasi News: ‘जय किसान, जय जवान’ का नारा देने वाले लाल बहादुर शास्त्री की पुण्यतिथि 11 जनवरी को मनी. साफ-सुथरी छवि और सादगीपूर्ण जीवन शैली के लिए प्रसिद्ध लाल बहादुर शास्त्री ने प्रथम प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू के निधन के बाद 9 जून 1964 को प्रधानमंत्री का पदभार ग्रहण किया था. पीएम बनने के बाद जब लाल बहादुर शास्त्री अपने रामनगर स्थित घर पर आए तो उस वक्त वीआइपी सुरक्षा के तहत उनके मिट्टी के घर पर पुलिस पहरा लगाया गया था.
संस्कृति मंत्रालय ने उनके घर को म्यूजियम के रूप में तब्दील करके लाल बहादुर शास्त्री की स्मृतियों को संजोने का काम किया है. लाल बहादुर शास्त्री की पुण्यतिथि के अवसर पर हमने म्यूजियम के बारे में लोगों को जानकारी देने की कोशिश कर रहे हैं. बेहद साधारण जीवन जीने वाले लाल बहादुर शास्त्री के घर के अंदर प्रवेश करते ही संग्रहालय के पहले कमरे में तैयार वॉर रूम में चीन और पाकिस्तान युद्ध की दुर्लभ तस्वीरें हैं. शास्त्री जी के रसोईघर और बैठक को भी उसी समय का लुक दिया गया है.
यहां 2 अक्तूबर 1904 को पूर्व पीएम के जन्म से लेकर 12 जनवरी 1966 को दिल्ली में विजय घाट पर अंत्येष्टि तक की जानकारी दी गई है. यहां पूर्व पीएम की स्मृतियों से जुड़े 150 से अधिक चित्र हैं. क्षेत्रीय पुरातत्व अधिकारी डॉ. सुभाष चंद्र यादव ने बताया काशी के लाल और पूर्व पीएम स्व. लाल बहादुर शास्त्री सादगी की मिसाल थे. रामनगर का पैतृक आवास हर किसी को उनकी सादगी की कहानी सुनाता है.
लाल बहादुर शास्त्री का जन्म 2 अक्टूबर 1904 मुगलसराय में हुआ था. उन्होंने काशी विद्यापीठ से पढ़ाई पूरी की थी. साल 1928 में उनका विवाह ललिता जी से संपन्न हुआ था. विवाह से उनके कुल 6 बच्चे हुए. दो बेटियां-कुसुम और सुमन, चार बेटे- हरिकृष्ण, अनिल, सुनील और अशोक. उनके दो बेटों का अब निधन भी हो चुका है. कभी भी प्रधानमंत्री कद का फायदा उन्होंने अपने ऐशो-आराम के लिए नहीं उठाया. इसका उदाहरण एक वाकये को याद करके किया जा सकता है, जब बेहद ईमानदार छवि के शास्त्री जी ने पीएम बनने के बाद बच्चों के आग्रह पर एक फिएट कार बैंक लोन से खरीदी थी.
Also Read: जब ताशकंद समझौते से नाराज़ हो गईं लाल बहादुर शास्त्री की पत्नी
लोन की अदायगी के पूर्व उनका निधन हो गया. बैंक अधिकारियों ने ललिता शास्त्री से लोन माफ करने का आग्रह किया. लेकिन, उन्होंने ऐसा करने से मना कर दिया. भारत के लाल की ललिता ने पत्नी धर्म को निभाया और अपनी पारिवारिक पेंशन से कार के बचे लोन का भुगतान किया था. 1965 में पीएम बनने के बाद जब लाल बहादुर शास्त्री जी घर आए थे तो सुबह से ही पुलिस का पहरा रामनगर में लगा था. चौक पर काफिला ठहरा और शास्त्री जी अंगरक्षकों को रोककर सीधे सबसे पहले किले में काशीनरेश डॉ. विभूति नारायण सिंह से मिलने पहुंचे. वहां से पैदल ही गली से होकर घर आए थे.
उस दिन वो ढाई घंटे अपने घर में रहे थे. 11 जनवरी 1969 को उनके हमेशा के लिए इस दुनिया से चले जाने की खबर आई. करीब 18 महीने तक पीएम पद पर बने रहने के दौरान उनके करिश्माई नेतृत्व में भारत ने 1965 की जंग में पाकिस्तान को करारी शिकस्त दी थी. ताशकंद में पाकिस्तान के राष्ट्रपति अयूब खान के साथ युद्ध समाप्त करने के समझौते पर हस्ताक्षर के बाद 11 जनवरी 1966 की देर रात रहस्यमय परिस्थितियों में उनकी मृत्यु हो गई थी.
(रिपोर्ट:- विपिन सिंह, वाराणसी)