Lalita Jayanti 2023: हर साल माघ माह की पूर्णिमा तिथि को ललिता जयंती ( Lalita Jayanti) मनाई जाती है. इस साल 2023 में ललिता जयंती आज 5 फरवरी को है, इस तिथि को माघ पूर्णिमा कहते हैं, जिसका सनातन धर्म में विशेष महत्व है.
इस दिन माता ललिता की पूजा करने से भक्तों को मोक्ष की प्राप्ति होती है.माता ललिता की पूर्ण आस्था के साथ पूजा करने से व्यक्ति जन्म और मृत्यु के चक्र से मुक्त हो जाता है.इसलिए ललिता जयंती पर माता ललिता की बड़ी भक्ति से पूजा होती है.
सभी तरह की मनोकामनाओं की पूर्ति के लिए आप ललिता देवी जयंती पर ऐं ह्रीं श्रीं त्रिपुर सुंदरीयै नम: के मंत्र का जाप कर सकते हैं.
पूर्णिमा को सुबह सूर्योदय से पूर्व किसी पवित्र नदी या घर पर ही मन में गंगा मैया का ध्यान कर स्नान करके भगवान श्री हरि की पूजा करनी चाहिए.ब्रह्मवैवर्त पुराण के अनुसार माघ पूर्णिमा के दिन भगवान विष्णु गंगाजल में निवास करते हैं.अतः इस दिन गंगाजल का स्पर्श मात्र भी मनुष्य को वैकुण्ठ लोक की प्राप्ति देता है.इस दिन गंगा आदि सहित अन्य पवित्र नदियों में स्नान करने से पाप एवं संताप का नाश होता है.मन एवं आत्मा शुद्ध होती है.
पौराणिक कथा के अनुसार देवी पुराण में माता ललिता का वर्णन मिलता है.एक बार नैमिषारण्य में यज्ञ किया जा रहा था.इस दौरान दक्ष प्रजापति भी वहां आ गए और सभी देवता उनका स्वागत करने के लिए खड़े हो गए.लेकिन उनके आने के बाद भी भगवान शंकर नहीं उठे.दक्ष प्रजापति को यह अपमानजनक लगा.ऐसे में इस अपमान का बदला लेने के लिए दक्ष प्रजापति ने शिव को अपने यज्ञ में आमंत्रित नहीं किया.
जब माता सती को इस बात का पता चला तो वह शंकर की आज्ञा लिए बिना ही अपने पिता दक्ष प्रजापति के घर पहुंच गईं.वहाँ उन्होंने अपने पिता के मुख से शंकर जी की निंदा सुनी.उन्होंने बहुत अपमानित महसूस किया और उसी अग्निकुंड में कूदकर अपनी जान दे दी.जब शिव को इस बात का पता चला तो वे बहुत व्याकुल हुए.उन्होंने माता सती के शव को अपने कंधे पर उठा लिया और उन्मत्त भाव से इधर-उधर घूमने लगे.
दुनिया की सारी व्यवस्था चरमरा गई.ऐसे में मजबूर होकर शिव ने अपने चक्र से माता सती के शरीर के टुकड़े-टुकड़े कर दिए.उसके अंग जहाँ-जहाँ गिरे, वह उन्हीं स्थानों पर उन्हीं आकृतियों में बैठी रही.यह उनके शक्तिपीठ के स्थान के रूप में प्रसिद्ध हुआ.
माता सती का हृदय नैमिषारण्य पर गिरा.नैमिष एक लिंगधारिणी शक्तिपीठ स्थल है.यहां भगवान शिव की लिंग के रूप में पूजा की जाती है.इसके साथ ही यहां ललिता देवी की भी पूजा की जाती है.भगवान शंकर को हृदय में धारण करने के बाद सती नैमिष में लिंगधारिणी के नाम से प्रसिद्ध हुईं.उन्हें ललिता देवी के नाम से भी जाना जाता है.