धनबाद के इस क्षेत्र में मंडरा रहा है भू-धंसान का खतरा, जानें क्या है इसकी बड़ी वजह

अवैध खनन के चलते मॉनसून के दौरान निरसा क्षेत्र में भू-धंसान की आशंका काफी बढ़ गयी है. चिंता का विषय यह है कि अभी परित्यक्त खदानों से जहरीली गैस निकल रही है

By Prabhat Khabar News Desk | June 4, 2022 12:06 PM

धनबाद : धनबाद के निरसा में भूधंसान का खतरा बढ़ गया है, इसका बड़ा कारण है अवैध खनन के दौरान सुरक्षा मानकों की अनदेखी क्षेत्र में इसीएल व बीसीसीएल की कई परित्यक्त अडंरग्राउंड (यूजी) खदानें हैं. यहां विभागीय खनन बंद कर दिया गया है. चिंता का विषय यह है कि अभी परित्यक्त खदानों से जहरीली गैस निकल रही है.

कोयला तस्कर मुख्यत: इन्हीं खदानों से कोयला कटवाते हैं. हाल के महीनों में कोयला चोरी की घटनाओं में काफी बढ़ाेतरी हुई है. तस्कर जैसे-तैसे कोयला कटवा रहे हैं. नौबत यहां तक आ चुकी है कि बंद अंडरग्राउंड खदानों में सुरक्षा के लिए खड़े किये गये पिलरों की कटाई कोयला चोर कर रहे हैं. नतीजा जमीन खोखली हो रही है. हल्की बारिश में इन क्षेत्रों की जमीन धंस सकती है. कई जगहों पर जमीन में दरार पड़ने और धंसान की घटना सामने आ चुकी है. बीते 21 अप्रैल को डुमरीजोड़ में हुई धंसान हाल के महीनों में हुई सबसे बड़ी घटना मानी जा रही है.

यहां सबसे अधिक खतरा :

कुहका, सांगामहल, माड़मा गांव तथा फटका-कालूबथान मार्ग पर सबसे अधिक खतरा है. इन तीनों जगहों पर पूर्व में भू-धंसान हो चुकी है. सुभाष कॉलोनी भी डेंजर जोन में है. श्यामपुर पहाड़ी भी धंसान क्षेत्र में शामिल हो गयी है. कुहका और हाथबाड़ी में सड़क किनारे कई मुहाने खोल दिये गये हैं. यहां उद्योगों के अंदर मुहाने खोल कर कोयला काटा जा रहा है.

गैलरी तक नहीं छोड़ रहे, नतीजा धंस रही चाल

अब कोयला चोर गैलरी तक नहीं छोड़ रहे. यह पहले भी होता था. लेकिन इसमें रिकॉर्ड बढ़ोतरी पिछले कुछ महीनों के दौरान दर्ज की गयी है. कोयला चोरी परवान चढ़ी, तो जहां-तहां बंद पड़े कोयला उद्योगों से पुन: धुआं निकलने लगा. इतना ही नहीं, जगह-जगह डिपो भी खुल गये.

अखबारों में लगातार खबर छपी, तो चोरी का स्टाइल बदल लिया गया. सिंडिकेट बनाकर चोरी शुरू हुई. धंधे का रेट बढ़ कर एक करोड़ रुपये हो गया. इसके अलावा स्थानीय पुलिस, नेता, पत्रकार आदि को मिलाकर 1.20-1.50 करोड़ रुपये प्रतिमाह सिंडिकेट ने बांटा. रेट बढ़ने पर कोयला काटने की रफ्तार भी बढ़ी. यही वजह है कि अब गैलरी भी काटी जा रही है. कोयला की परत की मोटाई कम होने से भू-धंसान का खतरा बढ़ गया है.

कोलियरी प्रबंधन व प्रशासन का रवैया चिंताजनक :

धंसान होने पर कुछ समय के लिए हाय-तौबा मचती है. कोलियरी प्रबंधन व प्रशासन प्रभावित जगह पर मिट्टी भराई कर अपना कर्तव्य पूरा कर लेते हैं. जानकार बताते हैं कि धंसान के बाद मिट्टी या छाई की कुछ दूर तक ही भराई होती है, जबकि कोयला चोर अंदर-अंदर काफी दूर तक कोयला काट चुके होते हैं. भराई में तकनीक का भी प्रयोग नहीं होता है. मिट्टी या छाई डालकर लेबलिंग कर दी जाती है. कोयला चोर दूसरी जगह मुहाना खोल कर पुन: कटाई शुरू कर देते हैं. मुगमा स्टेशन रोड, इंदिरा नगर, मोची कटिंग इसके उदाहरण हैं. यहां कई बार भराई हुई, लेकिन प्राय: धंसान की घटना होती रहती है.

माड़मा गांव की शिफ्टिंग पर ग्रहण :

माड़मा गांव धंसान के साथ-साथ अग्नि प्रभावित क्षेत्र में आता है. इस गांव को शिफ्ट करने की योजना कई बार बनी, लेकिन मुआवजा व सुविधा को लेकर सहमति नहीं बन पायी. गांव के आसपास के क्षेत्र को एमपीएल से निकलने वाले फ्लाई ऐश से भर दिया गया है. अब हवा चलने पर ग्रामीण फ्लाई ऐश से परेशान हैं. यही हाल सुभाष कॉलोनी के आसपास के क्षेत्र का भी है.

इधर, माड़मा गांव के पास ही मंडमन वीटी पंप है. यह कोलकाता-दिल्ली ग्रैंड कॉर्ड लाइन के नजदीक है. इसीएल ने अवैध कोयला कटाई के कारण रेलवे को पत्र लिख कर सतर्क कर दिया है. यहां यह बात अहम है कि थापरनगर रेलवे स्टेशन से एमपीएल तक कोयला ढुलाई के लिए लाइन बिछाने के दौरान स्टेशन से थोड़ी दूर पर लगभग एक वर्ष पूर्व धंसान की घटना हो चुकी है. उस समय ग्रैंड कॉर्ड लाइन के ट्रेनों को भी सावधानी पूर्वक पार करवाया जाता था. श्यामपुर में जहरीली गैस से हुई मौत से लोगों पर खतरा अधिक बढ़ गया है. जानकार मानते हैं कि यदि धंसान में गैस निकलती है तो बड़ी आबादी इसकी चपेट में आ सकती है.

क्या है सुरक्षा मानक :

खनन के जानकार बताते हैं कि अंडरग्राउंड खदान में सुरक्षा मानकों का पालन सबसे अहम मुद्दा होता है. इसके लिए कई बातें तय होती हैं. यूजी खदानों में 25-30 प्रतिशत उत्पादन होता है. शेष कोयला सुरक्षा की दृष्टि से छोड़ दिया जाता है. इसे यूं समझा जा सकता है.

सीम की गहराई गैलरी साइज

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