Bareilly: मुस्लिमों के मुकद्दस माह रमजान का आखिरी अशरा जहन्नुम से आजादी का 21 वें रोजे से शुरू हो गया है. यह अशरा सबसे खास है. रमजान में तीन अशरे होते हैं. अशरा अरबी का शब्द होता है. एक अशरे में 10 दिन होते हैं. इसमें पहले रोजे से 10 रोजे तक रहमत का अशरा, 11वें रोजे से 20 रोजे तक रहमत का अशरा और 21वें रोजे से 29 या 30वें रोजे तक जहन्नुम से आजादी का (नर्क से मुक्ति) अशरा होता है. आखिरी अशरे में रोजदार इतेकाफ पर बैठे हैं. यह ईद का चांद निकलने से पहले तक शब-ए कद्र पर बैठकर इबादत करते हैं.
रमजान का महीना तीन अशरों में बंटा हुआ है. पहला अशरा रमजान के शुरुआत से लेकर 10 दिन का होता है. इसे ‘रहमत’ कहा जाता है. इसमें मुस्लिम समुदाय के लोग नेक काम करते हैं, दान देते हैं. इस दौरान नेक काम करने वाले बंदों पर अल्लाह की रहमत बरसती है. दूसरा अशरा ‘मगफिरत’ यानी माफी का होता है. यह रमजान के 11वें रोजे से लेकर 20 वें रोजे तक का होता है. इस दौरान लोग अल्लाह की इबादत करते हैं. इसके साथ ही गुनाहों से माफी मांगते हैं. इस दौरान इबादत करने से अल्लाह अपने बंदों के गुनाहों को माफ करता है.
रमजान के तीसरे अशरे को महत्वपूर्ण माना गया है. यह रमजान के 21वें दिन से 29 या 30वें दिन तक का होता है. इसमें पुरुष और महिलाएं इतेकाफ पर बैठते हैं. इतेकाफ के दौरान पूरे 10 दिनों तक एक ही स्थान पर रहना होता है. वहीं खाना, सोना, नमाज पढ़ना आदि जैसे काम एक ही स्थान पर किए जाते हैं.बड़ी संख्या में लोग 10 दिनों तक मस्जिद में रहकर ही अल्लाह की इबादत करते हैं. रमजान के तीसरे अशरे को जहन्नुम से आजादी का अशरा है.
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रमजान में एक शब-ए-क़द्र की रात होती है. यह 21, 23, 25, 27, और 29 वें रोजे की रात होती है. इन रातों को लयलातुल कद्र की रात बोलते हैं.इनमें से ही एक रात शब-ए- कद्र की रात होती है. इसमें लोग रात भर जागकर इबादत करते हैं. शब-ए-कद्र में कुरान नाजिल (कुरान जमीन पर उतरा) हुआ है. इसके साथ ही पैगंबर साहब की अल्लाह से मुलाकात हुई थी.
इस रात में अल्लाह अपने बंदों की नेक व जायज तमन्नाओं को पूरी करता है. रमजान की विशेष नमाज तरावीह पढ़ाने वाले हाफिज इसी शब-ए-कद्र की रात में कुरआन मुकम्मल करते हैं, जो तरावीह की नमाज अदा करने वालों को सुनाया जाता है. इसके साथ घरों में कुरआन की तिलावत करने वाली मुस्लिम महिलाएं भी कुरआन मुकम्मल करती हैं.
रिपोर्ट- मुहम्मद साजिद बरेली