‘सुर सम्राज्ञी’ लता मंगेशकर आज हमारे बीच नहीं रहीं. 92 वर्षीया लता मंगेशकर मंगेशकर पिछले कुछ समय से अपनी बिगड़ी सेहत की वजह से अस्पताल में भर्ती थीं. उन्हें आईसीयू के वेटिंलेटर पर रखा गया था. लेकिन वो आज हमें छोड़कर इस दुनिया से रुख़सत हो गईं. उनकी खनकती आवाज ने करोड़ों फैंस को अपना दीवाना बनाया है. लता मंगेशकर ने पांच साल की उम्र से रंगमंच पर अभिनय करना शुरू कर दिया था. उनके सुरीले संगीत के आगे आज सारी दुनिया नतमस्तक है. गायकी के सफर में लता मंगेशकर ने लगभग 30,000 से ज्यादा गाने गाये हैं जो अपने आप में एक रिकॉर्ड है.
लता मंगेशकर के संगीत का सुनहरा सफर यादगार और दिलचस्प रहा है. लेकिन उन्हें एक बात का हमेशा अफसोस रहा. यतींद्र मिश्र की किताब ‘लता: सुर गाथा’ में जिक्र किया गया है कि लता मंगेशकर को शास्त्रीय संगीत में नाम कमाने की तमन्ना अधूरी रह गई. बकौल किताब, लता मंगेशकर कहती हैं,’ अगर मैं रियाज करती, बैठकर तसल्ली से गाया होता, तो शास्त्रीय गायिका बन सकती थी.’ उन्हें कहीं ने कहीं इत्मीनान से रियाज़ ने करने का दुख है. लता मंगेशकर की सबसे बड़ी आंतरिक ख्वाहिश थी कि वह उस्ताद बड़े गुलाम अली ख़ा की तरह गा सकें.
लता मंगेशकर ने फिल्म पत्रकार नसरीन मुन्नी कबीर को दिए साक्षात्कार में इस बात का जिक्र किया था कि, सुप्रसिद्ध पार्श्व गायक और अभिनेता कुंदनलाल सहगल की वह बड़ी प्रशंसक हैं, उन्हें हमेशा से उनसे न मिल पाने का अफसोस है. लेकिन उन्हें इस बात की तसल्ली है कि सहगल साहब के पुत्र से मिली उनकी अंगूठी अभी तक उनके पास मौजूद है. 1947 में लता मंगेशकर ने 18 साल की उम्र में रेडियो खरीदा था और स्विच ऑन करते ही उन्हें सहगल के निधन की खबर सुनी थी. यह खबर सुनकर वह इतनी दुखी हो गईं थी कि उन्होंने रेडियो ऑफ कर दिया था और 5 दिन बाद उसी दुकानदार को रेडिया वापस कर आईं थीं.
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गौरतलब है कि लता मंगेशकर को संगीत की दुनिया में अपने अनूठे योगदान के लिए भारत रत्न, पद्म भूषण, पद्म विभूषण, दादा साहेब फाल्के पुरस्कार, महाराष्ट्र भूषण, एनटीआर राष्ट्रीय पुरस्कार और तीन राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार से नवाजा जा चुका है. उन्हें सर्वश्रेष्ठ पार्श्वगायन के लिये 4 फिल्मफेयर पुरस्कार भी मिल चुके हैं. लता मंगेशकर ने साल 1969 के बाद से युवा प्रतिभाओं को बढ़ावा देने के लिये फिल्मफेयर पुरस्कार लेने से इनकार कर दिया था.