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अनाथ हुआ भारतीय संगीत: स्वर्ग को सुरों से सजाने अपनी आत्मिक यात्रा पर निकल गयीं लता दीदी

स्वर साम्राज्ञी लता मंगेशकर ने आज 6 फरवरी 2022 को 92 बरस की उम्र में दुनिया को अलविदा कह दिया.

By Prabhat Khabar Digital Desk | February 6, 2022 6:50 PM

प्रदीप सरदाना

वरिष्ठ पत्रकार एवं फिल्म समीक्षक

स्वर साम्राज्ञी लता मंगेशकर ने आज 6 फरवरी 2022 को 92 बरस की उम्र में दुनिया को अलविदा कह दिया. लता दीदी ने एक भरपूर जीवन जिया. सफलता, लोकप्रियता और सम्मान के शिखर को न सिर्फ छुआ, बल्कि अपनी आखिरी सांस तक उस सिंहासन पर पूरे गौरव के साथ विराजमान भी रहीं. यहाँ तक कि उनके जाने के बाद भी उनकी जगह किसी और कलाकार के लिए ले पाना शायद आने वाली सदियों तक संभव न हो.

उन्होंने हिंदी फिल्मों में अपने पार्श्व गायन से लगभग 70 साल का एक लम्बा योगदान दिया. यह सच है कि वह पिछले करीब 10-12 साल से फिल्मों के लिए नहीं गा रही थीं. लेकिन इन पिछले दस साल को हटाकर भी यदि हम उनके उससे पहले के 60 वर्ष का ‘सिंगिंग करियर’ देखें तो इतना शानदार और सुहाना सफ़र अन्य किसी गायिका का नहीं रहा.

सच तो यह है कि पिछले 73 बरसों में कोई भी और गायिका लता मंगेशकर के शिखर को नहीं छू सकी है. अब जबकि लता इतने बरसों से पार्श्व गायन से दूर थीं तब भी कोई ऐसी गायिका हमको दूर दूर तक नहीं मिली जिसे आने वाले कल की स्वर साम्राज्ञी कहा जा सके. फिर लता ने 20 भाषाओँ में लगभग 7 हज़ार गीत गाकर भी जिस क्षितिज को छुआ, वह भी उन्हें सबसे आगे ले जाता है.

28 सितम्बर 1929 को मध्यप्रदेश के इंदौर में जन्मीं लता मंगेशकर ने यूँ तो अपने बचपन से ही बहुत संघर्ष किये. लेकिन अच्छी बात यह थी उन्होंने मात्र 5 वर्ष की आयु में अपने शास्त्रीय गायक और रंगकर्मी पिता दीना नाथ मंगेशकर से गायन सीखना शुरू कर दिया था. जब वह सात साल की थीं, तभी उनका परिवार महाराष्ट्र में आ गया था. जहाँ आकर लता ने मंच पर गीत संगीत के कुछ कार्यक्रम करके अपने बालपन में ही अपनी प्रतिभा से सभी का मन मोहा. लेकिन सन 1942 में जब वह 13 साल की हुईं तो उनके पिता का निधन हो गया.

इससे परिवार की सबसे बड़ी संतान होने के कारण अपने छोटी बहनों और भाई- मीना, आशा,उषा और ह्रदय नाथ मंगेशकर की ज़िम्मेदारी भी उनके कन्धों पर आ गयी. ऐसे में लता के पिता दीनानाथ के दोस्त और मराठी फिल्मकार और अभिनेता विनायक दामोदर कर्नाटकी, जो मास्टर विनायक के नाम से विख्यात थे, उन्होंने लता को एक अभिनेत्री और गायिका बनने में मदद की. यहाँ यह भी बता दें कि मास्टर विनायक सुप्रसिद्द अभिनेत्री नंदा के पिता थे. मास्टर विनायक के कहने से अपने पिता के निधन से एक सप्ताह बाद ही लता ने उनकी मराठी फिल्म’ पहली मंगलागौर’ में अभिनय किया और गीत भी गाया.

लता मंगेशकर ने अपने सुरों से जो इतिहास लिखा वह किसी से छिपा नहीं है. दुनिया भर के संगीत प्रेमी और संगीत तथा स्वर विशेषज्ञ बरसों तक इस रहस्य को जानने के लिए उतावले रहे कि कोकिला कंठ लता के कंठ में ऐसा क्या है जो इतनी मधुर और मखमली आवाज की स्वामिनी हैं. लेकिन यह रहस्य उनके जीवन के आखिरी पल तक रहस्य ही बना रहा.

उन्हें पहली सफलता मिली खेमचंद प्रकाश के संगीत से सजी फिल्म ‘महल’ के गीत –‘आएगा आने वाला’ से. साथ ही इसी साल आई राजकपूर की फिल्म ‘बरसात’ ने तो लता के करियर को हवा दे दी. शंकर जयकिशन के संगीत में ‘बरसात’ के लता के कुल 10 गीत थे, जिसमें 8 गीत सोलो ही थे. अपनी 70 की उम्र में भी लता जी ने जो गीत गाये हैं, उन्हें सुनकर ऐसा ही लगता है कि कोई 16, 17 या फिर 20-21 साल की लडकी ही इन गीतों को गा रही होगी. 90 के दशक में और सन 2000 के बाद आई फिल्मों में भी उनके गीतों का जादू सर चढ़कर बोलता रहा है.

कोई गायिका अपनी 70-75 बरस की उम्र में ऐसा गा सकती है इसकी लता ने शानदार मिसाल पेश की है जो मान सम्मान लता जी को अपने जीवन में एक पार्श्व गायिका के रूप में मिला, उतना फिल्म संगीत क्षेत्र की किसी हस्ती को नहीं मिला. लता मंगेशकर को जहाँ देश का सर्वोच्च सम्मान भारत रत्न और फिल्म क्षेत्र का शिखर पुरस्कार दादा साहब फाल्के मिला है वहां उन्हें पदम् भूषण और पदम् विभूषण जैसे शिखर के नागरिक सम्मानों से भी नवाज़ा जा चुका है. उधर लता ने अपने सर्वश्रेष्ठ गायन के लिए तीन बार राष्ट्रीय पुरस्कार भी जीता, फिल्म ‘परिचय’,’कोरा कागज़’ और ‘लेकिन’ के लिए. जबकि उन्हें आजा रे परदेसी, कहीं दीप जले कहीं दिल, तुम्ही मेरे मंदिर और आप मुझे अच्छे लगने लगे गीतों के लिए चार बार सर्वश्रेष्ठ गायिका का फिल्मफेयर पुरस्कार भी मिला और एक बार फिल्मफेयर का लाइफटाइम अचीवमेंट पुरस्कार के साथ दो बार फिल्मफेयर के विशेष सम्मान भी प्राप्त हुए.

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लता मंगेशकर को चाहे जीवन भर सभी लता दीदी कह कर पुकारते रहे, पर सही मायनों में वे भारतीय संगीत की देवी रुपी माँ रहीं. उनकी मौजूदगी मात्र ही संगीत कलाकारों के लिए एक उम्मीद, एक भरोसा और एक हौसला था. उनके जाने से भारतीय संगीत अनाथ हो गया. अपने कोकिला कंठ से पृथ्वी को सुरमयी करने के बाद, आज वो स्वर्ग को सुरों से सजाने के लिए अपनी आत्मिक यात्रा पर निकल गयीं.

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