Film Review: मनोरंजन के साथ मैसेज देने में इस बार चूक गए अक्षय कुमार, यहां पढ़ें रिव्यू
laxmii movie review akshay kumar performance only saving grace of kiara advani starring raghav lawrence directed films know how many stars bud : हॉरर कॉमेडी जॉनर पर हिंदी सिनेमा में अब तक कम ही काम हुआ है. उसमें भी स्त्री ही एकमात्र ऐसी फिल्म कही जा सकती है जो इस जॉनर के साथ बखूबी न्याय कर पायी. साउथ की फिल्मों में यह बहुत ही पॉपुलर जॉनर है और कंचना सीरीज की फिल्में खासा लोकप्रिय। कंचना का हिंदी रिमेक फ़िल्म 'लक्ष्मी' है.
फ़िल्म- लक्ष्मी
निर्देशक- राघव लॉरेंस
निर्माता- तुषार कपूर,शबीना और अक्षय कुमार
प्लेटफार्म- डिज्नी हॉटस्टार
कलाकार- अक्षय कुमार, कियारा आडवाणी, राजेश कुमार, मनु ऋषि,अश्विनी कलसेकर,आएशा रज़ा, शरद केलकर
रेटिंग- ढाई
Laxmii Movie Review : हॉरर कॉमेडी जॉनर पर हिंदी सिनेमा में अब तक कम ही काम हुआ है. उसमें भी स्त्री ही एकमात्र ऐसी फिल्म कही जा सकती है जो इस जॉनर के साथ बखूबी न्याय कर पायी. साउथ की फिल्मों में यह बहुत ही पॉपुलर जॉनर है और कंचना सीरीज की फिल्में खासा लोकप्रिय. कंचना का हिंदी रिमेक फ़िल्म ‘लक्ष्मी’ है.
लक्ष्मी की बात करें तो यह डराने हँसाने के साथ साथ समाज में ट्रांसजेंडर और हिन्दू मुस्लिम को लेकर संकीर्ण सोच पर चोट करते हुए संदेश देने की भी कोशिश करती है लेकिन सबकुछ करने के चक्कर में कुछ भी प्रभावी ढंग से नहीं कर पायी है. फ़िल्म की कहानी की बात करें तो फ़िल्म आसिफ(अक्षय कुमार) की कहानी है. जिसे भूत प्रेत में यकीन नहीं है. वह अपनी पत्नी रश्मि(कियारा) के साथ बहुत खुश है लेकिन इस शादी से रश्मि के परिवार वाले खुश नहीं है।हिन्दू मुस्लिम में वह अभी भी अटके हैं.
कहानी कुछ ऐसे मोड़ लेती है कि आसिफ को रश्मि के मां पापा को मनाने का एक मौका मिलता है. वही आसिफ के अंदर एक ट्रांसजेंडर लक्ष्मी की आत्मा प्रवेश करती है. लक्ष्मी की आत्मा एक के बाद एक लोगों को मारने लगती है. क्यों और लक्ष्मी के साथ क्या हुआ था इसका जवाब आगे की फ़िल्म देती है. फ़िल्म में रश्मि के पिता आसिफ को पसंद नहीं करते हैं फिर मात्र एक दृश्य के बाद ही उनका नज़रिया बदल जाना ,स्क्रीनप्ले की कमज़ोरी को बखूबी बयां कर जाता है. कंचना जिसकी लक्ष्मी फ़िल्म रिमेक है वह 2011 में बनी थी.
9 साल का लंबा गैप के बावजूद फ़िल्म में डराने के लिए वही पुराने विजुअल का ही इस्तेमाल हुआ है. उड़ते बालों के साथ आत्मा का डरावना चेहरा. अंधेरे कमरे में खिड़की दरवाजों का बन्द होना.रोने की आवाज़ सुनायी देना. खाली पड़े प्लाट में सन्नाटा. आत्मा का दरवाजा बीच में तोड़कर खींचते हुए विलेन को ले जाना.कंचना ही नहीं कई हॉरर फिल्मों में ये दृश्य घिस गए है. वैसे लक्ष्मी में कंचना के विजुअल का इस्तेमाल हुआ है लेकिन कंचना वाली कॉमेडी यहां मिसिंग है. यही इस फ़िल्म की सबसे बड़ी कमजोरी है. फ़िल्म के संवाद कमज़ोर रह गए हैं.
अभिनय की बात करें तो अक्षय कुमार एक बार फिर उम्दा रहे हैं. उन्होंने लक्ष्मी के किरदार को बखूबी जिया है. कियारा आडवाणी फ़िल्म में खूबसूरत लगी हैं. कियारा के अलावा मनु ऋषि ,राजेश शर्मा के लिए फ़िल्म में करने को कुछ खास नहीं था. अश्विनी कलसेकर और आएशा रज़ा का अभिनय ओवर हो गया है. फ़िल्म कंचना में सास बहू की जोड़ी का अभिनय फ़िल्म की यूएसपी थी. वहां यह नदारद नज़र आया. शरद केलकर की तारीफ करनी होगी।वह अपनी छोटी सी भूमिका में भी छाप छोड़ते हैं.
फ़िल्म के गीत संगीत की बात करें तो बम भोले गीत को छोड़कर कोई भी गीत कहानी के साथ न्याय नहीं कर पाता है. लक्ष्मी कंचना के मुकाबले हर पहलू पर कमज़ोर है. कंचना आपने नहीं देखी है और आपअक्षय के अगर आप फैन हैं तो एक बार फ़िल्म देख सकते हैं. कुलमिलाकर मनोरजंन के साथ साथ मैसेज देने के मामले में अक्षय इस बार चूक गए हैं.
Posted By: Budhmani Minj