लक्ष्मीकांत महापात्र की जयंती पर बोले सुमंत चंद्र, ओडिशा के राज्यगान के रचनाकार ने साहित्य को दिया था नया आयाम
Jharkhand News: सुमंत चंद्र मोहंती ने कहा कि लक्ष्मीकांत ने ओड़िया साहित्य को नया आयाम दिया था. अपनी कविताओं के माध्यम से उन्होंने हजारों लोगों को स्वतंत्रता संग्राम से जोड़ा था.
Jharkhand News: झारखंड के सरायेकला खरसावां जिले में ओडिशा के राज्यगान ‘बंदे उत्कल जननी…’ के रचनाकार कांतकवि लक्ष्मीकांत महापात्र (Laxmikanta Mohapatra) की 134वीं जयंती खरसावां के काली मंदिर सामुदायिक भवन में मनाई गयी. मौके पर उत्कल सम्मीलनी के जिलाध्यक्ष हरिश चंद्र आचार्य, उपाध्यक्ष सुमंत चंद्र मोहंती, उत्कल सम्मीलनी के जिला पर्यवेक्षक सुशील कुमार षाडंगी ने कवि लक्ष्मीकांत महापात्र की तस्वीर पर माल्यार्पण कर श्रद्धांजलि दी. हरिश चंद्र आचार्या ने बताया कि ओडिशा कैबिनेट ने कांतकवि लक्ष्मीकांत महापात्र के द्वारा रचित वंदे उत्कल जननी संगीत गान को पिछले साल राज्यगान की मान्यता दी है. यह पूरे ओडिया समुदाय के लिये हर्ष का विषय है. सुमंत चंद्र मोहंती ने कहा कि लक्ष्मीकांत ने ओड़िया साहित्य को नया आयाम दिया था.
जयंती के मौके पर उपस्थित लोगों ने सामूहिक रुप से ‘बंदे उत्कल जननी…’ गीत का गायन किया. हरिश चंद्र आचार्या ने बताया कि ओडिशा कैबिनेट ने कांतकवि लक्ष्मीकांत महापात्र के द्वारा रचित वंदे उत्कल जननी संगीत गान को पिछले साल राज्यगान की मान्यता दी है. यह पूरे ओडिया समुदाय के लिये हर्ष का विषय है. सुमंत चंद्र मोहंती ने कहा कि कवि लक्ष्मीकान्त महापात्र बहुमुखी प्रतिभा के धनी थे. वे कवि होने के साथ ही स्वतन्त्रता सेनानी भी थे. उन्होंने ओड़िया साहित्य को नया आयाम प्रदान किया तथा अपनी कविताओं के माध्यम से हजारों लोगों को स्वतन्त्रता संग्राम से जोड़ा. कांतकवि लक्ष्मीकांत महापात्र की रचित कवितायें ओडिया भाषी लोगों को हमेशा प्रेरित करती रहेंगी. उन्होंने कहा कि स्व लक्ष्मीकांत महापात्र की रचनायें हमेशा प्रासंगिक बनी रहेंगी. सुशील षाडंगी ने कहा कि कवि लक्ष्मीकांत महापात्र का साहित्य हर आयु एवं वर्ग के लोगों के मन को झकझोर देता था. इसीलिए ओडिया भाषी लोगों ने उन्हें ‘कांतकवि’ की उपाधि देकर सम्मानित किया है. मौके पर उत्कल सम्मीलनी के सह सचिव सपन मंडल, जयजीत षाडंगी, रंजीत मंडल, आलोक दास, भरत मिश्रा, अजय प्रधान, चंद्रभानु प्रधान, सुजीत हाजरा आदि उपस्थित थे.
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ओडिशा के राज्यगान ‘बंदे उत्कल जननी…’ के रचनाकार कांतकवि लक्ष्मीकांत महापात्र है. 1910 में कांतकवि लक्ष्मीकांत महापात्र के द्वारा रचित ‘बंदे उत्कल जननी…’ गीत को पहली बार 1912 में बालेश्वर में आयोजित उत्कल सम्मेलन में गाया गया था. एक अप्रैल 1936 को ओडिशा को स्वतंत्र राज्य की मान्यता मिली और इस समय भी इस गीत को गाया गया था. इसके बाद 1994 में नवम्बर महीने में इस गीत को सरकारी गीत के रूप में उपयोग करने के लिए ओडिशा के तत्कालीन विधानसभा अध्यक्ष युधिष्ठिर दास ने सर्वदलीय कमेटी का गठन किया था. 22 दिसम्बर 1994 से इस गीत को विधानसभा के प्रत्येक अधिवेशन के आरंभ एवं अंत में गाने का निर्णय लिया गया. पिछले वर्ष (2020) जून माह में ‘बंदे उत्कल जननी…’ गीत को आधिकारिक तौर पर ओडिशा के राज्य गान का दर्जा मिला.
रिपोर्ट: शचिंद्र कुमार दाश