Munger: शराब माफियाओं के लिए मुसीबत बने लिकर डॉग मेडी और बॉबी, सरीना और डिंडी भी अपने काम में माहिर
Munger: शराबबंदी के बाद शराबबंदी कानून को सख्ती से लागू करने में लिकर डॉग मेडी और बॉबी बड़ी भूमिका निभा रहे हैं.
Munger: शराबबंदी के बाद शराबबंदी कानून को सख्ती से लागू करने में लिकर डॉग मेडी और बॉबी बड़ी भूमिका निभा रहे हैं. शराब माफियाओं द्वारा छिपायी गयी शराब को ढूंढ़ने और उसे पकड़वाने में मेडी और बॉबी मदद कर रहे हैं. मुंगेर रेंज के अंतर्गत आनेवाले छह जिलों मुंगेर, जमुई, खगड़िया, लखीसराय, बेगूसराय और शेखपुरा में रोटेशन के आधार पर लिकर डॉग मेडी और बॉबी को भेजा जाता है.
आपराधिक घटनाओं के लिए एक्सपर्ट हैं सरीना और डिंडी
मुंगेर रेंज को प्रमंडल की आपराधिक घटनाओं पर काबू पाने और अपराधियों की शिनाख्त करने के लिए भी दो ट्रैकर डॉग सरीना और डिंडी मिले हैं. ये दोनों खोजी कुत्ते सरीना और डिंडी भी काफी एक्सपर्ट हैं. साथ ही कई मामलों के उद्भेदन में मुंगेर पुलिस की सहायता कर रहे हैं.
मुंगेर रेंज के सभी छह जिलों में देते हैं योगदान
मुंगेर प्रमंडल के डॉग स्क्वॉयड प्रभारी भूषण पासवान के मुताबिक, चारो खोजी कुत्ते मेडी, बॉबी, सरीना और डिंडी प्रमंडल के सभी छह जिलों मुंगेर, जमुई, खगड़िया, लखीसराय, बेगूसराय और शेखपुरा में कई मामलों में योगदान देते हुए खुद को साबित भी किया है.
सूंघ कर शराब ढूंढ़ने में माहिर है लिकर डॉग मेडी
शराबबंदी कानून को सख्ती से लागू करने के लिए शराब माफियाओं द्वारा छिपायी गयी शराब को लिकर डॉग मेडी और बॉबी सूंघ कर क्षण भर में ढूंढ़ निकालते हैं. लिकर डॉग मेडी को सीआईडी विभाग के एडीजी बिनय कुमार द्वारा साल 2019 में पुरस्कृत भी किया जा चुका है.
अपराधियों के निशान का पीछा करने में माहिर है डिंडी
वहीं, सरीना और डिंडी भी आपराधिक घटनाओं, अपराधियों की शिनाख्त और एक्सप्लोसिव ढूंढ़ने में अपना योगदान दे चुके हैं. खास कर नक्सल क्षेत्रों में ये ट्रैकर डॉग काफी मददगार साबित हुए हैं. अपराधियों के निशान या साक्ष्यों का पीछा करने में डिंडी काफी माहिर है.
लिकर और ट्रैकर डॉग की देखभाग के लिए तैनात हैं 10 कर्मी
मुंगेर के एसपी जगुनाथरेड्डी जलारेड्डी के मुताबिक, लिकर और ट्रैकर डॉग की देखभाल के लिए 10 कर्मियों को नियुक्त किया गया है. ये डॉग स्क्वॉयड की टीम मुंगेर के डीआईजी के अधीन काम करती है. इन्हें रोटेशन के आधार पर मुंगेर प्रमंडल के जिलों में भेजा जाता है. इनके खान-पान के साथ-साथ मौसम के अनुरूप स्वास्थ्य और सेहत का भी ख्याल रखा जाता है.