लोकसभा चुनाव 2024: यूपी में मिशन 80 के लिए विपक्ष का खास प्लान, जाति जनगणना का मुद्दा गरमाने की तैयारी
विपक्षी गठबंधन अपनी रणनीति के तहत जनता से जुड़े मुद्दों पर भाजपा को घेरने की कोशिश है. इसके साथ ही दलित-पिछड़े मतदाताओं को साधने के लिए जातीय जनगणना का मुद्दा उठाने की तैयारी है. इंडिया गठबंधन के विश्वसनीय सूत्रों की मानें, तो अक्टूबर से जातीय जनगणना के मुद्दे को और हवा दी जाएगी.
UP Politics: केंद्र की सत्ता का रास्ता उत्तर प्रदेश से होकर जाता है. यहां लोकसभा की सबसे अधिक 80 सीट हैं. लोकसभा चुनाव 2014 की बात करें तो इसमें भाजपा गठबंधन ने 72 और लोकसभा चुनाव 2019 में 64 सीट जीती थी, लेकिन इस बार 2024 की लड़ाई में भाजपा के नेतृत्व वाले राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (NDA) का रास्ता रोकने के लिए इंडियन नेशनल डेमोक्रेटिक इंक्लूसिव एलायंस (INDIA) ने यूपी में अपनी खास रणनीति बनानी शुरू कर दी है.
विपक्षी गठबंधन अपनी रणनीति के तहत जनता से जुड़े मुद्दों पर भाजपा को घेरने की कोशिश है. इसके साथ ही दलित-पिछड़े मतदाताओं को साधने के लिए जातीय जनगणना का मुद्दा उठाने की तैयारी है. इंडिया गठबंधन के विश्वसनीय सूत्रों की मानें, तो अक्टूबर से जातीय जनगणना के मुद्दे को और हवा दी जाएगी. इसमें कांग्रेस के साथ ही सपा नेताओं को भी जिम्मेदारी दी जाएगी. हालांकि, यूपी के सीएम योगी आदित्यनाथ पहले ही प्रदेश में जातिगत जनगणना से इनकार कर चुके हैं.
बिहार में जातिगत जनगणना की सियासत
बिहार में जातिगत जनगणना दो चरणों में होनी थी. इसमें पहले चरण में 7 जनवरी से 21 जनवरी तक तो वहीं दूसरे चरण में 1 अप्रैल से 30 अप्रैल तक नीतीश सरकार जातिगत जनगणना करा रही थी. मगर, मामला कोर्ट में जाने के बाद इसमें रोक लग गई थी. हालांकि फिर कोर्ट के निर्देश पर एक बार फिर जनगणना शुरू हो गई है. इसके बाद बहुजन समाज पार्टी की सुप्रीमो मायावती ने बयान दिया था कि ओबीसी समाज की आर्थिक, शैक्षणिक व सामाजिक स्थिति का सही आकलन कर उसके हिसाब से विकास योजना बनाने के लिए बिहार सरकार द्वारा कराई जा रही जातीय जनगणना को पटना हाईकोर्ट ने पूर्णतया वैध ठहराया है. उन्होंने कहा कि अब सबकी निगाहें यूपी पर टिकी हैं कि यहां यह प्रक्रिया कब शुरू होगी.
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जातीय जनगणना के मुद्दे पर भाजपा को घेर चुकी हैं मायावती
बसपा सुप्रीमो ने कहा कि देश के कई राज्यों में जातीय जनगणना के बाद उत्तर प्रदेश में भी इसे कराने की मांग लगातार जोर पकड़ रही है. बावजूद इसके वर्तमान भाजपा सरकार भी इसके लिए तैयार नहीं लगती है, यह बेहद चिंतनीय है. उन्होंने कहा कि बसपा की मांग केवल उत्तर प्रदेश में ही नहीं बल्कि केंद्र को राष्ट्रीय स्तर पर भी जाति जनगणना करनी चाहिए. देश में जातीय जनगणना का मुद्दा मंडल आयोग की सिफारिश को लागू करने की तरह राजनीति का नहीं बल्कि सामाजिक न्याय से जुड़ा है. मायावती ने कहा कि समाज के गरीब, कमजोर, उपेक्षित व शोषित लोगों को देश के विकास में उचित भागीदार बनकर उन्हें मुख्य धारा में लाने के लिए यह गणना जरूरी है.
अखिलेश यादव भी कर चुके हैं जातीय जनगणना की मांग
उत्तर प्रदेश में जातीय जनगणना को लेकर राजनीति पहले से जारी है. समाजवादी पार्टी भी लगातार जातीय जनगणना की मांग तेज कर रही है. सपा राज्य में जातीय जनगणना की मांग बीजेपी सरकार से कर रही है. हाल ही में समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष अखिलेश यादव ने कहा था कि हम समाजवादी और ज्यादातर लोग जातीय जनगणना चाहते हैं. उन्होंने कहा कि सामाजिक न्याय का रास्ता जातीय जनगणना के बिना पूरा नहीं होगा. इससे समाज और लोकतंत्र मजबूत होगा. जातीय जनगणना से पता चलेगा कौन, कितना पीछे है, किसे कितनी मदद की जरूरत है. बीजेपी जातीय जनगणना का विरोध कर रही है.
यूपी में पिछड़ी जातियों का समीकरण
उत्तर प्रदेश में करीब 234 से अधिक पिछड़ी जातियां हैं. इसमें ओबीसी जातियों की आबादी यादव, कुर्मी, मौर्य, किसान,और साहू हैं. इनको 27 फीसद आरक्षण मिलता है. मगर, पिछड़ी जातियों को आबादी बढ़ने के कारण 27 फीसद से भी अधिक ओबीसी आरक्षण मिलने की उम्मीद है. इसीलिए बार-बार जातिगत जनगणना की मांग उठती है. मगर, अब लोकसभा चुनाव 2024 से पहले जातिगत जनगणना की मांग उठी है.इसके लिए यूपी में आंदोलन की तैयारी है.
1931 तक होती थी जातीय जनगणना
देश में वर्ष 1931 तक जातिगत जनगणना होती थी. मगर, वर्ष 1941 में जाति आधारित डाटा एकत्र किया गया. हालांकि इसे जारी नहीं किया गया. देश में वर्ष 1951 से वर्ष 2011 तक जनगणना में एससी और एसटी जातियों का डाटा एकत्र कर जारी किया जाता है. मगर, अन्य जातियों का डाटा जारी नहीं किया जाता है.
मंडल कमीशन की सिफारिश 1990 में लागू
केंद्र की तत्कालीन विश्वनाथ प्रताप सिंह सरकार ने वर्ष 1990 में दूसरा पिछड़ा वर्ग आयोग यानी मंडल आयोग बनाया. इसकी सिफारिशों को वर्ष 1990 में लागू किया था. मंडल कमीशन के आंकड़ों के आधार पर भारत में ओबीसी आबादी 52 फीसद मानी गई थी. मगर, इसमें भी वर्ष 1929 की जनगणना को आधार माना गया था. लेकिन, इसके बाद ओबीसी आबादी के कोई ठोस प्रमाण पत्र नहीं हैं.
जानें जातिगत जनगणना से क्यों बचती हैं सरकार
देश में लंबे समय से ओबीसी नेता जातिगत जनगणना की मांग कर रहे हैं. मगर, केंद्र और राज्य सरकार जातिगत जनगणना से खुद को बचाती हैं. माना जाता है कि ओबीसी की जनगणना अधिक होने पर आरक्षण की डिमांड भी अधिक होगी और जनसंख्या कम आने पर जातिगत जनगणना सही से नहीं होने की बात को लेकर हंगामा होगा.
18 ओबीसी जाति एससी में शामिल होने की कोशिश में
यूपी की 18 ओबीसी जातियां काफी समय से एससी में शामिल होने की कोशिश में हैं. इसके लिए हाईकोर्ट फैसला भी कर चुका है.ओबीसी को एससी शामिल करने के लिए नोटिफिकेशन जारी हुआ था. इसमें मझवार, कहार, कश्यप, केवट, मल्लाह, निषाद, कुम्हार, प्रजापति, धीवर, बिंद, भर, राजभर, धीमान, बाथम, तुरहा गोडिया, मांझी और मछुआ शामिल हैं.
रिपोर्ट- मुहम्मद साजिद बरेली