सरायकेला-खरसावां, शचिंद्र कुमार दाश: स्नान पूर्णिमा (4 जून) पर अत्यधिक स्नान से बीमार हुए प्रभु जगन्नाथ, बलभद्र व देवी सुभद्रा की गुप्त सेवा (उपचार) जगन्नाथ मंदिरों के अणवसर गृह में की जा रही है. खरसावां, हरिभंजा व सरायकेला में विशेष दवा तैयार कर प्रभु जगन्नाथ, बलभद्र व देवी सुभद्रा को पिलायी गयी. परंपरा के अनुसार अणवसर दशमी पर भगवान जगन्नाथ, बलभद्र व देवी सुभद्र को जंगल की दस जड़ी-बूटी से तैयार दवा खिलायी जाती है. इस दौरान रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने के लिए बीमार महाप्रभु का इलाज देसी नुस्खों से विभिन्न प्रकार की जड़ी-बूटियों का काढ़ा और मौसमी फलों के जूस से किया जाता है.
20 जून को रथयात्रा
परंपरा के अनुसार इस दवा को खाने के बाद से प्रभु जगन्नाथ, बलभद्र व देवी सुभद्रा के स्वास्थ्य में सुधार होने लगता है. पूरी तरह से स्वस्थ्य होने के बाद नेत्र उत्सव के दिन प्रभु भक्तों को दर्शन देंगे. नेत्र उत्सव पर प्रभु के नव यौवन रूप के दर्शन होंगे. इसके ठीक एक दिन बाद 20 जून को रथ पर सवार होकर गुंडिचा मंदिर के लिये प्रस्थान करेंगे. इसे प्रभु जगन्नाथ की रथयात्रा कहते हैं. फिलहाल बीमारी के कारण प्रभु जगन्नाथ, बलभद्र व देवी सुभद्रा भक्तों को दर्शन नहीं दे रहे हैं. प्रभु जगन्नाथ, बलभद्र व सुभद्रा को दशमूली दवा पिलाने के बाद भक्तों में भी इसे प्रसाद के रूप में वितरण किया गया. मान्यता है कि इस दवा के सेवन से लोग एक साल तक रोग-व्याधि से दूर रहते हैं.
प्रभु जगन्नाथ के लिये पीढ़ी दर पीढ़ी दवा तैयार कर रहा राजवैद्य परिवार
अणवसर गृह में बीमारी के दौरान प्रभु जगन्नाथ, बलभद्र व देवी सुभद्रा के लिये पिछले करीब दो सौ साल से खरसावां का राजवैद्य परिवार दवा को तैयार कर रहा है. कुम्हारसाही स्थित दाश परिवार के सदस्य पीढ़ी दर पीढ़ी प्रभु जगन्नाथ के लिये दवा तैयार करते हैं. पूर्व में राज वैद्य दाशरथी दाश, फिर गोलक चंद्र दाश, सत्य किंकर दाश आदी दवा तैयार करते थे. वर्तमान में निरंजन दाश ‘पिंकु’ भगवान जगन्नाथ के लिये दवा तैयार करते हैं. इस संबंध में निरंजन दाश बताते हैं कि दशमूली दवा दस अलग-अलग जड़ी-बूटी से तैयार की जाती है. इसके लिये खरसावां के घने जंगलों में तीन-चार दिनों तक अलग-अलग हिस्सों में घूमकर जड़ी-बूटी संग्रह करना होता है. इस दवा में कृष्ण परणी, शाल परणी, अगीबथु, फणफणा, पाटेली, गोखरा, बेल, गम्हारी, लबिंग कोली, अंकरांती के औषाधिय हिस्सों को मिलाया जाता है. इन औषधीय जड़ी-बूटी का आयुर्वेद में भी खासा जिक्र है. इसके बाद निर्धारित मात्रा में इन जड़ी-बूटियों से दवा तैयार की जाती है. इसके बाद परंपरा के अनुसार अणवसर दशमी पर भगवान जगन्नाथ, बलभद्र व देवी सुभद्र को यह दवा खिलायी जाती है. महाप्रभु के शरीर का तापमान नियंत्रित रखने के लिए उन्हें दशमूल हर्ब भी दिया जा रहा है. दशमूला हर्ब में एंटी प्रेट्रिक गुण होते हैं जो कि तेज बुखार को ठीक करने के लिए लाभकारी होते हैं. यह शरीर के तापमान को सही रखता है.
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दवा में शामिल होने वाला कृष्ण परणी दुर्लभ जड़ी-बूटी है
दशमूलारिष्ट की दवा में शामिल किया जाना वाला कृष्ण परणी काफी दुर्लभ औषधीय जड़ी-बूटी है. बड़ी मुश्किल से यह उपलब्ध हो पाता है. जंगलों में यह पौधा बिरले ही मिलता है. किसी-किसी साल जंगल में कृष्ण परणी काफी खोजबीन के बाद भी नहीं मिलता है. ऐसे में सुखे कृष्ण परणी से काम चलाया जाता है. इस बार प्रभु को जंगल से ताजा कृष्ण परणी लाकर अर्पित की गयी है.
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