Jharkhand News (शाचिन्द्र कुमार दाश, सरायकेला) : झारखंड के सरायकेला-खरसावां में मंगलवार को बड़े भाई बलभद्र व बहन सुभद्रा के साथ प्रभु जगन्नाथ गुंडिचा मंदिर से श्रीमंदिर के लिए प्रस्थान करेंगे. इस दौरान वापसी में कहीं एक, तो कहीं दो दिनों का समय लगेगा. गुंडिचा मंदिर से श्री मंदिर तक की यात्रा को बाहुड़ा यात्रा कहा जाता है. बाहुड़ा रथ यात्रा से पहले यहां सरायकेला-खरसावां के गुंडिचा मंदिरों में भक्तों ने पूजा-अर्चना की. इस दौरान तीनों ही प्रतिमाओं का शृंगार किया गया था.
सरायकेला में जहां दो दिनों का सफर तय कर प्रभु जगन्नाथ गुंडिचा मंदिर से श्रीमंदिर तक पहुंचते हैं, वहीं हरिभंजा, सीनी, खरसावां, चाकड़ी, बंदोलौहर, दलाईकेला आदि जगहों पर एक दिन में ही गुंडिचा मंदिर से श्रीमंदिर पहुंचते हैं. इस वर्ष बाहुड़ा रथ यात्रा की तिथि बाहुड़ा एकादशी के दिन होने के कारण हरिभंजा में प्रभु जगन्नाथ मंगलवार को अपने श्री मंदिर में प्रवेश नहीं करेंगे. यहां बुधवार को श्री मंदिर के रत्न सिंहासन में प्रवेश करेंगे.
प्रभु जगन्नाथ के श्रीमंदिर पहुंचते ही इस वर्ष की वार्षिक घोष यात्रा (रथ यात्रा) संपन्न हो जायेगी. इस वर्ष सेवायत व पुरोहितों द्वारा प्रभु जगन्नाथ, बलभद्र व देवी सुभद्रा के प्रतिमाओं को गुंडिचा मंदिर से कंधे पर उठा कर श्रीमंदिर तक पहुंचाया जायेगा. कोविड-19 के कारण इस वर्ष रथ का परिचालन नहीं हो रहा है.
Also Read: देश-दुनिया में छऊ से नाम रोशन करने वाले कामेश्वर को नहीं मिलती वृद्धा पेंशन, आजीविका के लिए कर रहे ये कामसिर्फ प्रतिकात्मक तौर पर ही तीनों देवी-देवताओं को रथ पर बैठाया जायेगा. इस दौरान पूजा अर्चना कर सभी धार्मिक रस्मों को निभाया जायेगा. साथ ही सोशल डिस्टैंसिंग का भी ख्याल रखा जा रहा है. श्रीमंदिर पहुंचने पर अधरपणा, छप्पन भोग समेत अन्य रस्म भी निभाये जायेंगे. प्रभु जगन्नाथ, बलभद्र एवं देवी सुभद्रा के श्रीमंदिर पहुंचने पर पारंपरिक शंखध्वनी व हुल-हुली के साथ स्वागत किया जायेगा. इसकी तैयारी पूरी कर ली गयी है.
खरसावां के हरिभंजा स्थित गुंडिचा मंदिर में बाहुड़ा रथ यात्रा की पूर्व संध्या पर नवमी संध्या दर्शन का आयोजन किया. इस दौरान महिलाओं ने प्रभु जगन्नाथ, बलभद्र, देवी सुभद्र व सुदर्शन की आरती उतारी. मंदिर परिसर में 108 दीये जलाये गये. गुंडिचा मंदिर के आड़प मंडप में प्रभु जगन्नाथ के नवमी संध्या दर्शन का विशेष पौराणिक महत्व है. नवमी संध्या दर्शन को अनंत फलदायी माना जाता है.
लोक कथा के अनुसार ‘निलाद्रौ दस वर्षाणी, आड़प मंडपे दिने ‘ कहा जाता है. यानी श्रीमंदिर के रत्न सिंहासन में 10 साल के दर्शन के बराबर का फल गुंडिचा मंदिर के आड़प मंडप में एक दिन के दर्शन में मिलता है. इस लोकोक्ति को आधार मानकर भक्तों ने गुंडिचा मंदिर में प्रभु जगन्नथ, बलभद्र, देवी सुभद्रा व सुदर्शन के दर्शन किये तथा आरती उतारी. इस दौरान कोरोना को देखते हुए सोशल डिस्टैंसिंग का अनुपालन किया गया था. इस दौरान वैदिक मंत्रोच्चारण के साथ पूजा अर्चना भी की गयी. चतुर्था मूर्ति का शृंगार भी किया गया. कोविड-19 को देखते हुए कई भक्तों ने घरों में ही पूजा अर्चना कर प्रभु की आरती उतारी.
Also Read: झारखंड के सिल्क जोन में तसर की खेती से किसानों में उत्साह, रेशम दूतों को मिले तसर के अंडेमंगलवार को आषाढ़ माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी बेहद खास है. दरअसल, इसी दिन मंगलवार को देवशयनी एकादशी है. इसी दिन से चार्तुमास का आरंभ हो रहा है. धार्मिक मान्यता है कि इस दिन से भगवान विष्णु निद्रा में चले जायेंगे. देवशयनी एकादशी से सभी प्रकार के मांगलिक कार्य शादी-विवाह, गृह प्रवेश, व्रत उपनयन आदि अगले चार माह के लिए बंद हो जायेंगे.
धार्मिक मान्यता है कि इन चार माह में भगवान विष्णु के क्षीर सागर शयन करने के कारण किसी प्रकार के मांगलिक कार्य नहीं होते है. फिर 14 नवंबर को देवउठनी एकादशी (कार्तिक माह के शुक्ल पक्ष) से सभी मांगलिक कार्य शुरू होंगे. देवशयनी अकादशी पर विष्णु मंदिरों में विशेष पूजा अर्चना की जायेगी. कहा जाता है कि देवशयनी एकादशी से विश्राम करने के बाद भगवान विष्णु देवउठनी एकादशी के दिन सृष्टि का कार्यभार संभालते हैं. हिंदू धर्म में चातुर्मास का विशेष महत्व होता है. मान्यता है कि इस दौरान भगवान विष्णु व अन्य देवतागन निद्रा में चले जाते हैं, सृष्टि का संचालन शिवजी करते हैं.
Posted By : Samir Ranjan.