मधुश्री हातियाल के झूमर की स्वरलहरियों पर झूमे दर्शक, झूमर संगीत बचाने में जुटी हैं मधुश्री
सरायकेला में आयोजित चैत्र पर्व के दौरान लोक कलाकार मधुश्री हातियाल ने झूमर पेश कर दर्शकों को खूब झूमाया. मधुश्री ने अपने टीम के साथ मांदर व धूमसा के थाप पर झूमर गीत गाने के साथ-साथ नृत्य कर भरपुर मनोरंजन किया. मधुश्री ने स्टेज में झूमर नृत्य पेश कर दर्शकों को जम कर झूमाया.
शचिंद्र कुमार दाश/प्रताप मिश्रा, सरायकेला. सरायकेला में आयोजित चैत्र पर्व के दौरान लोक कलाकार मधुश्री हातियाल ने झूमर पेश कर दर्शकों को खूब झूमाया. मधुश्री ने अपने टीम के साथ मांदर व धूमसा के थाप पर झूमर गीत गाने के साथ-साथ नृत्य कर भरपुर मनोरंजन किया. मधुश्री ने स्टेज में झूमर नृत्य पेश कर दर्शकों को जम कर झूमाया. पाहाड़ धारे मादल बाजे, भीतांड भीतांग बोले, पाहाड फूलेर माला पोराई ओगो दिबो मादोईलाके…, आइना लिबो चिरुनी लिबो, आमी बोसबो गो आजीर तोले, आजीर फोले माला टो गाइथे, हामी दिबो कालार गोले…आदि गीत पेश कर किया. इस दौरान कई इंस्टूमेंटल गीत भी पेश किया. मधुश्री हतियाल के झूमर की स्वरलहियों पर लोगों को झूमते देखा गया.
झूमर संगीत बचाने में जुटी हैं मधुश्री
पश्चिमी संस्कृति के आधुनिकीकरण ने भारतीय संगीत सरिता की लय और ताल की परिभाषा को भले ही कुछ हद तक बदल कर रख दी हो, परंतु गांव कस्बों के कलाकार अब भी विरासत में मिली पारंपरिक लोग गीत को बचाने के भरसक प्रयास में जुटे हुए हैं. ऐसा ही एक नाम है लोक कलाकार मधुश्री हतियाल का. सरायकेला में आयोजित चैत्र छऊ महोत्सव में कार्यक्रम पेश करने के लिये मधुश्री यहां पहुंची हुई है. मूल रुप से बहरागोडा की रहने वाली मधुश्री हतियाल सामाजिक विषमता की बेड़ियों को तोड़ कर विरासत में मिली झूमर संगीत को बचाने में जुटी हुई है. सरायकेला-खरसावां के साथ साथ झारखंड, ओड़िशा व बंगाल के सीमावर्ती क्षेत्रों में कुरमाली झूमर काफी पसंद किया जाता है. मधुश्री हतियाल कुरमाली झूमर के साथ साथ लोक संगीत के साथ साथ क्षेत्रीय कला, संस्कृति को सहेजने का कार्य कर रही है. इसके लिये ग्रामीण क्षेत्रों में लगातार कार्य कर रही है. देश के विभिन्न क्षेत्रों में झूमर संगीत के कार्यक्रम पेश कर चुकी है.
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झूमर गायन के लिये वर्ष 2018 में मिला है अकादमी पुरस्कार
उदीयमान कलाकार मधुश्री हतियाल ने मर्यादाओं के भीतर रह कर अब तक देश के विभिन्न क्षेत्रों के साथ साथ विदेशी धरती पर भी भिन्न भाषा संस्कृति वाले लोगों को झूमर गीतों पर झूमाया है. झूमर गायन के लिये ही वर्ष 2018 में उन्हें प्रतिष्ठीत संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार से पुरस्कृत किया गया. मधुश्री हतियाल की झूमर को सुनने की डिमांड हर स्टेज में रहता है. कुरमाली संगीत के कई एलबम में कार्य कर चुकी मधुश्री हतियाल की इच्छा है कि झूमर की सतरंगी छंटा विदेशों तक पहुंचे. इस नृत्य कला को सरकारी संरक्षण मिले और आने वाली पीढ़ी के लिए झूमर अकादमी की स्थापना कर प्रशिक्षण की व्यवस्था हो. मधुश्री हतियाल का कहना है कि इस कला से जुड़े लोगों को शोहरत की बुलंदियों तक भले ही नहीं पहुंच सके हों, परंतु इस लोक कला से जुड़े जमीनी कलाकारों को इज्जत तो खूब मिलती है. मधुश्री हतियाल का मानना है कि मेहनत व परिश्रम के बल पर ही खेतों के मेढ़ से निकला यह रास्ता एक दिन विश्व के रंगमंच तक जरूर पहुंचेगा. मधुश्री हतियाल का मानना है कि झूमर संगीत को बुलंदियों तक ले जाने की तमन्ना है.
जीवन के उतार चढ़ाव का आइना है झूमर संगीत
झूमर को विशुद्ध रूप से लोक गीत बताने वाली मधुश्री हतियाल का मानना है कि जीवन के उतार चढ़ाव का आइना है झूमर संगीत. मधुश्री झूमर की स्व लहरियों को अपनी अभव्यक्ति का साधन मानती है. मधुश्री हतियाल ने यह कला करीब 12 वर्ष की आयु से सिखना शुरु किया. मधुश्री हतियाल बताती है कि उनके शिक्षक पिता के साथ साथ परिवार के सदस्य संगीत के विधा के संरक्षण, आदिवासी संस्कृति, लोक विमर्श के सरक्षण में अपने ट्रस्ट ‘मरोमिया’ के माध्यम से वर्षों से जुटी हुई है. समाज कार्य के माध्यम से स्थानीय संसाधनों के संरक्षण हेतु वह आवाज उठाती रही है. मधुश्री हतियाल ग्रामीण क्षेत्र के बच्चों को झूमर संगीत सिखाने का भी कार्य कर रही है.