रंजीत दुधु की मगही कविताएं – उरॉंक हो गेलै और बंट गेला बाबुजी
रंजीत दुधु की दो अंगिका कविताएं इस बार प्रभात खबर के दीपावली विशेषांक में प्रकाशित हुईं हैं. उरॉंक हो गेलै और बंट गेला बाबुजी को आप भी पढ़ें...
उरॉंक हो गेलै
पाल पोस देला पर बड़का बड़का पॉंख हो गेलै
बाल बच्चा सब चिडैंयॉं नियन उरॉंक हो गेलै
जब तक हल पढे के रोज करऽहल बाबुजी मैया
महीने महीने ओकरा हम भेजऽ हलुं रूपैया
नौकरी लगला के बाद सब चालॉंक हो गेलै
बाल बच्चा सब चिडैंयॉं नियन उरॉंक हो गेलै
कोय गेल दिल्ली सुरत कोय गेल देहरादून
कोय गेल इंग्लैंड अमेरिका कोय गेल रंगुन
माय बाप के संजोगल सपना सब खाक हो गेलै
बाल बच्चा सब चिडैंयॉं नियन उरॉंक हो गेलै
जे गेल जहां ओहंय बना लेलक अपन खोंता
यहां खेलवे तरसऽ ही हम पोती आउ पोता
सब पुछे हे ओहंय ओकर वहां धाक हो गेलै
बाल बच्चा सब चिडैंयॉं नियन उरॉंक हो गेलै
तिनका तिनका बिखरल उजड़ गेल आशियाना
काया नय समांग बचल बना के खिलवत के खाना
सब ले हो पुनिया हमरा अमस्या रात हो गेलै
बाल बच्चा सब चिडैंयॉं नियन उरॉंक हो गेलै।
पाल पोस देला पर बड़का बड़का पॉंख हो गेलै।
उरॉंक हो गेलै।
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बंट गेला बाबुजी
टुकड़ा टुकड़ा बंट गेला बाबुजी
बुढारी में बिलट गेला बाबुजी
बुतरू में सब कहऽ हल बाबुजी हम्मर
बुढारी में सब कहे बाबुजी तोहर
भीतरे भीतरे फट गेला बाबुजी
टुकड़ा टुकड़ा बंट गेला बाबुजी
बाबुजी के समय में बेटा नय बोले
अखने के समय बाप नय मुंह खोले
कुंहर कुंहर के पलट गेला बाबुजी
टुकड़ा टुकड़ा बंट गेला बाबुजी
बर नियर देलका सबके ऊ छाया
बुढारी में जर्र जर्र होल उनकर काया
हला फड़हर से लट गेला बाबुजी
बुढारी में बिलट गेला बाबुजी
भरल पुरल हे सब उनकर परिवार
अब उहे हका सभे के गुनहगार
अंत में आ लटक गेला बाबुजी
बुढारी में बिलट गेला बाबुजी
जेकरा देलका भर भर सौगात
उहे नय देलक खाय दु कौर भात
सहारा बिन कलट गेला बाबुजी
बुढारी में बिलट गेला बाबुजी
सबदिन बाप अपन बेटा से हारल
कैद कैल गेल या गेल धिक्कारल
बेटे हाथ सलट गेला बाबुजी
बुढारी में बिलट गेला बाबुजी
तैयो उनकर मुंह निकले आशीर्वाद
जा बेटा तों सभे रहिहा आबाद
आदमी ले ललक गेला बाबुजी
बुढारी में बिलट गेला बाबुजी
टुकड़ा टुकड़ा बंट गेला बाबुजी
पता : गांव-पोस्ट : पोआरी, थाना-हरनौत, जिला-नालंदा, मो. : 6202944157