एक वर्ष में चार नवरात्रि दो गुप्त और दो सामन्य कहे गए हैं. गुप्त नवरात्रि माघ शुक्ल पक्ष प्रतिपदा और आषाढ़ शुक्ल प्रतिपदा को आरंभ होता है. यह नवरात्रि गुप्त साधनाओं के लिए परम श्रेष्ठ कहा गया है.इस साल माघ माह में गुप्त नवरात्रि की शुरुआत 2 फरवरी से हो रही हैं, जो कि 10 फरवरी तक समाप्त होगी.
इस दिन भक्तगण माँ की पूजा के लिए सुबह स्नान आदि से निवृत्त होकर कलश, नारियल-चुन्नी, श्रृंगार का सामान, अक्षत,हल्दी, फल-फूल पुष्प आदि यथा संभव सामग्री साथ रख लें. कलश सोना, चांदी, तामा, पीतल या मिटटी का होना चाहिए, लोहे अथवा स्टील का कलश पूजा मे प्रयोग नहीं करना चाहिए. कलश के ऊपर रोली से ॐ और स्वास्तिक आदि लिखें. पूजा आरम्भ के समय ‘ऊं पुण्डरीकाक्षाय’ नमः कहते हुए अपने ऊपर जल छिडकें.
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मां कालिके
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तारा देवी
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त्रिपुर सुंदरी
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भुवनेश्वरी
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माता चित्रमस्ता
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त्रिपुर भैरवी
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मां धूम्रवती
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माता बगलामुखी
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मातंगी
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कमला देवी
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मान्यता है कि नौ दिनों तक ब्रह्मचर्य नियम का पालन करें.
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सबसे पहला नियम यह है कि गुप्त नवरात्रि में देवी की साधना पूरी तरह से गुप्त तरीके से करना चाहिए. भूलकर भी की जाने वाली साधना-आराधना का प्रचार या महिमामंडन नहीं करना चाहिए.
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इन दिनों तामसिक भोजन का परित्याग करें.
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शक्ति की साधना में देवी की साधना हमेशा एक निश्चित समय और एक निश्चित स्थान पर करनी चाहिए. साधना करने के लिए हमेशा अपने आसन का ही प्रयोग करें. कभी भी दूसरे के आसन का प्रयोग बैठने के लिए नहीं करना चाहिए. शक्ति की साधना के लिए लाल रंग का उनी आसन अत्यंत ही शुभ माना गया है.
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ज्योतिष अनुसार कुश की चटाई पर शैया करें.
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गुप्त नवरात्रि में शक्ति की साधना के दौरान हमेशा एक निश्चित संख्या में देवी के मंत्र का जप करना चाहिए. कभी भी ज्यादा या कम मंत्र जप नहीं करना चाहिए.
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गुप्त नवरात्रि में पीले या लाल रंग के वस्त्र धारण करें.
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शक्ति की साधना के लिए चंदन की माला को श्रेष्ठ माना गया है. यदि चंदन की माला न मिले तो आप रुद्राक्ष की माला से जप कर सकते हैं, लेकिन ध्यान रहे कि जप हमेशा अपनी माला से करें. भूलकर भी गले में पहनने वाली माला का प्रयोग देवी के जप के लिए न करें.