Mahalaya 2020 : आज महालय है. यानी पितृ पक्ष का आखिरी दिन पितृ विसर्जन अमावस्या (pitru paksha amavasya 2020). हिन्दू पंचांगों में लिखा है कि आश्विन माह की अमावस्या को ही महालय अमावस्या (Mahalaya Amavasya) होता है. इस दिन को सर्व पितृ अमावस्या, पितृ विसर्जनी अमावस्या के अलावा मोक्षदायिनी अमावस्या भी कहते हैं. हर वर्ष महालय अमावस्या के बाद अगले पल से ही नवरात्रि (Navratri 2020 Date) प्रारंभ हो जाती थी लेकिन इस बाद अधिकमास (adhik maas 2020) के कारण ऐसा नहीं होगा. इस बार एक माह देरी से यानी 17 अक्टूबर से नवरात्रि प्रारंभ हो रहा है. महालय के विषय में आइए विस्तार से जानते हैं डॉ एनके बेरा से…
आज महालया है. ‘महालय’ शब्द का अर्थ है आनन्दनिकेतन. प्राचीन काल से मान्यता है कि आश्विन कृष्ण पक्ष प्रतिपदा से आश्विन कृष्णा पंचदशी यानी अमावस्या तक प्रेतलोक से पितृपुरुषों की आत्माएं मर्त्यलोक यानी धरती पर आती हैं. अपने प्रियजनों की माया में. महालया के दिन पितृ लोगों आना संपूर्ण होता है. गरूड़पुराण, वायुपुराण,अग्निपुराण आदि शास्त्रों के अनुसार:
आयुः पुत्रान् यशः स्वर्ग कीर्ति पुष्टि बलं श्रियम्।
पशून् सौख्यं धनं धान्यं प्राप्नुयात् पितृपूजनात्।।
पितरों की कृपा बिना कुछ संभव नहीं है. उन्हें नमन कीजिए, उनकी स्तुति कीजिए. बाधारहित जीवन का मार्ग वे स्वयं प्रशस्त कर देंगे. अतः अपने पितरों को तिलांजलि के साथ-साथ श्रद्धाजंलि करने से पितरों का विशेष आशीर्वाद मिलता है. पितरों की प्रसन्नता से गृहस्थ को दीर्घायु, पुत्र-पौत्रादि, यश, स्वर्ग, पुष्टि, बल, लक्ष्मी,पशुधन, सुख-साधन तथा धन-धान्यादि की प्राप्ति होती है. आलय इस दिन मह (अर्थात् आनंद) मय हो उठता है.
महालया से पितृ पक्ष की समाप्ति और देवी पक्ष की शुरुआत मानी जाती है. दुर्गतिनाशिनी, दशप्रहरणधारिणी, महाशक्ति स्वरूपिणी मां दुर्गा का आगमन होता है. एक वर्ष बाद मां के धरती पर आने की सूचना पाकर सभी लोग उत्साह व खुशी से झूम उठते हैं. क्योंकि मां के आगमन से सभी अमंगल का विनाश होता है, ऐश्वर्य, धन, सौंदर्य, सौभाग्य, कीर्ति, विद्या, बल, आयु, संतान, सुलक्षणा पत्नी, सुयोग्य पति, स्वर्ग, मोक्ष की प्राप्ति होती है.
इसलिए सभी प्रार्थना करते हैं- एसो मा दुर्गा आमार घरे, एसो मा दुर्गा आमार घरे. श्रीदुर्गासप्तशती में कहा गया है :
रोगानशेषानपहंसि तुष्टा रुष्टा तु कामान् सकलानभीष्टान्
त्वामाश्रितानां न विपन्नराणां त्वामाश्रिता ह्याश्रयतां प्रयान्ति ।।
मां, तुम प्रसन्न होनेपर सब रोगों को नष्ट कर देती हो और कुपित होने पर मनोवांछित सभी कामनाओं का नाश कर देती हो. जो लोग तुम्हारी शरण में जा चुके हैं, उनपर विपत्ति तो आती ही नहीं. तुम्हारी शरण में गये हुए मनुष्य दूसरों को शरण देनेवाले हो जाते हैं.
भोर बेला में स्तुति की परंपरा : शारदीय नवरात्र के एक दिन पहले यानी महालया को मां दुर्गा की स्तुति करने की परंपरा है. महालया के दिन भोर में चार बजे रेडियो एवं दूरदर्शन के चैनलों पर मां दुर्गा के आगमन की सूचना को लेकर विशेष कार्यक्रम प्रस्तुत किया जाता है. इसमें सबसे लोकप्रिय रेडियो प्रोग्राम कोलकाता से श्री वीरेन्द्र कृष्ण भद्र का महिषासुरमर्दिनी है, जो लगभग 1929 से ही नियमित रूप से महालया को प्रसारित हो रहा है. आज जो प्रसारण हमें सुनने को मिलता है, वह 1962 के महालया की रिकॉर्डिग है. जिसे सुनते ही सभी का अंतर्मन श्रद्धा और उत्साह से भर जाता है. लगता है जैसे समस्त प्रकृति और समस्त प्राणी खुशियों से झूमने लगे हों- मां आसछे.
विश्व आजके ध्यानमग्ना, उदभाषित आशा।
तापित तृषित धराय जागबे, प्राणेर नूतन भाषा।।
मृण्मयी मा आविर्भूता, असुर विनाशिनी।
मायेर आगमनी ।।
मां दुर्गा की पूजा के संबंध में शाक्ततंत्रों में कहा गया है कि मानव जीवन समस्या एवं संकटों की सत्यकथा है. अतः सांसारिक कष्टों के दलदल में फंसे मनुष्यों को मां दुर्गा की उपासना करनी चाहिए. वह आद्याशक्ति एकमेव एवं अद्वितीय होते हुए भी अपने भक्तों को काली, तारा, षोड़शी, भुवनेश्वरी, छिन्नमस्ता, त्रिपुरभैरवी, धूमावती, बगलामुखी, मांतगी एवं कमला- इन दस महाविद्याओं के रूप में वरदायिनी होती हैं. और वही जगन्माता अपने भक्तों के दुःख दूर करने के लिए शैलपुत्री, ब्रह्मचारिणी, चंद्रघंटा, कूष्मांडा, स्कन्दमाता, कात्यायिनी, कालरात्रि, महागौरी तथा सिद्धिदात्री- इन नवदुर्गाओं के रूप में अवतरित होती है. सत्व,रजस्, तमस्- इन तीन गुणों के आधार पर वह महाकाली, महालक्ष्मी एवं महासरस्वती के नाम से लोक में प्रसिद्ध हैं.
गुरुवार को दोपहर बाद 4.56 तक अमावस्या रहेगी. जिन पितरों की मृत्युतिथि ज्ञात न हो उन सबका श्राद्ध इस दिन होगा. जो लोग पितृपक्ष के 14 दिनों तक श्राद्ध-तर्पण आदि नहीं कर पाते हैं, वे महालया के दिन ही श्राद्ध करते हैं.
अधिकमास 2020 के कारण इस साल नवरात्रि का पर्व पितृपक्ष की समाप्ति के अगले दिन शुरू न होकर एक महीने बाद से प्रारंभ होगा. ऐसा संयोग 19 साल पहले 2001 में हुआ था. इस तरह नवरात्रि पर्व 17 अक्टूबर से शुरू होगा जो 25 अक्टूबर तक चलेगा. दशहरा का पर्व 25 अक्टूबर को मनाया जाएगा.