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Sarva Pitru Amavasya, Mahalaya 2022: आज है सर्वपितृ अमावस्या, महालया, बन रहा अति दुर्लभ संयोग

Sarva Pitru Amavasya/ Mahalaya 2022: महालया जो पितृ पक्ष की समाप्ति, देवी पक्ष की शुरूआत मानी जाती है, दुर्गतिनाशिनी, दशप्रहरणधारिणी, महाशक्ति स्वरूपिणी मां दुर्गा का आगमण होता है, पूर्वी भारत के सबसे बड़ा त्योहार श्री श्री दुर्गा पूजा के सात दिन पहले महिषासुरमर्दिनी मां दुर्गा के आगमन के सूचना है.

By Prabhat Khabar Digital Desk | September 25, 2022 5:56 AM

Sarva Pitru Amavasya/ Mahalaya 2022: इस वर्ष 25 सितम्बर 2022 रविवार को स्नान-दान सहित सर्वपितृ अमावस्या का श्राद्ध एवं पितृविसर्जन महालया पर्व के रूप में सम्पन्न होगा. इस वर्ष महालया के दिन उत्तराफाल्गुनी नक्षत्र अहोरात्र, सूर्य कन्या राशि में,चन्द्रमा सिहं राशि में दिवा 12.16 के उपरांत कन्या राशि में प्रवेश करेंगे. शुभ योग, उत्तराफाल्गुनी नक्षत्र के होने के कारण इस दिन महान दुर्लभ संयोग बन रहा है जो सर्व पितृअमावस्या का श्राद्ध तथा महालया पर्व के लिए सर्वोत्तम है.

माताओं का श्राद्ध सिर्फ नवमी के दिन ही किया जाता है

सनातन हिन्दु संस्कृति में पितृपक्ष का बड़ा महत्व शास्त्रों में बताया गया है कि पितरों के नाम पर श्राद्ध-तर्पण एवं पिणडदान नहीं करनेवाला अपने कुल- वंश के उत्थान के विरूद्ध कार्य करता है. जिस तरह पिता द्वारा अर्जित सम्पत्ति पुत्र को मिलती है उसी प्रकार पुत्र द्वारा श्राद्ध कर्म में किया हुआ अन्न-जल भी पितरों को प्राप्त हो जाता है. यहां ध्यान रखने लायक बात ये है कि स्त्रियों के लिए नवमी अर्थात् मातृ नवमी तो पहले से ही एक ही तिथि के रूप में जानी जाती है. मृत्यु की तिथि कोई भी रही हो माताओं का श्राद्ध सिर्फ नवमी के दिन ही किया जाता है और जिन पितरों के मृत्युतिथि ज्ञात न हो तथा किसी कारण वश तिथि विशेष पर श्राद्ध न कर पाने के कारण सभी पितरों का श्राद्ध इस दिन किया जाता है. पितरों को महाविष्णु के रूप में मान्य करते हुए उसकी प्रसन्नता के लिए ब्राह्मणों को भोजन कराकर एवं वस्त्रादि से उनका सम्मान करने से परिवार में सुख-शान्ति एवं वंश वृद्धि होती है.

जिन्हें पितृ मृत्यु की तिथि याद नहीं उनका पिंडदान महालया के दिन

गरूड़पुराण, वायुपुराण,अग्निपुराण आदि शास्त्रों के अनुसार- महालया जो पितृ पक्ष का अंतिम दिन है, जो लोग पितृपक्ष के 14 दिनों तक श्राद्ध तर्पण आदि नहीं कर पाते हैं, वे महालया के दिन ही पिंडदान करते हैं, जिन्हें पितृ के मृत्यु की तिथि याद नहीं हो इस तरह अज्ञात तिथि वालों का श्राद्ध, तर्पण इसी महालया के दिन ही किया जाता है. ’महालय” शब्द का आक्षरिक अर्थ आनन्दनिकेतन है. अति प्राचीन काल से मान्यता है कि आश्विन कृष्ण पक्ष प्रतिपद से आश्विन कृष्णा पंचदशी अर्थात् अमावस्या तक प्रेतलोक से पितृपुरूष के आत्मा मत्युलोक अर्थात् धरती में आते हैं अपने प्रियजनों के माया में और महालया के दिन पितृ लोगों आना सम्पूर्ण होता है.

आयुः पुत्रान् यशः स्वर्ग कीर्ति पुष्टि बलं श्रियम् ।

पशून् सौख्यं धनं धान्यं प्राप्नुयात् पितृपूजनात् ।।

पितरों की कृपा प्राप्त करने से जीवन में आती है सुख, समृद्धि

पितरों की कृपा बिना कुछ संभव नहीं है. उन्हें नमन कीजिए, प्रणाम कीजिए, स्तुति कीजिए, विश्वास कीजिए तो समझिये कि बाधा रहित जीवन का मार्ग वे स्वयं प्रशस्त कर देंगे. अतः अपने पितरों को तिलांजलि के साथ-साथ श्रद्धाजंलि करने से पितरों का विशेष आशीर्वाद मिलता है. पितरों के प्रसन्नता से गृहस्थ दीर्घायु, पुत्र-पौत्रादि, यश, स्वर्ग, पुष्टि, बल, लक्ष्मी, पशुधन, सुख-साधनतथा धन-धान्यादि की प्राप्ति होती है. आलय इस दिन मह (अर्थात्,आनन्द)-मय हो उठता है, महालया जो पितृ पक्ष की समाप्ति, देवी पक्ष की शुरूआत मानी जाती है, दुर्गतिनाशिनी, दशप्रहरणधारिणी, महाशक्ति स्वरूपिणी मां दुर्गा का आगमण होता है, पूर्वी भारत के सबसे बड़ा त्योहार श्री श्री दुर्गा पूजा के सात दिन पहले महिषासुरमर्दिनी मां दुर्गा के आगमन के सूचना है.

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मां के आगमन के दिन महालया पर दिखता है लोगों का उत्साह

एक वर्ष वाद मां के धरती में आने का सूचना पाकर सभी लोग आनदं, उमंग, उत्साह, खुशी से झूम उठते हैं क्यों कि मां के आगमन से सभी अमंगल का विनाश होता है. मां की कृपा से ऐश्वर्य, धन, सौन्दर्य, सौभाग्य, कीर्ति, विद्या, बल, आयु, सन्तान, आनन्दोपभोग, सुलक्षणापत्नी, सुयोग्यपति, स्वर्ग, मोक्ष की प्राप्ति होती है, इसलिए सभी ने मातृरूपेण, शक्तिरूपेण, लक्ष्मीरूपेण, शांतिरूपेण आदि मंत्रों से स्तुति करते हैं. और सभी प्रार्थना करते हैं एसो माँ दुर्गा आमार घरे-एसो माँ दुर्गा आमार घरे. क्यों कि श्रीदुर्गासप्तशती से कहा गया है-

या श्रीः स्वयं सुकृतिनां भवनेष्वलक्ष्मीः

पापात्मनां कृतधियां ह्दयेषु बुद्धिः।

श्रद्धा सतां कुलजनप्रभवस्य लज्जा

तां त्वां नताः स्म परिपालय देवि विश्वम्।।

महालया पर विशेष

डॉ.एन.के.बेरा

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