Mahashivratri 2022: महाशिवरात्रि रात्रि पूजा विधि, संकल्प, शुभ मुहूर्त और व्रत कथा जानें
Mahashivratri 2022:शक्ति चेतना का रूप है और अगर शिव में शक्ति हटाने का प्रयास भी किया जाए तो पीछे शव ही रह जाता है. शक्ति का शिव और शिव का शक्ति के मिलन की अवस्था ही शिव है. इसलिए शिव को 'अर्धनारीश्वर' भी कहते हैं.
Mahashivratri 2022: शिव को ऋग्वेद में रुद्र रूप में पूज्यकर उनके रुद्र स्तवन में स्तुति की है.शिव पुराण, लिंग, पुराण, स्कन्दपुराण, मत्स्य पुराण कर्म पुराण पुराण और ब्रह्मांड पुराण-यह छह पुराण तो पूर्णतः शैव उपासना से भरे पड़े हैं.मानसिक मंथन करें, तो गहन अंधकार से जागना, स्वयं को उबारना आदि सङ्कल्प हमें शिवरात्रि से सीखने को मिलता है. आज यानि 1 मार्च मंगलवार को महाशिवरात्रि है. इस दिन भगवान शिव की पूजा विशेष रूप से की जाती है.शिवपुराण के अनुसार, इस दिन भगवान शिव की विधि-विधान पूर्वक पूजा करने तथा व्रत रखने से विशेष फल मिलता है. महाशिवरात्रि पर शिव पूजा और व्रत की विधि इस प्रकार है-
Mahashivratri Vrat Vidhi
व्रत विधि-
महाशिवरात्रि की सुबह व्रती (व्रत करने वाला) जल्दी उठकर स्नान आदि करने के बाद माथे पर भस्म का त्रिपुंड तिलक लगाएं और गले में रुद्राक्ष की माला धारण करें.
इसके बाद समीप स्थित किसी शिव मंदिर में जाकर शिवलिंग की पूजा करें.
Mahashivratri Vrat Sankalp: श्रृद्धापूर्वक व्रत का संकल्प इस प्रकार लें-
शिवरात्रिव्रतं ह्येतत् करिष्येहं महाफलम्.
निर्विघ्नमस्तु मे चात्र त्वत्प्रसादाज्जगत्पते..
यह कहकर हाथ में फूल, चावल व जल लेकर उसे शिवलिंग पर अर्पित करते हुए यह श्लोक बोलें-
देवदेव महादेव नीलकण्ठ नमोस्तु ते.
कर्तुमिच्छाम्यहं देव शिवरात्रिव्रतं तव..
तव प्रसादाद्देवेश निर्विघ्नेन भवेदिति.
कामाद्या: शत्रवो मां वै पीडां कुर्वन्तु नैव हि..
Mahashivratri Ratri Puja: इस प्रकार करें रात्रि पूजा
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व्रती दिनभर शिव मंत्र (ऊं नम: शिवाय) का जाप करें तथा पूरा दिन निराहार रहें. (रोगी, अशक्त और वृद्ध दिन में फलाहार लेकर रात्रि पूजा कर सकते हैं.)
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शिवपुराण में रात्रि के चारों प्रहर में शिव पूजा का विधान है. शाम को स्नान करके किसी शिव मंदिर में जाकर अथवा घर पर ही पूर्व या उत्तर दिशा की ओर मुंह करके त्रिपुंड एवं रुद्राक्ष धारण करके पूजा का संकल्प इस प्रकार लें-
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ममाखिलपापक्षयपूर्वकसलाभीष्टसिद्धये शिवप्रीत्यर्थं च शिवपूजनमहं करिष्ये
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व्रती को फल, फूल, चंदन, बिल्व पत्र, धतूरा, धूप व दीप से रात के चारों प्रहर पूजा करनी चाहिए साथ ही भोग भी लगाना चाहिए.
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दूध, दही, घी, शहद और शक्कर से अलग-अलग तथा सबको एक साथ मिलाकर पंचामृत से शिवलिंग को स्नान कराकर जल से अभिषेक करें.
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चारों प्रहर के पूजन में शिवपंचाक्षर (नम: शिवाय) मंत्र का जाप करें. भव, शर्व, रुद्र, पशुपति, उग्र, महान, भीम और ईशान, इन आठ नामों से फूल अर्पित कर भगवान शिव की आरती व परिक्रमा करें.
भगवान शिव से प्रार्थना इस प्रकार करें-
नियमो यो महादेव कृतश्चैव त्वदाज्ञया.
विसृत्यते मया स्वामिन् व्रतं जातमनुत्तमम्..
व्रतेनानेन देवेश यथाशक्तिकृतेन च.
संतुष्टो भव शर्वाद्य कृपां कुरु ममोपरि..
अगले दिन सुबह पुन: स्नान कर भगवान शंकर की पूजा करने के बाद व्रत का समापन करें.
महाशिवरात्रि के शुभ मुहूर्त
रात्रि प्रथम प्रहर पूजा समय: शाम 06:27 से रात 09:29 तक
रात्रि द्वितीय प्रहर पूजा समय: रात 09:29 से 12:31 तक
रात्रि तृतीय प्रहर पूजा समय: रात 12:31 से 03:32 तक
रात्रि चतुर्थ प्रहर पूजा समय: रात 03:32 से सुबह 06:34 तक
Mahashivratri Vrat Katha: महाशिवरात्रि व्रत की कथा इस प्रकार है-
किसी समय वाराणसी के जंगल में एक भील रहता था. उसका नाम गुरुद्रुह था. वह जंगली जानवरों का शिकार कर अपना परिवार पालता था. एक बार शिवरात्रि पर वह शिकार करने वन में गया. उस दिन उसे दिनभर कोई शिकार नहीं मिला और रात भी हो गई. तभी उसे वन में एक झील दिखाई दी. उसने सोचा मैं यहीं पेड़ पर चढ़कर शिकार की राह देखता हूं. कोई न कोई प्राणी यहां पानी पीने आएगा. यह सोचकर वह पानी का बर्तन भरकर बिल्ववृक्ष पर चढ़ गया. उस वृक्ष के नीचे शिवलिंग स्थापित था.
थोड़ी देर बाद वहां एक हिरनी आई. गुरुद्रुह ने जैसे ही हिरनी को मारने के लिए धनुष पर तीर चढ़ाया तो बिल्ववृक्ष के पत्ते और जल शिवलिंग पर गिरे. इस प्रकार रात के प्रथम प्रहर में अंजाने में ही उसके द्वारा शिवलिंग की पूजा हो गई. तभी हिरनी ने उसे देख लिया और उससे पूछा कि तुम क्या चाहते हो. वह बोला कि तुम्हें मारकर मैं अपने परिवार का पालन करूंगा. यह सुनकर हिरनी बोली कि मेरे बच्चे मेरी राह देख रहे होंगे. मैं उन्हें अपनी बहन को सौंपकर लौट आऊंगी. हिरनी के ऐसा कहने पर शिकारी ने उसे छोड़ दिया.
थोड़ी देर बाद उस हिरनी की बहन उसे खोजते हुए झील के पास आ गई. शिकारी ने उसे देखकर पुन: अपने धनुष पर तीर चढ़ाया. इस बार भी रात के दूसरे प्रहर में बिल्ववृक्ष के पत्ते व जल शिवलिंग पर गिरे और शिवलिंग की पूजा हो गई. उस हिरनी ने भी अपने बच्चों को सुरक्षित स्थान पर रखकर आने को कहा. शिकारी ने उसे भी जाने दिया. थोड़ी देर बाद वहां एक हिरन अपनी हिरनी को खोज में आया. इस बार भी वही सब हुआ और तीसरे प्रहर में भी शिवलिंग की पूजा हो गई. वह हिरन भी अपने बच्चों को सुरक्षित स्थान पर छोड़कर आने की बात कहकर चला गया. जब वह तीनों हिरनी व हिरन मिले तो प्रतिज्ञाबद्ध होने के कारण तीनों शिकारी के पास आ गए. सबको एक साथ देखकर शिकारी बड़ा खुश हुआ और उसने फिर से अपने धनुष पर बाण चढ़ाया, जिससे चौथे प्रहर में पुन: शिवलिंग की पूजा हो गई.
इस प्रकार गुरुद्रुह दिनभर भूखा-प्यासा रहकर रात भर जागता रहा और चारों प्रहर अंजाने में ही उससे शिव की पूजा हो गई, जिससे शिवरात्रि का व्रत संपन्न हो गया. इस व्रत के प्रभाव से उसके पाप तत्काल ही भस्म हो गए. पुण्य उदय होते ही उसने हिरनों को मारने का विचार त्याग दिया. तभी शिवलिंग से भगवान शंकर प्रकट हुए और उन्होंने गुरुद्रुह को वरदान दिया कि त्रेतायुग में भगवान राम तुम्हारे घर आएंगे और तुम्हारे साथ मित्रता करेंगे. तुम्हें मोक्ष भी प्राप्त होगा. इस प्रकार अंजाने में किए गए शिवरात्रि व्रत से भगवान शंकर ने शिकारी को मोक्ष प्रदान कर दिया.
महामृत्युंजय मंत्र-
वैसे तो भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए अनेक मंत्रों का जाप किया जाता है, लेकिन सभी में महामृत्युजंय मंत्र का विशेष महत्व है. ये मंत्र इस प्रकार है…
ऊं हौं जूं सः ऊं भूर्भुवः स्वः ऊं त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम् उर्वारुकमिव बन्धनान् मृत्योर्मुक्षीय मामृतात् ऊं स्वः भुवः भूः ऊं सः जूं हौं ऊं