Gandhi Jayanti 2020 : आस्तित्व रक्षा से गुजर रहा है खादी भंडार, भूतबंगला में तब्दील हो गया है भवन

gandhi jayanti 2020, khadi bhandar : राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की सपने का खादी भंडार वर्तमान में अस्तित्व रक्षा के संकट की दौर से गुजर रहा है. एक जमाना था जब मिथिला के नन्हें बच्चे भी 'च' से चरखा और 'स' से सूत पढ़कर अध्ययन का श्री गणेश करते थे.

By Prabhat Khabar News Desk | October 2, 2020 9:52 AM
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gandhi jayanti 2020 : कभी देश का शान रह चुका खादी भंडार व घर-घर में चलने वाला चरखा वर्तमान में महज संग्रहालय का वस्तु बनकर रह गया है. राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की सपने का खादी भंडार वर्तमान में अस्तित्व रक्षा के संकट की दौर से गुजर रहा है. एक जमाना था जब मिथिला के नन्हें बच्चे भी ‘च’ से चरखा और ‘स’ से सूत पढ़कर अध्ययन का श्री गणेश करते थे.

घर-घर में मौजूद रहने वाला चरखा और मधुबनी जिले को खादी ग्रामोद्योग राष्ट्रीय ही नहीं बल्कि विश्व स्तर पर भी खास पहचान रखता था. लेकिन वर्तमान में चारखा व खादी भंडार अस्तित्व रक्षा के संकट से गुजर रहा है. जबकि यह कभी मिथिला में बेरोजगार, असहाय, नि:शक्त, महिला-पुरूष के लिये रोजी रोटी का प्रमुख साधन हुआ करता था. खासकर मध्यम वर्ग की अधिकांश महिलाएं चरखे से सूत तैयार कर अर्थ उपार्जन करने के साथ परिवार को सबल बनाती थी.

तैयार सूत का ग्रेडिंग तय कर संस्थान द्वारा पारिश्रमिक दिया जाता था. फिर इस सूत से इसी संस्थान के हस्तकर्घा, बुनाई, रंगाई, छपाई, सिलाई का काम होता था. सूत से धोती, कुर्ता, चादर, बंडी दोपट्टा, कोट, टोपी, झोला, बोरी आदि बनाये जाते थे. हर विभाग में प्रत्यक्ष रूप से औसतन 10 से 12 लोगों व अप्रत्यक्ष रूप से जिले के हजारों लोगों का रोजगार का साधन था. गर्म-ठंड दोनों ऋतुओं में अनुकूल होने के कारण इससे उत्पादित वस्त्र का उपयोग मिथिला के अलावे देश-विदेश में भी होता था.

रोजगार और महिला सशक्तीकरण व स्वालंबन के ख्याल से यह उद्योग काफी महत्त्वपूर्ण था. औसतन 5-7 घंटे चरखा चलाने वाली महिलाएं 70 से 80 के दशक में 800 से 1500 रुपये आय कर लेती थी. बाद में खादी भंडार को वृहत किया जाने के क्रम में साबुन उद्योग, सरसों तेल पेड़ने का मशीन, मधुमक्खी पालन, शुद्ध मधु की खरीद बिक्री जैसी योजनाओं को भी जोड़कर बढ़ावा दिया जाने लगा. स्थानीय स्तर पर बनाए जाने वाले चरखा को खादी भंडार द्वारा खरीदकर देश-विदेश में बेचा जाता था.

असहाय महिलाओं को लोन के रूप में चरखा दिया जाता था. जिसकी कीमत महिलाएं चरखे की कीमत के बराबर सूत बनाकर चुकाती थी. अनुमंडल के सभी प्रखंडों के विभिन्न गांवों में खादी भंडार का केंद्र था. खासकर बेनीपट्टी प्रखंड के बेनीपट्टी, बसैठ-रानीपुर, धकजरी, चतरा आदि कई स्थानों पर खादी भंडार अच्छी स्थिति में थे. लेकिन कई दशकों से इसकी घोर उपेक्षा के कारण खादी भंडार की सभी मशीन बंद पड़े हैं. खादी भंडार भवन भी जीर्णशीर्ण होकर भूतबंगला में तब्दील हो गया है. यह जुआरियों और अवारा पशुओं का स्थायी बसेरा बन गया है.

कई जगह पर आज भी खंडहर भवन हैं तो कई जगहों पर भवन की एक-एक ईंट गायब कर भू माफिया द्वारा जमीन बेच दी गयी है. स्थानीय लोगों ने कहा कि सरकार के द्वारा खादी भंडार की भूमि सहित भवनों को संरक्षित कर मृतप्रायः हो चुके खादी ग्रामोद्योग संस्थानों को आधुनिक तरीके से विकसित करना जरूरी है. ताकि लोग पुनः खादी वस्त्र को दैनिक जीवन में उपयोग कर खादी भंडार की पुरानी गरिमा को लौटाने में सक्षम हो सकें.

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Posted By : Avinish Kumar Mishra

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