ओड़िशा के प्रख्यात भाषाविद और लोक गीतकार महेंद्र कुमार मिश्रा को मिलेगा यूनेस्को का पुरस्कार
स्कूली शिक्षा में लुप्तप्राय भाषाओं को बढ़ावा देने में महेंद्र कुमार मिश्रा का महत्वपूर्ण योगदान था. स्कूली पाठ्यक्रम में लोकगीतों का उपयोग करने के उनके परीक्षण को ओडिशा, छत्तीसगढ़ के प्राथमिक विद्यालयों में व्यापक रूप से लागू किया गया है. भाषाविद् को 1999 में ओड़िशा साहित्य अकादमी पुरस्कार मिला था.
ओड़िशा (Odisha News) के प्रख्यात भाषाविद और लोक गीतकार महेंद्र कुमार मिश्रा (Mahendra Kumar Mishra) को भारत में मातृभाषा को बढ़ावा देने के वास्ते उनकी आजीवन सेवा के लिए यूनेस्को के अंतरराष्ट्रीय मातृभाषा पुरस्कार 2023 के लिए नामित किया गया है. अंतरराष्ट्रीय मातृभाषा संस्थान (आईएमएलआई), ढाका के महानिदेशक प्रोफेसर हकीम आरिफ ने महेंद्र कुमार मिश्रा को भेजी एक संदेश में उन्हें पुरस्कार समारोह में आमंत्रित किया है.
21 फरवरी को शेख हसीना महेंद्र कुमार मिश्रा को देंगी पुरस्कार
बांग्लादेश की प्रधानमंत्री शेख हसीना 21 फरवरी को औपचारिक रूप से संस्थान में मिश्रा को पदक प्रदान करेंगी. संयुक्त राष्ट्र ने वर्ष 2000 में 21 फरवरी को अंतरराष्ट्रीय मातृभाषा दिवस घोषित किया था. भाषा आंदोलन दिवस, जिसे ‘भाषा शहीद दिवस’ भी कहा जाता है, 21 फरवरी को पूर्वी पाकिस्तान के भाषा को लेकर शहीद हुए लोगों की याद में बांग्लादेश में मनाया जाता है.
उर्दू को थोपने के खिलाफ बांग्लादेश के लोगों ने लड़ी लड़ाई
इन लोगों ने उर्दू को थोपने के खिलाफ लड़ाई लड़ी और बांग्लादेश के स्वतंत्र देश बनने से लगभग दो दशक पहले अपनी आधिकारिक भाषा के रूप में बांग्ला को स्थापित किया. मिश्रा बहुभाषी शिक्षा के लिए राज्य समन्वयक (1996- 2010) थे और प्राथमिक विद्यालयों में मातृभाषा आधारित बहुभाषा शिक्षा को अपनाने में अग्रणी थे.
स्कूली शिक्षा में लुप्तप्राय भाषाओं को दिया बढ़ावा
स्कूली शिक्षा में लुप्तप्राय भाषाओं को बढ़ावा देने में भी उनका महत्वपूर्ण योगदान था और स्कूली पाठ्यक्रम में लोकगीतों का उपयोग करने के उनके परीक्षण को ओडिशा और छत्तीसगढ़ के प्राथमिक विद्यालयों में व्यापक रूप से लागू किया गया है. भाषाविद् को 1999 में ओड़िशा साहित्य अकादमी पुरस्कार मिला था. उन्हें वर्ष 2009 में मध्य प्रदेश सरकार द्वारा स्थापित वीर शंकर शाह रघुनाथ पुरस्कार भी मिल चुका है.