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Makar Sankranti 2021 : झारखंड में टुसू पर्व पर चौड़ल सजा कर आराधना करती हैं कुंवारी कन्याएं

Makar Sankranti 2021, Jharkhand News, Dhanbad News : 15 दिसंबर को अगहन संक्रांति की स्थापना कर 14 जनवरी को मकर संक्रांति के साथ झारखंड में टुसू पर्व मनाया जाता है. पश्चिम बंगाल व ओडिशा में भी यह पर्व मनाया जाता है. झारखंड के खासकर कुड़मी व आदिवासी समाज में टुसू पर्व का खास महत्व है. फसल कटने के बाद पौष मास में एक माह तक चलने वाली यह पर्व कुंवारी कन्याओं द्वारा मनाया जाता है.

Makar Sankranti 2021, Jharkhand News, Dhanbad News, राजगंज (सुबोध चौरसिया) : 15 दिसंबर को अगहन संक्रांति की स्थापना कर 14 जनवरी को मकर संक्रांति के साथ झारखंड में टुसू पर्व मनाया जाता है. पश्चिम बंगाल व ओडिशा में भी यह पर्व मनाया जाता है. झारखंड के खासकर कुड़मी व आदिवासी समाज में टुसू पर्व का खास महत्व है. फसल कटने के बाद पौष मास में एक माह तक चलने वाली यह पर्व कुंवारी कन्याओं द्वारा मनाया जाता है.

अगहन संक्रांति के दिन कुंवारी कन्याओं के द्वारा अपने घर- आंगन में टुसू की स्थापना मिट्टी के बर्तन (सरवा) में दिनी के धान से स्थापित की जाती है. हर दिन एक टुसा फूल (प्रतिदिन अलग- अलग फूलों की कोढ़ी) का चढ़ावा के साथ धूप, धुना, अगरबत्ती दिखायी जाती है. साथ ही टुसू के गीत गाये जाते हैं. प्रत्येक 8 दिनों में अठकोलैया (8 प्रकार के अन्न जैसे- चावल, मकई, कुरथी, चना, जौ, मटर, बादाम, लाहर) का भोग लगाया जाता है. 30वें दिन टुसू महोत्सव मनायी जाती है व रात्रि जागरण होता है. रातभर टुसू के गीत, संगीत व नृत्य चलता है. सुबह टुसूमणी को चौड़ल पर बैठा कर ढोल- ढांसा के साथ जलाशयों में इसकी विदाई की जाती है. टुसू का शाब्दिक अर्थ कुंवारी होता है.

गांव- गांव में चल रही है तैयारी

टुसू पर्व को लेकर गांव- गांव में इसकी तैयारी चल रही है. हरेक मुहल्ला व घर में प्रत्येक शाम को टुसू के गीत सुनायी दे रही है. इसको लेकर कुंवारी कन्याओं में विशेष उत्साह देखने को मिल रहा है. सभी अलग- अलग दल बनाकर टुसू महोत्सव को मनाने व इस मौके पर आयोजित होने वाले प्रतियोगिताओं में भाग लेने के लिए उत्साहित हैं. अलग- अलग दलों द्वारा एक से बढ़कर एक चौड़ल बनाये जा रहे हैं व गीत- संगीत का अभ्यास भी किया जा रहा है.

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राजगंज में 2004 से टुसू महोत्सव का आयोजन

विनोद ग्राम विकास केंद्र राजगंज, लाठाटांड, बरवाडीह, कारीटांड के संयुक्त तत्वावधान में वर्ष 2004 से राजगंज के कारीटांड मैदान में टुसू महोत्सव का भव्य आयोजन होता आया है. इस मौके पर टुसू गीत- संगीत, नृत्य व चौड़ल प्रतियोगिता आयोजित होती है. इसमें राजगंज व आसपास के कुंवारी कन्याओं का दर्जनों दल भाग लेती है. झारखंडी संस्कृति से जुड़ा झुमर व नटुआ नाच का आयोजन किया जाता है. प्रत्येक वर्ष यहां के कार्यक्रम में क्षेत्रीय विधायक भाग लेने पहुंचते हैं. स्वर्गीय राजकिशोर महतो को यहां के कार्यक्रम से विशेष लगाव था. विधायक मथुरा प्रसाद महतो भी यहां बुलावे पर पहुंचते हैं. विनोद ग्राम विकास केंद्र के संस्थापक अध्यक्ष शंकर किशोर महतो, सचिव नुना राम महतो व संरक्षक हीरा लाल महतो का इस आयोजन में विशेष भूमिका रहती है. इस वर्ष भी 14 जनवरी को टुसू महोत्सव मनाया जा रहा है.

टुसू को लेकर है कई कहानियां प्रचलित

जानकारों के मुताबिक, टुसूमणी का जन्म पूर्वी भारत के एक कुर्मी परिवार में हुआ था. झारखंड की सीमा से सटे ओड़िशा के मयूरभंज की रहने वाली टुसूमणी गजब की खूबसूरत थी. बंगाल के नवाब सिराजुद्दौला के कुछ सैनिकों द्वारा उसका अपहरण कर लिया गया था. नवाब को जब इसकी जानकारी हुई, तो उन्होंने सैनिकों को कड़ी सजा दी एवं टुसूमणी को ससम्मान वापस घर भेजा दिया. तत्कालीन रूढ़िवादी समाज ने उसके पवित्रता पर प्रश्न उठाते हुए अपनाने से इंकार कर दिया. ऐसे में जलसमाधि लेकर अपनी जान दे दी थी. इस दिन मकर संक्रांति थी. तभी से कुड़मी समाज अपनी बेटी के बलिदान के याद में टुसू पर्व मनाते हैं.

एक अन्य जानकारी के अनुसार , टुसू एक गरीब कुड़मी परिवार के घर जन्मीं अत्यंत खूबसूरत कन्या थीं. हर जगह उसकी खूबसूरती की चर्चा होने लगी. तत्कालीन एक क्रूर राजा तक यह बात पहुंची. राजा उस खूबसूरत कन्या को पाने के लोभ में षड़यंत्र रचना शुरू कर दिया. उनदिनों राज्य में अकाल पड़ने पर किसान लगान देने की स्थिति में नहीं थे. वहीं, राजा ने लगान दोगुना कर दिया व जबरन वसूली का आदेश सैनिकों को दे दिया. ऐसे में किसान व सैनिकों के बीच युद्ध छिड़ गया. काफी संख्या में किसान मारे गये. इस बीच टुसू सैनिकों के पकड़ में आने ही वाली थी कि उसने जलसमाधि लेकर शहीद हो गयी. तभी से टुसू समाज के लिए एक मिसाल बन गयी.

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Posted By : Samir Ranjan.

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