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मालदीव : मंत्रियों का आचरण अमर्यादित

मुइजू अनेक बयानों में यह कह चुके हैं कि भारत ने कई क्षेत्रों में मालदीव को सहयोग दिया है और वे भारत से अच्छे संबंध चाहते हैं, लेकिन अगर उनके मंत्री और उनकी पार्टी के नेता भारत या भारत के प्रधानमंत्री के बारे में अभद्र भाषा का इस्तेमाल करेंगे, तो स्वाभाविक है कि संबंधों में दरार आयेगी.

मालदीव सरकार के तीन उप मंत्रियों ने सोशल मीडिया में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को लेकर जो अपमानजनक टिप्पणी की है, वह हर प्रकार से कूटनीतिक मर्यादाओं के विरुद्ध है. इन बयानों से उनकी संकुचित सोच का पता चलता है. कुछ दिन पहले सत्ता में आये मालदीव के राष्ट्रपति मोहम्मद मुइजू ने उन मंत्रियों को निलंबित कर एक सकारात्मक संदेश देने का प्रयास किया है. खबरों में बताया जा रहा है कि भारतीय विदेश मंत्रालय ने सोमवार को मालदीव के उच्चायुक्त को बुलाया था. माना जा रहा है कि मंत्रालय ने इन अभद्र बयानों पर अपनी नाराजगी व्यक्त करने के लिए उनको बुलाया था. मुइजू का पूरा चुनाव अभियान ‘इंडिया आउट’ के नारे पर चला था और प्रचार के दौरान भारत विरोधी माहौल बनाने का पूरा प्रयास हुआ था. मुझे लगता है कि उसी मानसिकता के तहत उन कनिष्ठ मंत्रियों ने ऐसी आपत्तिजनक बातें की हैं. सत्ता में आने के तुरंत बाद मुइजू ने वहां स्थापित लगभग 75 भारतीय सैनिकों की एक टुकड़ी को हटाने की मांग की थी. उल्लेखनीय है कि ये सैनिक मालदीव की स्थिरता के लिए ही तैनात हैं. अस्सी के दशक में वहां हुए तख्तापलट को भारत ने ही नाकाम किया था.

देशों के बीच राजनीतिक और कूटनीतिक मतभेद होते हैं. इसलिए भारत और मालदीव का वर्तमान प्रकरण अंतरराष्ट्रीय राजनीति में कोई अपवाद नहीं है. दुबई में हुए जलवायु सम्मेलन के दौरान मुइजू ने प्रधानमंत्री मोदी से भेंट भी की थी. वे अनेक बयानों में यह कह चुके हैं कि भारत ने कई क्षेत्रों में मालदीव को सहयोग दिया है और वे भारत से अच्छे संबंध बनाये रखना चाहते हैं, लेकिन अगर उनके मंत्री और उनकी पार्टी के नेता भारत या भारत के प्रधानमंत्री के बारे में अभद्र भाषा का इस्तेमाल करेंगे, तो स्वाभाविक है कि संबंधों में दरार आयेगी और भारतीय लोग अपनी नाराजगी जतायेंगे. पड़ोसी देशों के साथ मित्रता और सहकार भारत की विदेश नीति का महत्वपूर्ण हिस्सा है, जिसे ‘नेबरहुड फर्स्ट’ की संज्ञा दी जाती है. मालदीव के साथ भारत के सहयोग की लंबी सूची है. पर्यटन मालदीव की अर्थव्यवस्था का आधार है, जिसका लगभग 25 प्रतिशत हिस्सा पर्यटन से आता है. वहां एक-तिहाई से अधिक रोजगार इसी क्षेत्र में है. यदि पर्यटन से जुड़ी अन्य गतिविधियों को जोड़ लें, तो प्रत्यक्ष और परोक्ष रूप से लगभग 70 प्रतिशत लोगों को रोजगार इसी से मिलता है. पिछले साल के आंकड़ों को देखें, तो दो लाख से अधिक भारतीय पर्यटक मालदीव गये थे. पर्यटकों में सबसे बड़ी संख्या भारतीयों की रही है. यदि इसमें बड़ी कमी आती है, तो निश्चित रूप से मालदीव की अर्थव्यवस्था प्रभावित होगी. भारत हवाई अड्डों के विकास, पानी व नाली की सुविधा आदि से जुड़े अनेक परियोजनाओं को सहयोग मुहैया करा रहा है. वर्ष 1974 से ही भारतीय स्टेट बैंक विभिन्न क्षेत्रों, विशेषकर खेती, मत्स्य पालन आदि, में वित्त पोषण करता आ रहा है. दोनों देशों के बीच व्यापार भी लगातार बढ़ता रहा है. वर्ष 2022 में लगभग 502 मिलियन डॉलर का आयात-निर्यात हुआ था. इसमें अधिकांश भारत का निर्यात है. इसका अर्थ यह है कि भारत जो मालदीव से कमाता है, उसका बड़ा हिस्सा वहीं निवेश या खर्च करता है.

मालदीव में भारत की सकारात्मक साख है. अमर्यादित बयान देने वाले मंत्रियों को तुरंत निलंबित करना यह इंगित करता है कि मौजूदा सरकार भारत के महत्व को तथा ऐसे गैर-जिम्मेदाराना बर्ताव के असर को समझती है. वहां के पूर्व राष्ट्रपति, पूर्व उपराष्ट्रपति और कई सांसदों ने मुइजू सरकार के उन तीन मंत्रियों की घोर निंदा की है तथा यह याद दिलाया है कि आज मालदीव जिस स्थिति में है, उसमें भारत का प्रमुख योगदान है. मंत्रियों के बर्ताव पर नाराजगी जताने वाले भारत के फिल्म स्टारों की वहां कुछ लोगों द्वारा की जा रही आलोचना पर भी उनको बताया गया है कि मालदीव में पर्यटन को बढ़ावा देने में बॉलीवुड की बड़ी भूमिका रही है. सार्वजनिक रूप से दिये जा रहे ऐसे बयानों से मुइजू सरकार और समर्थकों पर दबाव बढ़ेगा तथा मालदीव की आम जनता में एक अच्छा संदेश जायेगा, पर यह भी कहा जाना चाहिए कि ऐसी स्थिति आने ही नहीं दी जानी चाहिए थी. उम्मीद की जानी चाहिए कि मुइजू आगे से मंत्रियों के चयन में अतिरिक्त सावधानी बरतेंगे. भारत-मालदीव संबंधों का आधार बहुत मजबूत है, लेकिन आगे इसकी दशा और दिशा क्या होगी, यह पूरी तरह वहां की सरकार के व्यवहार पर निर्भर करेगा. वे आज भी कोई सहयोग मांगेंगे, तो भारत पीछे नहीं हटेगा. भारत ने श्रीलंका और नेपाल को भी बड़ी मदद की है, लेकिन हालिया प्रकरण से जो नकारात्मक माहौल बना है, उसे मालदीव सरकार अपने सकारात्मक आचरण से ही बेहतर बना सकती है. यह सही है कि मुइजू सरकार का झुकाव चीन की ओर अधिक है. राष्ट्रपति मुइजू सोमवार से चीन की यात्रा पर हैं. निश्चित रूप से दोनों देशों के बीच सहयोग को लेकर समझौते होंगे, पर भारत को इससे कोई परेशानी नहीं है. यदि मुइजू भारत के साथ पहले जैसे संबंध रखने और परस्पर सहकार बढ़ाने के अपने बयानों पर टिके रहते हैं, तो भारत भी अपना हाथ बढ़ायेगा. वैसी स्थिति में दोनों देशों के बीच कोई समस्या नहीं आयेगी, ऐसा मेरा मानना है. पर अगर उनका रुख नकारात्मक रहता है और वे भारत से बिगाड़ करना चाहते हैं, तो उनकी मर्जी.

भारत की ‘नेबरहुड फर्स्ट’ नीति में मालदीव का शीर्ष स्थान रहा है. जब उसे जरूरत हुई, भारत ने आर्थिक, वित्तीय, तकनीकी और सामरिक मदद उपलब्ध करायी है. आज अगर राष्ट्रपति मुइजू सहयोग के लिए अगर चीन या अन्य किसी देश की ओर देख रहे हैं, तो भारत उनकी इस सोच का भी सम्मान करता है. भारत के किसी भी जिम्मेदार अधिकारी या कूटनीतिक ने इस पर कभी कोई आपत्ति नहीं जतायी है. लगभग 350 वर्ग मील में फैले मालदीव में 1190 द्वीप हैं. वहां विभिन्न क्षेत्रों में विकास की बहुत संभावनाएं हैं. उन संभावनाओं को साकार करने में भारत उल्लेखनीय भूमिका निभा सकता है, जैसे अभी तक योगदान करता आ रहा है. आशा है कि मुइजू समूची स्थिति पर गंभीरता से विचार करेंगे और अपनी सरकार और पार्टी में ऐसे तत्वों को नियंत्रण में रखेंगे, जो मर्यादित आचरण करना नहीं जानते. हिंद महासागर एक महत्वपूर्ण व्यापारिक मार्ग है और इस पर आवागमन लगातार बढ़ता जा रहा है. इसका लाभ भी मालदीव उठा सकता है, अगर वह भारत के साथ अच्छे संबंध रखता है.

(ये लेखक के निजी विचार हैं.)

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