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शहादत दिवस पर विशेष : बैंक ऑफ इंडिया हीरापुर में आतंकवादियों का मुकाबला करते शहीद हुए थे धनबाद के दो सपूत

धनबाद के दो वीर सपूतों को नमन करने का दिन है. 03 जनवरी 1991 को पंजाब के आतंकवादियों का एक गिरोह हीरापुर में बैंक में डाका डाल रहा था. इन दो वीरों ने अपना बलिदान देकर सरकारी खजाने की रक्षा की थी.

Dhanbad News: वीरता के लिए सर्वोच्च पदक ‘अशोक-चक्र’ से सम्मानित शहीद रणधीर वर्मा के मामले में बीते साल दो विपरीत घटनाएं हुईं. एक तरफ भारत सरकार के गृह मंत्रालय के फैसले के आलोक में शहीद रणधीर वर्मा को हैदराबाद स्थित सरदार वल्लभभाई पटेल राष्ट्रीय पुलिस अकादमी (एसवीपीएनपीए) के शहीदों वाली गैलरी में स्थान मिला. वहीं दूसरी तरफ शहीद की कर्मभूमि धनबाद स्थित शहीद रणधीर वर्मा स्टेडियम से शहीद की नाम पट्टिका हटा दी गई.

रणधीर वर्मा स्टेडियम धनबाद नगर निगम के अधीन है. कहा गया कि जीर्णोद्धार कार्य के कारण नाम पट्टिका हटवाई गई है. पर जीर्णोद्धार-कार्य पूरा होने के साल भर बाद भी निगम के अधिकारियों को नाम पट्टिका लगाने की फुर्सत नहीं मिली है. अलबत्ता स्टेडियम के एक छोटे से भाग में निर्मित पार्क की पट्टिका पर जरूर रणधीर वर्मा पार्क लिखा हुआ है. पथ निर्माण विभाग की नजर में तो रणधीर वर्मा स्टेडियम अब भी गोल्फ ग्राउंड ही है.

धनबाद नगर निगम ने चार साल पहले तय किया था कि शहर के प्रमुख चौराहों पर महापुरुषों की प्रतिमाएं लगवाई जाएंगी. इसके लिए वास्तुविद् की पहचान भी कर ली गई थी. शहीद रणधीर वर्मा के शहादत दिवस के मौके पर आयोजित श्रद्धांजलि सभा में तत्कालीन मेयर ने घोषणा की थी कि रणधीर वर्मा चौक स्थित प्रतिमा स्थल का जीर्णोद्धार किया जाएगा. यदि शहीद की पत्नी चाहेंगी तो नई प्रतिमा भी लगवाई जाएगी. रणधीर वर्मा मेमोरिय़ल सोसाइटी ने अपनी तरफ से योग्य वास्तुविद् से जीर्णोद्धार की रूपरेखा तैयार करवा कर उसे धनबाद नगर निगम को सौंप दिया था. पर इस कार्य-योजना को ठंडे बस्ते में डाल दिया गया. शहीद को अपमानित करने वाली एक और घटना हुई. शहीद रणधीर वर्मा की याद में धनबाद स्थित राजेंद्र सरोवर के तट पर जिला परिषद के भवन चलाए जा रहे शिक्षण संस्थान को गलत तरीके से बंद करा दिया गया.

खैर, सच है कि प्रेम, करुणा और सेवा ही शाश्वत स्मारक बनता है. इसलिए जो बड़ी लकीर नहीं खींच सकते, वे चाहें भी तो जनता के मानस पटल पर रणधीर वर्मा के प्रेम, करुणा और सेवा के कारण जो शाश्वत स्मारक बना हुआ है, उसे मिटा नहीं पाएंगे. तभी शहादत के 32 वर्षों बाद भी जन-जन के दिल में रणधीर वर्मा का स्थान बना हुआ हैं. उनकी शहादत के बाद साहित्यसेवी और शिक्षाविद् रवींद्र करूण ने एक कविता लिखी थी – धीर वीर रणधीर तुम्हारे यश की गाथा. त्याग तपस्या कर्मठता पर झुकता माथा. इस कविता से रणधीर वर्मा के व्यक्तित्व के सभी आयामों का पता चलता है. वे कर्मयोगी थे. उनके जीवन पर श्रीमद्भगवतगीता का व्यापक प्रभाव स्पष्ट दिखता है. तभी वे महज 39 साल के जीनव-काल में प्रसिद्ध शायर रघुपति सहाय ‘फ़िराक़’ उर्फ फिराक गोरखपुरी की इन पंक्तियों को चरितार्थ कर पाए – ‘ये माना ज़िन्दगी है चार दिन की, बहुत होते हैं यारो चार दिन भी.’

रणधीर वर्मा ने बैंक लूट की जिस घटना में वीरगति पाई थी, वह कोई सामान्य बैंक डकैती की घटना नहीं थी. आज “टेरर फंडिंग” शब्द चलन में है. लेकिन 3 जनवरी 1991 को धनबाद में बैंक ऑफ इंडिया की हीरापुर शाखा में धन की लूट की कोशिशें आतंकवाद की जड़ों में खाद-पानी देने के लिए ही तो थी. पंजाब में सक्रिय रहे खालिस्तानी आतंकवादी दो दलों में बंटकर अविभाजित बिहार और पश्चिम बंगाल में वित्तीय संस्थानों में लूट को अंजाम देने निकले थे. उनमें से ही एक दल का जांबाज पुलिस अधीक्षक रणधीर वर्मा से सामना हुआ और मारे गए. रणधीर वर्मा भी शहीद हो गए थे. अगर यह इलाका टेरर फंडिंग का स्रोत न बना तो इसकी वजह रणधीर वर्मा की शहादत ही थी.

महापुरुषों का जीवन देखें तो कहना होगा कि उन्हें ज्ञान-बल से ज्यादा चरित्र-बल के कारण ही याद किया जाता है. शहीद रणधीर वर्मा का चरित्र भी निष्कलंक था. उनका जीवन पुलिस ही नहीं, बल्कि युवाओं को भी प्रेरित करने वाला है. स्कूली पाठ्यक्रम में इस अमर शहीद के जीवन-मूल्यों को स्थान मिले तो बड़ी बात होगी.

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जनता के दिलों में अमर रहेंगे श्यामल चक्रवर्ती

आज धनबाद के दो वीर सपूतों को नमन करने का दिन है. 03 जनवरी 1991को पंजाब के आतंकवादियों का एक गिरोह हीरापुर में बैंक में डाका डाल रहा था. इन दो वीरों ने अपना बलिदान देकर सरकारी खजाने की रक्षा की थी. इन दो वीरों में एक थे धनबाद के तत्कालीन एसपी रणधीर प्रसाद वर्मा और दूसरे आइएसएम के कर्मचारी श्यामल चक्रवर्ती. पुलिस कप्तान के साथ साझा शहादत देकर श्यामल चक्रवर्ती ने बखूबी देश के एक सच्चा नागरिक होने का अपना कर्तव्य निभाया.

रणधीर प्रसाद वर्मा से किसी भी मायने में श्यामल चक्रवर्ती की शहादत छोटी नहीं थी. यह बताना जरूरी है कि श्यामल चक्रवर्ती कोई आतंकवादियों की क्रास फायरिंग में नहीं मारे गये थे, उन्होंने इस जघन्य घटना का पुरजोर विरोध किया था. निहत्थे आतंकवादियों से भिड़ गए थे. उनके आक्रामक विरोध से घबराकर आतंकवादियों ने सामने से उनको गोली मारी थी. आम लोगो का मनोबल तभी मजबूत होगा जब सरकार उन्हें भी उचित सम्मान देगी. लेकिन आज तक श्यामल चक्रवर्ती को कोई भी सरकारी सम्मान नही मिला. सरकार श्यामल चक्रवर्ती को भुला सकती है, पर आम जनता के दिलों में वह हमेशा अमर रहेंगे. जनता के लिए शहीद श्यामल चक्रवर्ती एक प्रेरणास्रोत हैं. हमेशा के लिए.

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