समर्थकों में रॉबिनहुड और विरोधियों के बीच भय व आतंक के पर्याय बाहुबली शहाबुद्दीन का निधन कोरोना संक्रमण के चलते हो गया. जेल से राजनीतिक पारी खेलने वाले बाहुबली शहाबुद्दीन का अंत भी सलाखों के बीच ही हुआ. शहाबुद्दीन सूबे की राजनीति का एक ऐसा चेहरा थे, जिसमें अनंत चेहरे समाये हुए थे. समर्थकों के बीच साहेब के नाम से प्रसिद्ध शहाबुद्दीन विकास पुरुष व गरीबों के मशीहा के नाम से जाने जाते थे.
वहीं विरोधियों की नजर में भय, आतंक व दहशतगर्दी पैदा करने वाले के रूप में पहचान थी. हुसैनगंज के प्रतापपुर गांव से शुरू हुई आतंक और खौफ के साथ राजनीतिक पकड़ ने शहाबुद्दीन को इतना बड़ा बना दिया कि जेल में रहते हुए विधानसभा का चुनाव जीते और देखते-देखते सीवान के सांसद भी बन गये.
मौलाना मजहरुल हक व देश के प्रथम राष्ट्रपति राजेंद्र प्रसाद की धरती पर शहाबुद्दीन जैसा बाहुबली पैदा होना आसान नहीं था. वह दौर था, जब बीजेपी और कम्युनिस्ट पार्टी के साथ संघर्ष का सिलसिला शुरू हुआ. शहाबुद्दीन उन दिनों खून खराबे के लिए प्रचलित हो रहे थे.
1986 का साल था, जब पहली बार शहाबुद्दीन पर हुसैनगंज थाने में एफआइआर दर्ज की गयी उस समय शहाबुद्दीन की उम्र मात्र 19 साल थी. उसके बाद शहाबुद्दीन ने अपराध के दुनिया में वो पहचान बनायी, जिससे सीवान में उनके नाम की दहशत फैल गयी. चोरी, डकैती, हत्या, अपहरण, रंगदारी, दंगा जैसे एक दर्जन से ज्यादा मामले दर्ज होते चले गये.
निर्दलीय विधायक बनकर जनता दल व राजद के सहारे सियासत के रास्ते पर आगे बढ़ने वाले मोहम्मद शहाबुद्दीन की पहचान बिहार के बाहुबली नेताओं के रूप में होती थी. हत्या, लूट, रंगदारी, अपहरण समेत तमाम संगीन अपराधों में शामिल होने का आरोप लगता रहा. वहीं कई आपराधिक मामलों में शहाबुद्दीन को कोर्ट से सजा भी मिल चुकी है.
बताते हैं कि 15 मार्च 2001 में ही पुलिस जब राजद के एक नेता के खिलाफ वारंट पर गिरफ्तारी करने दूसरे दिन दारोगा राय कॉलेज में पहुंची, तो शहाबुद्दीन ने गिरफ्तार करने आये अधिकारी संजीव कुमार को ही थप्पड़ मार दिया था. उनके सहयोगियों ने पुलिस वालों की जमकर पिटाई कर दी थी.
इसके बाद बिहार पुलिस के सामने यह चुनौती बन गया. पुलिस पर हाथ उठाने से आम लोगों में दहशत का माहौल बन गया. निरंकुश होकर वह एक से बढ़कर एक आपराधिक घटनाओं को अंजाम देने लगे. कहा जाता है कि शहाबुद्दीन का एक समय ऐसा भी था, जब जेल में बुधवार को दरबार लगता था.
शहाबुदीन की राजनीति अपराध की बुनियाद पर टिकी हुई थी. एक दौर था कि बिना उनकी अनुमति के विरोधी पार्टी का झंडा व पोस्टर नहीं लगता था. उनके विरोध में बोलने वालों को मौत नसीब होती थी. अपराध की दुनिया हो या राजनीतिक दमखम, दोनों ही जगहों पर मो. शहाबुद्दीन के आगे अच्छे-अच्छे पानी भरते नजर आते हैं. सीवान ही नहीं, पूरे बिहार में इस शख्स की कभी तूती बोलती थी.
Posted By: Utpal Kant