भारत की आर्थिक वृद्धि की अपेक्षाकृत तीव्र गति को देखते हुए यह प्रश्न उठता है कि भारत कब एक विकसित राष्ट्र बनेगा. वर्ष 2002 में तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने घोषणा की थी कि भारत 2020 तक एक विकसित राष्ट्र बन जायेगा. राष्ट्रपति एपीजे अब्दुल कलाम ने भी अनेक भाषणों में यही बात कही थी. मार्च 2003 में उन्होंने कहा था कि हम किसी धर्म या उन्मादी व्यक्ति को देश को खतरे में डालने की अनुमति नहीं दे सकते हैं. उनका कहना था कि 2020 तक विकसित भारत बनाने का उनका लक्ष्य कृषि, शिक्षा, स्वास्थ्यसेवा, इंफ्रास्ट्रक्चर और सूचना तकनीक जैसे क्षेत्रों से जुड़ी विस्तृत कार्ययोजना पर आधारित है. वर्ष 1998 में राष्ट्रपति कलाम ने अपने सहयोगी और वैज्ञानिक वाइएस राजन के साथ लिखी किताब ‘इंडिया 2020’ में भी भारत के विकसित राष्ट्र बनने की अपनी दृष्टि का विवरण दिया था. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 2022 में स्वतंत्रता दिवस पर अपने संबोधन में कहा था कि हमें 2047 तक भारत को विकसित राष्ट्र बनाने का संकल्प लेना चाहिए, जब हमारी स्वतंत्रता के सौ वर्ष पूरे होंगे.
हमें इस प्रश्न के साथ कि क्या 2047 तक हम विकसित राष्ट्र बन जायेंगे, इस पर भी विचार करना चाहिए कि इस अवधारणा की हमारी परिभाषा क्या है. एक नारे और एक बड़ी दृष्टि के रूप में लोगों की आकांक्षा को आकर्षित कर पाना आसान है. बातचीत में बेहद सहजता से इस अवधारणा का उल्लेख किया जाता है. विश्व बैंक ‘विकसित’ या ‘विकासशील’ जैसे शब्दों का उपयोग लगभग अपनी स्थापना के समय से ही करता आ रहा है. अधिकतर विश्लेषक और अर्थशास्त्री, विशेषकर विदेशी बैंकों के लिए काम करने वाले, ‘विकसित देश’ और ‘उभरती बाजार अर्थव्यवस्थाएं’ जैसे शब्द खूब इस्तेमाल करते हैं. इस तरह, लगातार उपयोग से इन धारणाओं को स्वीकार्यता मिल गयी है.
एक सामान्य परिभाषा, जिसे विश्व बैंक भी इस्तेमाल करता है, डॉलर में प्रति व्यक्ति आय के निर्धारण से संबद्ध है. भारत अभी दुनिया की पांचवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है और एक-दो साल में यह जर्मनी को पीछे छोड़ते हुए चौथे स्थान पर पहुंच जायेगा, लेकिन प्रति व्यक्ति आय के हिसाब से अब भी यह 130वें स्थान से नीचे है. भारत में प्रति व्यक्ति आय लगभग 22 सौ डॉलर है, जबकि वैश्विक औसत 12 हजार डॉलर से ऊपर है. पंद्रह सबसे धनी और विकसित देशों का औसत 42,500 डॉलर है. यूरो क्षेत्र में भी लगभग यही औसत है. उत्तरी अमेरिका में प्रति व्यक्ति आय 68 हजार डॉलर है. ये विश्व बैंक से उपलब्ध ताजा आंकड़े हैं. दक्षिण एशिया का औसत भारत के बराबर ही है, क्योंकि यह बड़ा देश है. उल्लेखनीय है कि आय के मामले में बांग्लादेश भारत से आगे है. यदि क्रय शक्ति समता (पर्चेजिंग पॉवर पैरिटी) के आधार पर आय को देखें, तो ये आंकड़े भिन्न दिखने लगते हैं. इस आधार पर घरेलू मुद्रा, जैसे भारत के मामले में रुपये, को देखें, तो उसकी क्रय शक्ति अधिक होती है, जो विनिमय दर में नहीं दिखती. कहने का अर्थ यह है कि भारत में एक डॉलर में आप अमेरिका की तुलना में बहुत अधिक खरीद सकते हैं. इस तरह भारत में 22 सौ डॉलर 7000 डॉलर के लगभग बराबर है, पर इस मानक पर भी भारत दुनिया में 128वें तथा एशिया में 31वें स्थान पर है.
इस प्रकार, अगले 25 वर्षों में 30 हजार डॉलर से अधिक की प्रति व्यक्ति आय के साथ विकसित राष्ट्र की श्रेणी तक पहुंचना बहुत मुश्किल लक्ष्य है, पर यह प्रश्न बना रहेगा. वर्ष 2008 में एक गोष्ठी में अर्थशास्त्री अमर्त्य सेन से पूछा गया कि उनके विचार से भारत कब विकसित राष्ट्र बनेगा. उस समय वृद्धि दर नौ प्रतिशत थी. इस प्रश्न का उत्तर उन्होंने अपने खास अंदाज में दिया. नोबेल पुरस्कार से सम्मानित अर्थशास्त्री ने कहा कि उन्हें ऐसे सवाल के जवाब देने में कोई दिलचस्पी नहीं है. इस संबंध में सबसे महत्वपूर्ण बिंदु यह है कि यदि हम तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्था हैं और मान लीजिए कि हमारी प्रति व्यक्ति आय 10 हजार डॉलर से अधिक हो भी जाती है, तो क्या सभी भारतीयों के लिए ‘विकसित राष्ट्र’ का अनुभव एक समान होगा! अंततः प्रति व्यक्ति आय एक राष्ट्रीय औसत ही है और इससे यह पता नहीं चलता कि समाज के सभी वर्गों में उस आय का वितरण किस प्रकार होता है. अभी भारत दुनिया के सबसे तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्थाओं में है. फिर भी हम 81 करोड़ लोगों को मुफ्त राशन मुहैया करा रहे हैं. यह उनकी खाद्य सुरक्षा की चिंता के कारण है. मुफ्त राशन भले ही नगद नहीं है, पर यह उनकी आय में योगदान करता है.
तीन आधारों पर, जिन्हें मापा जा सकता है, कहा जा सकता है कि भारत और उसके लोग विकसित श्रेणी में पहुंच गये या नहीं. पहला, घर में नल के जरिये स्वच्छ पेयजल की उपलब्धता. राष्ट्रीय जल जीवन मिशन इस दिशा में कार्यरत है. लगभग 19 करोड़ ग्रामीण परिवारों में से तीन करोड़ के आसपास को नलके की सुविधा मिल चुकी है, पर बात केवल नल की ही नहीं, स्वच्छ जल की भी है. इससे दूषित जल से होने वाली बीमारियों और आर्सेनिक जहर से बचाव हो सकता है. दूसरा आधार स्थानीय सरकारी स्कूल की गुणवत्ता से संबंधित है. विकसित राष्ट्रों में माता-पिता अपने बच्चों के लिए खुशी-खुशी नजदीकी स्कूल को चुनते हैं, लेकिन हमारे यहां झुग्गियों में रहने वाले भी बच्चों को निजी स्कूल में भेजना पसंद करते हैं और ट्यूशन पर बड़ा खर्च करते हैं. नगरपालिका या गांव के स्कूल में पढ़ाने वाले शिक्षक भी अपने बच्चों को निजी स्कूल में भेजते हैं. विकसित राष्ट्र होने का तीसरा प्रमुख पैमाना है सार्वजनिक यातायात का इस्तेमाल. कोई राष्ट्र इसलिए विकसित नहीं होता कि वहां के गरीब भी कार पर चढ़ें, बल्कि इससे निर्धारित होता है कि धनी लोग भी बस, ट्रेन और मेट्रो जैसे सार्वजनिक यातायात के साधनों का इस्तेमाल करें.
ऐसा तभी हो सकेगा, जब सेवाओं की गुणवत्ता बहुत अच्छी हो, वे नियमित हों, भरोसेमंद हों तथा सस्ती हों. विकसित देशों के कुछ बड़े शहरों में सार्वजनिक बसों में किराया नहीं लिया जाता है. और, वहां यात्रियों की संख्या में भी बढ़ोतरी हुई है. इस प्रकार, इन तीन कसौटियों के माध्यम से हम विकसित राष्ट्र बनने की दिशा में अपनी प्रगति का आकलन कर सकते हैं. अन्य पैमाने, जैसे वायु गुणवत्ता, कामगार उत्पादकता, स्वास्थ्य की स्थिति, बुजुर्गों की देखभाल, वन क्षेत्र, उत्सर्जन में कमी, जैव-विविधता आदि भी हैं, पर तीन मुख्य पैमाने पर्याप्त हैं.
(ये लेखक के निजी विचार हैं.)