Corona Effcet : कोरोना वायरस की मार से मेडिकल कारोबार चरमराया, मेडिकल टूरिज्म को लगा करारा झटका
कोलकाता पड़ोसी देश बांग्लादेश के लिए मेडिकल हब है. बांग्लादेश में जिस बीमारी का खर्च डाक्टरों ने 10 लाख रुपये बताया था, उसी बीमारी का इलाज कोलकाता में सिर्फ चार लाख में संभव है, इसलिए वहां से भी अधिकांश लोग इलाज के लिए कोलकाता आते हैं.
कोलकाता : कोलकाता पड़ोसी देश बांग्लादेश के लिए मेडिकल हब है. बांग्लादेश में जिस बीमारी का खर्च डाक्टरों ने 10 लाख रुपये बताया था, उसी बीमारी का इलाज कोलकाता में सिर्फ चार लाख में संभव है, इसलिए वहां से भी अधिकांश लोग इलाज के लिए कोलकाता आते हैं. लेकिन कोरोना वायरस की मार से मेडिकल कारोबार बुरी तरह प्रभावित हो रहा है. बांग्लादेश से कई लोग इलाज के लिए यहां पहुंच भी आये थे, लेकिन कोरोना की वजह से वीजा निलंबित होने के कारण उन्हें मजबूरन वापस जाना पड़ रहा है. ढाका के रहनेवाले अमीनुद्दीन अपनी मां के इलाज के सिलसिले में पांच मार्च को कोलकाता आये थे. लेकिन सरकार की ओर से वीजा स्थगित करने और कोलकाता-ढाका के बीच बस, ट्रेन सेवाएं रोकने के फैसले की वजह से इलाज और खरीदारी के लिए आनेवाले हजारों बांग्लादेशियों की तरह वह भी अपने वतन लौट चुके हैं.
अमीनुद्दीन भी उन हजारों लोगों में से एक हैं, जो हर महीने सीमा पार करके कम खर्च में बेहतर इलाज के लिए कोलकाता पहुंचते हैं. सीमा पार से आनेवाले ऐसे लोगों ने कोलकाता को मेडिकल टूरिजम यानी चिकित्सा पर्यटन का प्रमुख केंद्र बना दिया है. बांग्लादेश से इलाज और साथ ही खरीदारी करनेवाले लोग हर महीने काफी पैसे खर्च करते हैं. लेकिन कोरोना की वजह से सीमा पार से लगी पाबंदी इस उद्योग पर भारी पड़ रही है. इसका असर अस्पतालों, होटलों/गेस्ट हाउसों और न्यू मार्केट जैसे मध्य कोलकाता के मशहूर बाजारों पर साफ नजर आने लगा है.
बांग्लादेश से रोजाना सैंकड़ों मरीज इलाज के लिए कोलकाता पहुंचते हैं. लेकिन इस सप्ताह सीमा सील होने और ट्रेनों, बसों, उड़ानों के बंद होने से बांग्लादेश से लोगों का आना अचानक थम गया है. नतीजतन जहां तमाम निजी अस्पतालों के आउटडोर में सन्नाटा है. वहीं, होटल और गेस्ट हाउस भी खाली पड़े हैं. बांग्लादेश से पेट्रापोल सीमा या उड़ानों के जरिये यहां पहुंचनेवाले लोग इलाज और खरीदारी पर भारी रकम खर्च करते हैं. बताया जाता है कि कोलकाता के एएमआरआइ अस्पताल में हर महीने 1200 बांग्लादेशी मरीज आते थे.
वहीं, आरएन टैगोर इंटरनेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ कार्डियक साइंसेज में ओपीडी में मरीजो की तादाद 30 फीसदी घटी है. अस्पताल के क्षेत्रीय निदेशक आर वेंकटेश कहते हैं कि हमारे अस्पताल में रोजाना लगभग दो सौ से ज्यादा बांग्लादेशी मरीज आते थे. वहीं, पीयरलेस अस्पताल में रोजाना सौ बांग्लादेशी मरीज पहुंचते थे.
अस्पताल के एक जनसंपर्क अधिकारी सोमेन गुहा बताते हैं कि कोरोना के चलते लगी पाबंदियों के बाद अब सीमा पार से मरीज नहीं आ रहे हैं. महानगर में घोष दस्तीदार इंस्टीट्यूट फॉर फर्टिलिटी रिसर्च नामक आइवीएफ क्लीनिक चलानेवाले डॉ सुदर्शन घोष दस्तीदार बताते हैं कि मेरे क्लीनिक में हर महीने कम से कम 25 दंपती बांझपन के इलाज के लिए आते थे. लेकिन अब उनका आना बंद हो गया है. डॉ दस्तीदार बताते हैं कि इलाज के लिए कोलकाता आनेवाले बांग्लादेशियों की तादाद काफी कम हो गयी है. नये लोग नहीं आ रहे हैं. उन्होंने बताया कि कोलकाता के बड़े निजी अस्पतालों में ओपीडी में पहुंचनेवाले लोगों में औसतन 35 से 40 फीसदी बांग्लादेशी मरीज ही होते हैं.
अस्पतालों को होगा करोड़ों का नुकसान-
महानगर के 16 बड़े निजी अस्पतालों के संगठन एसोसिएशन आफ हॉस्पिटल्स ऑफ इस्टर्न इंडिया (एएचईआइ) के एक प्रवक्ता आंकड़ों के हवाले बताते हैं कि बांग्लादेशी मरीज हर महीने लगभग 300 करोड़ रुपये इलाज पर खर्च करते हैं. यानी सीमा पार से ऐसे मरीजों के नहीं आने की स्थिति में अस्पतालों को इतनी रकम का नुकसान झेलना होगा. मेडिकल टूरिजम के कारोबार से जुड़े सब्यसाची मुखर्जी बताते हैं कि कोलकाता हर हाल में सीमा पार से आनेवाले मरीजों के लिए मुफीद है. बांग्लादेश में बेहतर इलाज की सुविधा नहीं मिल पाती. इसके अलावा वहां इलाज महंगा भी है.