Merry Christmas 2023: क्रिसमस, ईसाई धर्म का महत्वपूर्ण पर्व है, इसे हर वर्ष 25 दिसंबर को मनाया जाता है. रविवार की रात घड़ी की सुई जैसे ही 12 पर पहुंची, प्रतीक स्वरूप बालक प्रभु यीशु अवतरित हुए. सभी ने कैंडल जलाये और प्रार्थना की. एक-दूसरे को मेरी क्रिसमस कह बधाई दी. चर्च में विशेष प्रकार की गोशाला को आकर्षक बनाया गया. कुर्जी चर्च में लगभग आठ हजार मसीही समुदाय देर रात तक जुटे रहे और प्रभु यीशु के सम्मान में धार्मिक गीत गय. देश भर के सभी चर्च आदि में क्रिसमस सेलिब्रेशन हुआ. विश्व को मानवता का संदेश देने वाले प्रभु यीशु के जन्मोत्सव को लेकर ईसाई समुदाय इतना उत्सुक था कि लोग शाम होते ही चर्च में प्रार्थना के लिए पहुंचने लगे थे, इनमें बड़े-बुजुर्ग के अलावा बच्चे और युवा भी शामिल थे.
रविवार की मध्य रात्रि में संसार को प्रेम का संदेश देने वाले प्रभु यीशु के जन्म की घोषणा होते ही सभी चर्च में घंटे बजने लगे और बधाई का दौर शुरू हो गया. चर्च के फादर ने प्रभु यीशु के जन्म की घोषणा की, इसके बाद सभी ने एक-दूसरे को क्रिसमस की बधाइयां दी. देर रात चर्च में मिस्सा बलिदान पूजा और विशेष प्रार्थना सभाएं हुई. चर्च में रात से ही ईसाई समुदाय का पहुंचना शुरू गया था. सभी चर्चों में रंगीन बल्बों और लड़ियों से साज- सज्जा की गयी थी. रात आठ बजे रात से ही ईसाई समुदाय के लोग चर्च में प्रार्थना के लिए जुटने लगे थे. कुर्जी चर्चके बाहर मोमबत्ती और सांता की ड्रेस खरीदने के लिए लोगों की भीड़ जमा थी.
सन 98 से लोग इस पर्व को निरंतर मना रहे हैं. सन 137 में रोमन बिशप ने इस पर्व को मनाने की आधिकारिक रूप से घोषणा की थी. हालांकि तब इसे मनाने का कोई निश्चित दिन नहीं था, इसलिए सन 350 में रोमन पादरी यूलियस ने 25 दिसंबर को क्रिसमस-डे के रूप में घोषित कर दिया गया. एक अन्य मान्यता के अनुसार, प्रारंभ में स्वयं धर्माधिकारी 25 दिसंबर को क्रिसमस को इस रूप में मनाने की मान्यता देने के लिए तैयार नहीं थे. यह वास्तव में रोमन जाति के एक त्योहार का दिन था, जिसमें सूर्य देवता की आराधना की जाती थी. यह माना जाता था कि इसी दिन सूर्य का जन्म हुआ, लेकिन जब ईसाई धर्म का प्रचार-प्रसार हुआ तो ऐसा कहा गया कि यीशु ही सूर्य देवता के अवतार हैं और फिर उनकी पूजा होने लगी. हालांकि इसे मान्यता नहीं मिल पाई थी.
क्रिसमस डे पर क्रिसमस ट्री का बड़ा महत्व है. यह डगलस, बालसम या फिर फर का वृक्ष होता है, जिसे क्रिसमस डे पर अच्छी तरह से सजाया जाता है. प्राचीन काल में मिस्र वासियों, चीनियों और हिबूर लोगों ने सबसे पहले इस परंपरा की शुरुआत की थी. उनका विश्वास था की इन पौधों को घरों में सजाने से घर में नकारात्मक शक्तियां दूर होती हैं. हालांकि आधुनिक क्रिसमस ट्री की शुरुआत जर्मनी में हुई थी.
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क्रिसमस के मौके पर बच्चे सेंटा क्लॉज का इंतज़ार करते हैं. क्योंकि सेंटा बच्चों को गिफ्ट्स देता है. ऐसी मान्यता है कि सेंटा क्लॉज की प्रथा संत निकोलस ने चौथी या पांचवी सदी में शुरू की. वे एशिया माइनर के पादरी थे. वे बच्चों और नाविकों से बेहद प्यार करते थे. वे क्रिसमस और नववर्ष के दिन गरीब-अमीर सभी को प्रसन्न देखना चाहते थे. उनसे जुड़ी हुई कई कथाएँ और कहानियों सुनने को मिलती हैं.