ब्राजील में सत्ता परिवर्तन के संदेश

लैटिन अमेरिका के देशों में संघर्ष विचारधारा को लेकर ही नहीं, बल्कि जीवन मूल्यों को लेकर भी रहा है. चूंकि ये देश उपनिवेशवाद के विरुद्ध मुक्ति की लड़ाई लड़ कर अस्तित्व में आये हैं, इसलिए उनके यहां सामाजिक मुक्ति अब भी संघर्ष का लक्ष्य है.

By डॉ अनुज | December 5, 2022 10:31 AM
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पिछले महीने लैटिन अमेरिका के सबसे बड़े देश ब्राजील में हुए चुनाव में वर्कर्स पार्टी की जीत के साथ लूला डीसिल्वा का राष्ट्रपति बनना तय हो गया है. लूला तीसरी बार राष्ट्रपति बनेंगे. इस जीत को विश्लेषक कई मायनों में अहम मान रहे हैं. साल 2018 के चुनाव में लूला पर भ्रष्टाचार का आरोप लगा कर चुनाव से बाहर कर दिया गया था. उसके बाद जायर बोल्सोनारो के नेतृत्व में लिबरल पार्टी की सरकार बनी थी. अब बोल्सोनारो की हार के बाद लूला के नेतृत्व में वामपंथी सरकार बनेगी. अमेरिकी महाद्वीप (उत्तरी एवं दक्षिणी) के देशों में वामपंथ के उभार का केवल क्षेत्रीय राजनीतिक महत्व नहीं है, बल्कि अंतरराष्ट्रीय महत्व भी है. अमेरिकी महाद्वीप के कई छोटे-बड़े देश पूर्व में यूरोपीय देशों के उपनिवेश रहे हैं. वहां उपनिवेशवाद के विरुद्ध संघर्ष की स्मृतियां तीखी हैं. शीत युद्ध के दौरान विचारधाराओं की लड़ाई में भी उत्तरी एवं दक्षिणी अमेरिकी देशों ने बड़ी भूमिका निभायी थी. महाशक्ति संयुक्त राज्य अमेरिका के ठीक नीचे रहते हुए भी अमेरिकी देशों ने उसके खिलाफ मजबूत मोर्चा खोल रखा था. उस वक्त क्यूबा में फिदेल कास्त्रो वामपंथी धड़े के सशक्त नेता थे. कई बार ये देश आरोप भी लगाते आये हैं कि अमेरिका न केवल अपने साम्राज्यवादी हितों को सुरक्षित करने के लिए इन देशों में राजनीतिक दखल देता है और सरकारों को अस्थिर करता है, बल्कि पूर्व के औपनिवेशिक वर्चस्व वाले यूरोपीय देश भी यहां अपने हित तलाशते हैं. इस संदर्भ में भी लूला की जीत को देखा जा रहा है.

अमेरिकी महाद्वीप के देशों में वामपंथी संघर्ष की अपनी उपलब्धियां भी हैं. क्यूबा में क्रांति के पश्चात फिदेल कास्त्रो के नेतृत्व में किये गये राष्ट्रीयकरण की नीतियों ने जनता के जीवन स्तर को प्राथमिक तौर पर संवर्द्धित एवं संरक्षित किया था. वामपंथी जीवन मूल्यों और नीतियों से वेनेजुएला में शावेज ने बहुत कम समय में मानव विकास सूचकांक को समृद्ध यूरोपीय देशों के समकक्ष ला खड़ा किया था. यद्यपि उनके गुजरने के बाद वेनेजुएला संकटों से घिर गया. उन देशों में संघर्ष विचारधारा को लेकर ही नहीं, बल्कि जीवन मूल्यों को लेकर भी रहा है. चूंकि ये देश उपनिवेशवाद के विरुद्ध मुक्ति की लड़ाई लड़ कर अस्तित्व में आये हैं, इसलिए उनके यहां सामाजिक मुक्ति अब भी संघर्ष का लक्ष्य है. ब्राजील में लूला की जीत के वैचारिक आशय ये भी हैं. वे पहली बार 2003 में राष्ट्रपति बने थे. जनहित में किये गये उनके उपाय बहुत कारगर साबित हुए थे. उन्होंने गरीबी दूर करने के कार्यक्रम चलाये. शिक्षा, चिकित्सा और उचित मजदूरी एवं न्याय जैसी संकल्पनाओं ने उन्हें लोकप्रिय बनाया था. वे श्रमिक वर्गों के प्रति प्रतिबद्धता के लिए जाने जाते हैं. श्रमिक के तौर पर उन्होंने मजदूरों को संगठित करके वर्कर्स पार्टी का गठन किया, जो आगे चल कर देश में एक बड़ा राजनीतिक दल बना. इसी दौरान दुनिया में अमेरिकी नेतृत्व में चली नयी आर्थिक उदारवादी मुहिम का प्रसार ब्राजील में भी हुआ. बोल्सोनारो की दक्षिणपंथी सरकार ने पूंजीवादी आर्थिक नीतियों को लागू किया, जिसका प्रतिकूल असर हुआ. ब्राजील में कोरोना से जो तबाही मची, उसने सरकार की संवेदनहीनता एवं असफलता को उजागर कर दिया.

चुनाव में अमेजन के जंगलों में लगी आग और वनक्षरण अहम मुद्दा था. पर्यावरण कार्यकर्ता इस चुनाव को ‘इलेक्शन फॉर प्लेनेट फ्यूचर’ की तरह देख रहे थे. बोल्सोनारो के शासनकाल में आमेजन के जंगलों में हुए भयावह अतिक्रमण की दुनियाभर में आलोचना हुई. उसके द्वारा लाये गये एक विधेयक पर आरोप था कि यह न केवल जंगलों को उजाड़ने की छूट देता है, बल्कि इसके द्वारा स्थानीय आदिवासी समुदाय के हितों का अतिक्रमण कर जमीन और जंगल कॉर्पोरेट को सौंप दिया जायेगा. विकास के नाम पर पूंजीवादी आर्थिक विस्तार की नीति और जंगलों के अंतहीन दोहन से ब्राजील में पहले से ही असंतोष पनप रहा था. ब्राजील अमेजन के जंगल का लगभग साठ प्रतिशत हिस्सा शेयर करता है. जंगलों के अतिक्रमण से आदिवासी समुदायों में भी तीखा असंतोष था.

जीत के बाद लूला ने फिर से जनहित की बात दुहरायी है. उन्होंने कहा है कि उच्च जीवन स्तर ब्राजील के हर नागरिक का अधिकार है और यह मिलना चाहिए. उन्होंने अमेजन के जंगलों में हुए अतिक्रमण के प्रति सतर्क होते हुए वनक्षरण रोकने पर जोर दिया और कहा है कि स्थानीय आदिवासी समुदाय के हितों को सुरक्षित किया जायेगा. उन्होंने ‘ग्रीन इकोनॉमी’ की बात कही है. ऐसे समय में जब दुनिया से जंगल लगभग गायब होते जा रहे हैं, तब सबसे बड़े जंगलों वाले देश के प्रतिनिधि का यह आह्वान गौरतलब है. यह बात किसी से छुपी नहीं कि पूंजीवादी विकास के मॉडल ने मनुष्य और प्रकृति के संबंध को तहस-नहस कर दिया है. अमेजन जंगल को दुनिया का फेफड़ा कहा जाता है. क्या लूला आने वाले दिनों में कोई ऐसा उदाहरण पेश कर सकेंगे, जिससे दुनिया का फेफड़ा बचा रहे, यह देखा जाना है. लूला को एक तरफ ब्राजील की आंतरिक हालात सुधारने की चुनौती है, तो दूसरी ओर लातिनी अमेरिका के मुक्ति के संघर्ष के विचार को आगे ले जाना है.

(ये लेखक के निजी विचार हैं.)

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