कुंदा: सरकार हर वर्ष पेयजल सुविधा देने के लिए करोड़ों रुपये खर्च करती है, लेकिन कई क्षेत्र ऐसे होते हैं, जहां इसका लाभ ग्रामीणों को नहीं मिल पाता है. आज भी चतरा जिले के कुंदा प्रखंड में कई ऐसे गांव हैं, जहां लोग नदी में चुआं खोदकर, उसमें जमा पानी से अपनी प्यास बुझाने को विवश हैं.
स्थिति यह है कि प्रखंड के छह विद्यालयों में चुआं के पानी से मध्याह्र भोजन बनता है. इनमें यूएमएस सिंदरी, यूपीएस बाचकुम, चितवातरी, खुटबलिया, उल्लवार व हारुल विद्यालय शामिल हैं. चुआं के पानी से मध्याह्न भोजन बनने से बच्चों के बीमार होने की आशंका बनी रहती है.
गांवों में पेयजल की व्यवस्था नहीं है. जलस्तर नीचे चले जाने से चापानल बेकार पड़े हैं. फिलहाल कई गांवों की महिलाएं व बच्चे सुबह होते ही पानी की तलाश में निकल जाते हैं. नदी जाकर वहां चुआं खोद कर पानी इकट्ठा करते हैं, फिर उसे बाल्टी या डिब्बे में लेकर घर आते हैं.
अनुसूचित जनजाति बहुल क्षेत्र सिंदरी, बाचकुम, खुटबलिया, चितवातरी, उल्लवार, हारूल समेत अन्य गांव में पेयजल संकट है. एक हजार की आबादीवाले इन गांवों में ग्रामीणों के पास प्यास बुझाने के लिए पेयजल का कोई साधन नहीं है. जमीन के नीचे 200-300 फीट तक पानी का स्रोत नहीं है. ये गांव ड्राई जोन के रूप में जाने जाते हैं.
21 साल से इस विद्यालय में पदस्थापित हूं, तब से विद्यालय में पानी की समस्या देख रहा हूं. विद्यालय में पानी की समस्या को लेकर कई बार विभाग को लिखा गया है, लेकिन समस्या बरकरार है.
विजय किशोर, प्रधानाध्यापक यूएमएस सिंदरी
शिक्षकों द्वारा पानी की समस्या से संबंधित जानकारी नहीं दी गयी है. जनप्रतिनिधियों से बात कर समाधान किया जायेगा.
मुरली यादव, प्रभारी बीडीओ कुंदा
Posted By: Sameer Oraon