साहिबगंज में करोड़ों वर्ष पुराने जीवाष्म मिले, क्वार्ट्ज खनिज पत्थर पर देवी-देवताओं की चमकती आकृति की आदिवासी कर रहे पूजा
झारखंड के साहिबगंज जिला में तालझारी प्रखंड मुख्यालय से दो किलोमीटर की दूरी पर करोड़ों वर्ष पुराने जीवाष्म मिले हैं. क्वार्ट्ज खनिज पत्थर पर देवी-देवताओं की चमकी आकृति की आदिवासियों ने पूजा-अर्चना शुरू कर दी है.
साहिबगंज/ तालझारी (सूरज कुमार) : झारखंड के साहिबगंज जिला में करोड़ों वर्ष पुराने जीवाष्म मिले हैं. क्वार्ट्ज खनिज पत्थर पर देवी-देवताओं की चमकी आकृति की आदिवासियों ने पूजा-अर्चना शुरू कर दी है. जिस जगह ये चमकीले पत्थर और पहाड़ी पत्ते व अन्य आकृतियों के फॉसिल्स मिले हैं, वह तालझारी प्रखंड मुख्यालय से सिर्फ दो किलोमीटर की दूरी पर स्थित है.
दुधकोल गांव के डुमरी पहाड़ पर गुरुवार को पत्थर में भगवान शिव-पार्वती की आकृति जैसी मूर्ति गांव के एक बच्चे को डुमरी पहाड़ पर मिली. मूर्ति को गांव के समीप ही एक वृक्ष के नीचे रख दिया गया. इसकी जानकारी गांव के लोगों को दी गयी. इसके बाद ग्रामीणों के लिए यह स्थल आस्था का केंद्र बन गया. शनिवार को गांव के गुरु बाबा सहित लगभग 500 से अधिक लोगों ने पूजा-अर्चना की.
लोगों ने बताया की तालझारी प्रखंड के सीमलजोड़ी, हरिजनटोला, झरनाटोला, निमघुट्टू व अन्य गांवों से लोग मूर्ति की पूजा-अर्चना करने आ रहे हैं. गांव के बाबा गुरु राम सोरेन ने बताया कि स्वप्न में ऐसा दृश्य देखने मिला, जिसको लेकर आज उस जगह पर बांस से घेराबंदी करके विधिवत पूजा-अर्चना की गई. जहां मूर्ति मिली है, वहीं एक छोटा गढ्ढा भी है, जिसमें साल भर पानी जमा रहता है.
Also Read: Indian Railways/IRCTC News : रांची से हावड़ा, दिल्ली, जयनगर, पटना और दुमका के लिए खुलने वाली है ट्रेनेंगांव के लोगों ने कहा कि भगवान शिव-पार्वती की मूर्ति निकलना और वहीं समीप में पानी का सोता ईश्वर के वास का सबूत है. लोगों ने बताया की जहां भगवान शिव का स्थल हो, वहां अगल-बगल में झरना, तालाब आदि रहता ही है. जो भी आता है, इसी गड्ढे के पानी से भगवान शिव का जलाभिषेक कर रहे हैं. दुधकोल गांव के दूसरे छोड़ पर झरना से दूध जैसा पानी साल भर निकलता है. इसलिए इस गांव का नाम भी दुधकोल पड़ा था.
बाबा गुरु राम सोरेन, प्रजापति प्रकाश बाबा, मुखिया के पति दुर्गा किस्कू, शिवलाल हांसदा, दीनु मुर्मू, लखन पंडित, कपूरचंद तुरी, चंदन ठाकुर सहित गणमान्य लोगों ने भगवान शिव-पार्वती की मूर्ति को डुमरी पहाड़ पर सोमवार को विधिवत स्थापित करने एवं उस जगह पर मंदिर निर्माण करने को लेकर चर्चा की गयी. चमकीले पत्थर से बनी भगवान शिव-पार्वती की मूर्ति देखने हर दिन सैकड़ों लोग आ रहे हैं.
Also Read: राजमहल की बसाल्ट चट्टानें ग्लोबल वार्मिंग को करती हैं कंट्रोल, आज दुनिया को बतायेंगे आदिवासी वैज्ञानिक प्रेम चंदभू-गर्भ वैज्ञानिक डॉ रणजीत कुमार सिंह का कहना है कि राजमहल की पहाड़ी और यह स्थल आम लोगों के लिए तीर्थ स्थल से कम नहीं है. जो चमकीला पत्थर मिला है, वह खनिज क्वार्ट्ज है. यहां शोध के कई प्राकृतिक प्रयोगशाला मौजूद हैं. इस स्थान पर प्रचुर मात्रा में फॉसिल्स बिखरे हैं. हमें लगता है कि किसी की आस्था पर कोई आघात नहीं होना चाहिए. साथ ही वैज्ञानिक दृष्टिकोण का भी सम्मान होना चाहिए.
रोजगार के खुल सकते हैं द्वारभू-वैज्ञानिकों का कहना है कि शोध के दृष्टिकोण से क्षेत्र एक बहुत बड़ी संपत्ति साबित हो सकता है. क्षेत्र का विकास हो, तो बड़े पैमाने पर रोजगार के अवसर का सृजन हो सकता है. स्वावलंबन, स्वरोजगार व शोध के जरिये राष्ट्रीय एवं अंतरराष्ट्रीय स्तर पर इस क्षेत्र को पहचान दिला सकते हैं. जियो टूरिज्म के दृष्टिकोण से यह क्षेत्र बहुत ही प्रभावशाली बन सकता है.
Posted By : Mithilesh Jha