पश्चिम बंगाल सरकार मछली पालन पर जोर दे रही है. मछली उत्पादन बढ़ाने के लिए मत्स्यपालन विभाग (Fisheries Department) ने नयी तकनीक ईजाद की है, जिसका नाम है- केज कल्चर. अर्थात पिंजरा में मछली पालन. इस तकनीक में पिंजरा बना कर जलाशय में डाल दिया जाता है. मछलियों की अलग-अलग प्रजाति पालने के लिए अलग-अलग पिंजरा बनाया जाता है. यह जानकारी राज्य के मत्स्यपालन मंत्री विप्लव राय चौधरी ने विधानसभा में दी. उन्होंने बताया कि कंसावती डैम में इसी तरीके से मछली पालन किया जा रहा है. क्योंकि इस विशाल डैम में आम तरीके से मछली पालन नहीं किया जा सकता है. कंसावती डैम में कुल 32 पिंजरे लगाये गये हैं. पांच मीटर लंबे और पांच मीटर चौड़े पिंजरे की गहराई कुल चार मीटर हैं. इन पिंजरों में रेहू, कतला और मिरगेल मछली का पालन हो रहा है. प्रत्येक मछली का वजन 800 ग्राम से एक किलो के बीच है. मंत्री ने बताया कि वह दो दिसंबर को डैम जायेंगे और नयी तकनीक से पाली गयी मछलियों की बिक्री करेंगे.
मंत्री ने बताया कि विगत कुछ वर्षों से मत्स्य पालन विभाग द्वारा रेहू, कतला मछलियों का निर्यात किया जा रहा है. राज्य में मत्स्य उत्पादन बढ़ने से मछलियों की आयात में कमी आयी है. वित्त वर्ष 2011-12 में मछलियों के निर्यात से विभाग को कुल 1734 करोड़ विदेशी मुद्रा प्राप्त हुई. इसी तरह 2021-22 में 6183 करोड़, 2023-24 में अब तक 4800 करोड़ विदेशी मुद्रा मिली है.
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मंत्री ने कहा कि कारा विभाग के साथ मिल कर अब जेल में भी मछली पालन किया जायेगा. उन्होंने बताया कि देश में कुल 60 जेल हैं. इनमें से करीब 32 जेल में तालाब हैं. इन तालाबों में भी मछली पालन किया जायेगा. इसके लिए कैदियों को प्रशिक्षण भी दिया जायेगा. इस बाबत जल्द ही कारा विभाग के अधिकारियों के साथ बैठक की जायेगी, जिसमें कारा मंत्री अखिल गिरी भी शामिल होंगे. जेलों में मछलियों की मांग को पूरा करने के लिए यह योजना बनायी गयी है. जेल के जलाशयों में विशेष कर रेहू,कतला प्रजाति की मछलियों का पालन किया जायेगा.