रूपहले पर्दे पर असल जिंदगी के नायकों और उनसे जुड़ी कहानियां को दिखाने में अक्षय कुमार का कोई सानी नहीं है.इस बार वह दिवंगत माइनिंग इंजीनियर जसवंत सिंह गिल की कहानी को पर्दे पर लेकर आए हैं. फिल्म और उनके किरदार पर उर्मिला कोरी से हुई बातचीत के प्रमुख अंश.
मिशन रानीगंज में आपको सबसे ज्यादा अपील क्या किया?
एक चीज जिसने मुझे आकर्षित किया वह सरदार जसवन्त सिंह गिल का किरदार था. वह जानते थे कि खदानों में 70 खनिक फंसे हुए हैं और यह उनके लिए सरासर मौत है. वह उन्हें बचाने के लिए सतह के नीचे जाने का फैसला करता है. मैं ऐसे लोगों से नहीं मिला जो दूसरों के लिए अपनी जान जोखिम में डालने को तैयार हों. वह उन्हें बचाते हैं और सबसे अंत में बाहर आते हैं. कल्पना कीजिए कि आप अपने आप को 48 घंटों के लिए एक अलमारी में बंद कर लें,? यह जानते हुए कि उसकी पत्नी गर्भवती है, वह आदमी खदान में उतर जाता है. इसी बात ने मुझे इस भूमिका के प्रति आकर्षित किया.’
हां एक रियल लाइफ किरदार है,आपकी तैयारी क्या थी?
निर्देशक टीनू देसाई जब इस फिल्म के लिये मेरे पास आये थे, तो वह पहले से ही अपनी तैयारी कर चुके थे, तब जसवंत सिंह गिल जीवित थे और वे उनके साथ बैठते थे और उनसे पूरी जानकरी लेते थे. बहुत सी चीजें मेरे फिल्म में शामिल होने से पहले ही तय हो चुकी थी. मैं सिर्फ अपने निर्देशक के निर्देशों का पालन करता हूं और अपनी ओर से भूमिका में कुछ बारीकियां जोड़ता हूं. मैंने बस बॉडी लैंग्वेज को सही करने की कोशिश की.
क्या उन्होंने फिल्म देखी है?
सर जसवन्त गिल नहीं रहे, डेढ़ साल पहले उनका निधन हो गया लेकिन उनके परिवार ने फिल्म देखी.
आपने रुस्तम, पैडमैन, ओह माई गॉड जैसी फिल्में की हैं, क्या आपको लगता है कि वास्तविक कहानियों से दर्शकों तक बेहतर पहुंचती है?
मैं इससे सहमत नहीं हूं .वास्तविक कहानियों का एक ख़ास दर्शक वर्ग होता है. यह कोई बड़ा व्यावसायिक सिनेमा नहीं है लेकिन मुझे उम्मीद है कि बहुत सारे लोग इसे देखेंगे. ऐसी कहानियों के दर्शक बहुत कम होते हैं लेकिन मुझे उम्मीद है कि यह लोगों तक पहुंचेगी.
आप बहुत सारी वास्तविक कहानियों या मुद्दों पर आधारित फिल्में कर रहे हैं, क्या ये विषय आपको बहुत पसंद है ?
मुझे ऐसी वास्तविक और सच्ची कहानियां करना पसंद है. मैं आज एक महिला से मिला जिसने मुझसे कहा कि उसे मेरी फिल्में बहुत पसंद हैं और वह इसे अपने बच्चों को दिखाना चाहती है. मिशन मंगल देखने के बाद अब उनकी बेटी का कहना है कि वह या तो अंतरिक्ष यात्री या वैज्ञानिक बनना चाहती है. जब हम बड़े हो रहे थे,तो हमारे पास दो ही विकल्प थे या तो इंजीनियर बनो या डॉक्टर. कोई भी कभी वैज्ञानिक या अंतरिक्ष यात्री नहीं बनना चाहता था। ऐसी फिल्में युवाओं पर असर डालती हैं. हमने पैडमैन जैसे वर्जित विषय पर प्रयास किया, अब लोग सैनिटरी नैपकिन के बारे में खुलकर बात कर रहे हैं. इसने समाज में इतना बड़ा परिवर्तन ला दिया है. इसलिए मुझे ऐसी फिल्में करना पसंद है और जिसमें बड़े पैमाने पर समाज में बदलाव लाने की ताकत है. यहां तक कि मेरी आखिरी फिल्म ओह माई गॉड 2 में भी यौन शिक्षा के बारे में बात की गई थी. ऐसी फिल्में महत्वाकांक्षी होने के साथ-साथ प्रेरक भी होती हैं.
क्या ऐसी फिल्में स्कूलों में दिखायी जानी चाहिए और कर दी जानी चाहिए?
निर्माता को यह निर्णय लेना होगा. ओह माई गॉड 2 जैसी फिल्में दिखायी जानी चाहिए, यह एक महत्वपूर्ण विषय है लेकिन फैसला राज्य सरकार को लेना है. हम अभिनेता हैं और हमने अपना काम कर दिया है.. ज्यादा से ज्यादा हम इसे विभिन्न तरीकों से प्रचारित कर सकते हैं. यह एक वर्ड ऑफ माउथ फिल्म है. भले ही मैं प्रचार के लिए विभिन्न शहरों या स्थानों की यात्रा करूं, लेकिन मैं इसकी गारंटी नहीं दे सकता कि लोग फिल्म देखेंगे. जो सबसे अच्छा काम करता है वह है माउथ टू माउथ प्रचार. आप जाएं और चार दोस्तों को बताएं कि यह एक अच्छी फिल्म है, वे अपने परिवार या दोस्तों को इसे देखने की सलाह देंगे. यह ऐसे काम करता है. मैंने 150 फिल्में की हैं और मुझे पता है कि यह कैसे काम करता है. सच क्या है ये तो दर्शक भी जानते हैं. यह महत्वपूर्ण है कि वे फिल्म का भाग्य तय करें.