Mokshada Ekadashi 2022: मोक्षदा एकादशी का तात्पर्य है मोह का नाश करने वाली. इसलिए इसे मोक्षदा एकादशी कहा गया है. द्वापर युग में इसी दिन भगवान श्री कृष्ण ने कुरुक्षेत्र में गीता ज्ञान दिया था. अत: इस दिन गीता जयंती भी मनाई जाती है. मोक्षदा एकादशी के दिन मानवता को नई दिशा देने वाली गीता का उपदेश हुआ था.
हिंदू कैलेंडर के अनुसार, मार्गशीर्ष माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि का प्रारंभ 03 दिसंबर शनिवार को प्रात: 05 बजकर 39 मिनट पर हो रहा है. इस तिथि का समापन अगले दिन 04 दिसंबर रविवार को प्रात: 05 बजकर 34 मिनट पर होगा. उदयातिथि के आधार पर मोक्षदा एकादशी का व्रत 03 दिसंबर को रखा जाएगा. इस दिन सूर्योदय सुबह 06 बजकर 58 मिनट पर होगी.
मोक्षदा एकादशी के दिन भगवान श्री कृष्ण, महर्षि वेद व्यास और श्रीमद् भागवत गीता का पूजन किया जाता है. इस व्रत की पूजा विधि इस प्रकार है:
1. व्रत से एक दिन पूर्व दशमी तिथि को दोपहर में एक बार भोजन करना चाहिए. ध्यान रहे रात्रि में भोजन नहीं करें.
2. एकादशी के दिन प्रात:काल उठकर स्नान करें और व्रत का संकल्प लें.
3. व्रत का संकल्प लेने के बाद भगवान श्री कृष्ण की पूजा करें. उन्हें धूप,दीप और नैवेद्य आदि अर्पित करें. वहीं रात्रि में भी पूजा और जागरण करें.
4. एकादशी के अगले दिन द्वादशी को पूजन के बाद जरुरतमंद व्यक्ति को भोजन व दान-दक्षिणा देनी चाहिए. इसके बाद भोजन ग्रहण करके व्रत खोलना चाहिए.
व्रत कथा करने या सुनने से मिलता है मोक्ष प्राचीन काल में चंपक नामक एक सुंदर नगर में वैखानस नाम का राजा राज करता था. वह अपनी प्रजा का पालन अपने पुत्रों की तरह करता था. उसकी प्रजा भी उससे बहुत स्नेह रखती थी. उसके राज्य में वेद – वेदांगों को जानने वाले बहुत से ब्राह्मण रहते थे. एक दिन राजा ने स्वप्न में एक विचित्र दृश्य देखा. उसने देखा कि उसके पिता को नरक में घोर यातनाएं दी जा रही हैं और वह बुरी दशा में विलाप कर रहे हैं. पिता को अधोयोनि में पड़े देखकर उसने यह वृतांत ब्राह्मणों को सुनाया और जानना चाहा कि दान, तप या व्रत, जिस किसी भी रीति से मेरे पिता को नरक से मुक्ति मिले. मेरे पूर्वजों का कल्याण हो. ऐसी विधि बताएं.
राजा के दुखित वृत्तांत को सुनकर वेदों के ज्ञाता एक ब्राह्मण ने कहा- राजन! अपने पिता के उद्धार के लिए आप पर्वत मुनि के आश्रम में चले जाइए, जो यहां से थोड़ी ही दूर स्थित है. राजा ने मुनिशार्दूल पर्वत मुनि के आश्रम में जाकर सादर प्रणाम किया. वे मुनि ऋग्वेद , सामवेद , यजुर्वेद और अथर्ववेद के ज्ञाता दूसरे ब्रह्म की तरह शोभायमान हो रहे थे .